सुरक्षा | आशा पाण्डेय
सुरक्षा | आशा पाण्डेय

सुरक्षा | आशा पाण्डेय – Suraksha

सुरक्षा | आशा पाण्डेय

प्लेटफार्म नंबर एक के यात्रियों के लिए बनी बेंच पर वह बैठी है। उम्र कोई पच्चीस से अठाईस के आस-पास। आँखें बड़ी और भाव प्रवण। नाक लंबी, होठ पतले, रंग मटमैला किंतु पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है की अगर साबुन से रगड़-रगड़ कर नहला दिया जाए तो इस मटमैंले रंग के नीचे से झक गुलाबी गोरा रंग निकल कर सबको विस्मित कर देगा। बेतरतीब ढंग से पहनी गई मैली साड़ी का लगभग आधा हिस्सा नीचे लटक रहा है। बाल कंधों पर बिखरे हैं, जिसे देख कर ये तो नहीं लगता की सौंदर्य-बोध के कारण उसने जान-बूझ कर बालों को कंधों पर फैलाया होगा, किंतु कंधे पर फैले बाल उसकी सुंदरता को बढ़ा जरूर रहे है। दोनों हाथ की कलाइयाँ काँच की चूड़ियों से भरी हैं। चूड़ियों के माप और रंग में कोई समानता नहीं है। कोई बड़ी, कोई छोटी, कोई हरी, कोई लाल। ऐसा लगता है कि चूड़ी की दुकान पर जा कर चूड़ियाँ माँग लेती होगी, दुकानदार भी अधिक ध्यान न देते हुए एकाध चूड़ी दे देता होगा और लंबे समय तक ये सिलसिला चलते रहने के कारण आज उसकी कलाई नई-पुरानी रंग-बिरंगी चूड़ियों से भरी है।

अब उसने अपने दोनों पैर ऊपर उठा लिए और बेंच पर ही पालथी मार कर बैठ गई। उसके पास एक थैला है, वह थैले को ऊपर उठा कर अपनी गोद में रख लेती है, बार-बार उसमें कुछ देखती है, हाथ से उसे छूती है, कुछ बोलती भी है फिर बड़ी मोहक अदा से मुस्कुराकर शर्मा जाती है।

रेलवे प्लेटफार्म जीवन का क्षणिक ठहराव है। मंजिल पर पहुँचने के मार्ग का एक पड़ाव मात्र। किंतु सरपट भागती जिंदगी के बीच कुछ ऐसे लोग भी है जो जन्म से मृत्यु पर्यंत यही ठहर कर रह जाते हैं। प्लेटफार्म पर बैठकर भी किसी ट्रेन के आने का इंतजार उन्हें नहीं रहता। शायद उस महिला को भी कही नहीं जाना है। यही प्लेटफार्म ही उसका निवास है। यहाँ के शोर-शराबे से बिलकुल अनभिज्ञ-सी अपनी ही दुनिया में खोई है वह। उसके बैठने के बाद भी उस बड़ी-सी बेंच पर बहुत-सी जगह खाली है। उसकी एकनिष्ठ नीरव मुस्कान से प्रभावित हो कर कुछ पुरुष मुसाफिर उसके पास बैठने के इरादे से वहाँ आते भी हैं। किंतु महिला को ध्यान से देखते ही वे बैठने की इच्छा त्याग कर आगे बढ़ जाते हैं। उसे कोई परवाह भी नहीं है, लोग आएँ, जाएँ, बैठें कुछ भी फर्क नहीं पड़ता उसे। उसने ध्यान ही कब दिया कि लोग वहाँ बैठने आ रहे हैं या फिर बिना बैठे ही आगे बढ़ जा रहे हैं। वह स्वयं में संतुष्ट एकाग्र तनमयता से सुखानुभूति में डूबी है।

अब उसने अपने पैर फिर नीचे लटका लिए हैं। पैर लटकाते समय बड़े ध्यान से वह नीचे देखती है। जमीन पर लथड़ रही साड़ी को थोड़ा सा उठती है फिर उसी हालत में छोड़ कर मुस्कुरा देती है। हृदय में उठ रही तरंगों की गति के भावनात्मक पक्ष को नापने का कोई यंत्र होता तो यह कहना आसान होता कि भीड़ भरी इस जगह पर बैठकर भी वह किसी गहरे अलौकिक सुख में किस हद तक डूब चुकी है। बीच-बीच में मुस्कुराकर वह अपनी उस खुशी को थोड़ा-बहुत व्यक्त कर रही है।

एक अधेड़-सा पुरुष उस बेंच की तरफ बढ़ता है। गहरा काला रंग, सामान्य-सा चेहरा, किंतु आँखों में चमक। पुरुष के पास भी एक मटमैला सा थैला है। बेंच के पास जा कर वह इधर-उधर देखता है, फिर थैला नीचे रख कर बेंच पर बैठ जाता है। इसे भी किसी ट्रेन का इंतजार नहीं है। लगता है यह भी इसी प्लेटफार्म का नियमित बाशिंदा है।

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पुरुष ने आपना थैला उठाया, उसमें से कुछ निकाल कर महिला की तरफ बढ़ाया और इसी बीच वह महिला के थोड़ा नजदीक सरक आया। महिला अपनी बड़ी-बड़ी आँखों को उठा कर गहरे आश्चर्य से उस पुरुष को देखती है फिर उस सामान को जो वह उसे देना चाह रहा है और अंत में दूसरी तरफ मुँह कर के पुनः अपने में ही व्यस्त हो जाती है। हाथ में ली हुई उस वस्तु को वही बेंच पर रख पुरुष ने महिला की नीचे लथड़ रही साड़ी को उठाकर बड़ी आत्मीयता से उसके शरीर पर डाल दिया। महिला ने फिर उस पुरुष की तरफ नजर उठाई। पुरुष मुस्कुरा दिया, महिला शांत रही। अब वह पुरुष उस महिला के थोड़ा और नजदीक खिसक आया। जब महिला ने कोई प्रतिकार नहीं किया तब पुरुष ने महिला के हाथ को अपने हाथों में ले उसकी चूड़ियों की प्रशंसा करने लगा। अपनी चूड़ियों को देखकर महिला एक बार फिर मुस्कुरा दी। यद्यपि उसकी मुस्कान में उस पुरुष की उपस्थिति की खुशी का भाव तनिक भी नहीं था किंतु पुरुष की हिम्मत बढ़ गई। अब वह उस महिला से कुछ कह रहा है जिसे अनसुना कर वह इधर-उधर देखने लगी। पुरुष थोड़ी देर शांत बैठा रहा फिर महिला का हाथ पकड़ कर बड़ी मीठी आवाज में बोला – “चलो”।

महिला ने उसे प्रश्न भरी नजर से देखा जैसे पूछना चाह रही हो – “कहाँ”

पुरुष हाथ से इशारा करते हुए बोला – “वहाँ …पीछे।”

महिला अपना सिर खुजलाने लगी। पुरुष का हाथ महिला के कंधे पर था जिसे हटा कर वह वहीं खड़े ठेले के पास आ गई। पास खड़े मूँगफली वाले ने एक कागज में लपेट कर थोड़ी से मूँगफली उसकी तरफ बढ़ाई। महिला निर्विकार भाव से मूँगफली देने वाले की तरफ देखने लगी।

“ले, पकड़ न” मूँगफली वाले ने आग्रह किया। महिला बिना मूँगफली लिए ही वहाँ से थोड़ा हट कर खाली पड़ी ट्रेन की पटरियों को देखने लगी। फिर सिग्नल की तरफ नजर दौड़ाई।

“गाड़ी आने का इंतजार कर रही है क्या?” मूँगफली वाले ने पूछा। अब तक वह भी उसके पास पहुँच गया था।

“इसका कोई आने वाला होगा” चने चुरमुरे वाले ने चुटकी ली।

मालगाड़ी से उतारे गए सामानों के बड़े-बड़े बक्से प्लेटफार्म पर रखे थे। रेलवे कर्मचारी उन बक्सों को हाथ गाड़ियों में लाद कर ले जाने लगे जिससे पूरे प्लेटफार्म पर धड़-धड़ की आवाज फैल गई। महिला को इन हाथ गाड़ियों के शोर से थोड़ी राहत मिली। वह फिर से ठेले के पास आकर खड़ी हो गई। ठेला तेल, कंघी, पाउडर, ब्रश, पेस्ट आदि यात्रा में उपयोग में आने वाले सामानों से भरा था। प्लास्टिक के कुछ खिलौने भी थे। महिला एक गुड़िया उठा लेती है। ठेले वाला जो अब तक चुप बैठा सब के क्रिया-कलापों को देख रहा था, एकदम चिल्ला कर महिला को डाटा – “रख… जल्दी रख, उसे लेकर नहीं जाना।”

महिला बड़े आश्चर्य से उसे देखने लगी फिर कुछ प्रसन्न हो कर गुड़िया रख दी। वह पुरुष जो बेंच पर उसके पास बैठा था, आगे बढ़कर उस ठेले वाले से बोला – “क्या बात करता है यार, पैसे ले लेना …मैं दे दूँगा पैसे”।

“रख दो …मैंने कहा रक्खो… मुझे बेचना नहीं है” ठेले वाले ने क्रोध भरी आवाज में कहा। पुरुष ने भी नाराज होते हुए गुड़िया रख दी। महिला अब भी ठेले के पास ही खड़ी है। उसके बगल में एक चाय वाला खड़ा है, उसने महिला से पूछा – ‘चाय पिएगी?’ महिला कुछ बुदबुदाई। अब वह पुरुष भी चाय वाले के पास आ गया है। चाय वाले ने बड़ी शरारत भरी मुस्कान के साथ धीरे से उस पुरुष से कहा पगली है …पट जाएगी। फिर दोनों हँसने लगे। आस-पास खड़े चने-चुरमुरे, बड़ा-पाव, चाय काफी आदि बेचने वाले भी ठठाकर हँसने लगे। इस समय प्लेटफार्म पर कोई ट्रेन नहीं है इसलिए सब फुर्सत का समय मजे से बिता रहे हैं।

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महिला आकर फिर से बेंच पर बैठ गई। अब वह अपने थैले में कुछ खोज रही है। पुरुष भी उसकी बगल में बैठ गया। आस-पास खड़े उसके इष्ट मित्रों की टोली उसे प्रोत्साहित करते हुए खिलखिला रही है। पुरुष फिर से महिला के एकदम करीब आ गया और उसकी चूड़ियों को सहलाने लगा। महिला ने अपना हाथ खीच लिया। पुरुष थोड़ा हताश हुआ लेकिन थोड़ी देर बाद ही वह फिर से महिला को खुश करने में जुट गया। अब उसने चाय वाले से दो कप चाय ली। एक कप उसने महिला को पकड़ा दिया और बड़ी अर्थपूर्ण नजरों से पीने का आग्रह करने लगा। महिला ने गंभीरता से उसे देखा। ऐसा लगा मानो ऊपर से शांत प्रतीत हो रहे समुद्र में तूफान आने वाला हो। चाय का कप अब भी महिला के हाथ में है पुरुष पुनः अश्लील इशारे से उसे चाय पीने के लिए कहता है। महिला पुरुष की ओर देखते हुए कप होठों तक लाती है और अकस्मात चाय को पुरुष के मुँह पर उछालते हुए उसे एक करारा थप्पड़ जड़ देती है। गरम चाय से पुरुष की आँखें जल जाती हैं, वह छटपटाने लगता है। महिला का चेहरा क्रोध से लाल हो गया है। अब वह पुरुष का बाल पकड़ कर अपनी पूरी ताकत से खींचने लगी। इस अप्रत्याशित घटना से स्तब्ध आस-पास खड़ीं उसकी मित्र मंडली नजदीक पहुँच कर उस पुरुष को महिला की पकड़ से छुड़ाने का प्रयास करने लगी। महिला का क्रोध भयंकर रूप ले चुका है। वह चंडी बन चुकी है। पुरुष दर्द से छटपटा रहा है। लोगों ने बड़ी मुश्किल से उस महिला को अलग किया। थोड़ी देर तो वह क्रोध में काँपती हुई वहीं खड़ी रही फिर अपना थैला उठाई और ठेले के पास आकर नीचे बैठ गई। ठेले वाले से उसे कोई डर नहीं है। वह जगह उसे सुरक्षित लग रही है।

वह पुरुष कुछ देर तो औंधे मुँह जमीन पर पड़ा रहा फिर हिम्मत करके उठा, अपने थैले को उठाया, थैले में से निकल कर बिखर गई चीजों को समेटा तथा चने चुरमुरे वाले की सहायता से स्वयं को घसीटता हुआ बेंच पर आकर बैठ गया। नोचे गए अंगों से खून रिस रहा था। कुछ देर तक तो वह दर्द से कराहता रहा फिर अपनी गर्दन उठाकर महिला की तरफ देखने लगा। इस बार उसकी आँखें महिला पर स्थिर हो गई, चेहरा विद्रूप हो उठा, आँखें फैल कर चौड़ी होने लगीं, पता नहीं भय से या क्रोध से। वह हाँफने लगा फिर अचानक नाग की तरह फुफकारते हुए चिल्ला-चिल्ला कर महिला को गालियाँ देने लगा। एक लड़का दौड़कर पास की दुकान से ठंडा पानी ले आया तथा पानी में रूमाल गीला कर उसकी आँखों पर रखने लगा। चेहरे से होते हुए चाय गरदन, सीने तथा पेट तक फैल गई थी। वह बुरी तरह जल गया था, किंतु जलने से भी अधिक पीड़ा उसे अपने अपमान से हो रही है। एक मामूली-सी पागल औरत उसका इस तरह अपमान करे! आस-पास खड़े पुरुष आँखें तरेर कर महिला को इस अपराध के लिए सजा देना चाहते है लेकिन उससे कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। पागल है, क्या पता फिर से टूट पड़े। सब उस पुरुष को ही शांत कराने में लगे हैं। महिला पर उसकी गालियों का कुछ भी असर नहीं हो रहा है, वह शांत भाव से पुरुष को छटपटाते हुए देख रही है। पुरुष बार-बार अपनी आँखों को हाथ से ढक रहा है, लगता है जलन तेज हो रही है। वह लड़का रूमाल गीला करके उसकी आँखों को पोछ रहा है, साथ ही उसे चुप भी करा रहा है।

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‘जाने भी दो यार, पगली है, मुँह लगना ही नहीं चाहिए था’।

‘पुलिस से शिकायत करनी पड़ेगी। इस पगली को यहाँ से हटाएँ, नहीं तो हम सभी को खतरा है। …आज उसकी आँख में गर्म चाय उड़ेल दी, कल हमारे ऊपर कुछ फेंक देगी। और तो और अब यात्रियों की भी खैर नहीं।’ चना चुरमुरा बेचने वाले ने चिंता व्यक्त की।

‘इसका दिमाग कुछ अधिक खराब हो गया है …ऐसे खतरनाक पागल को तो पागलखाने में होना चाहिए। लेकिन क्या कहें इस देश को …खुलेआम घूम रही है। देश-दुनिया के प्रति चिंतित (!) एक व्यक्ति ने अपनी पीड़ा को अभिव्यक्ति दी।

‘अरे मैं तो ऐसी एक पागल को जानता हूँ जो पागलखाने के अधिकारियों को चकमा देकर वहाँ से भाग निकली और अब खुलेआम शहर में घूमती है तथा पत्थर फेंक-फेंक कर रोज दो-चार के सिर फोड़ती है।’ भीड़ में से किसी ने कहा।

‘मुझे तो कुछ और ही लग रहा है। देखो न, कैसे चुपचाप बैठी है, मैं तो कहता हूँ कि यह पागल है ही नहीं बल्कि किसी माफिया या आतंकवादी गिरोह की सदस्य है।’ आदमी की आँखों पर ठंडे पानी की पट्टी रखते हुए एक व्यक्ति ने धीमी आवाज में कहा – सच कहते हो अभी पिछ्ले साल की तो बात है, चौक में जो बम-विस्फोट हुआ था, जिसमें बहुत से लोग मारे गए थे, याद है न? …बम विस्फोट के पंद्रह दिन पहले वहाँ एक पागल घूमता हुआ दिखता था। बम विस्फोट के दो दिन पहले से ही वह वहाँ से कहाँ गायब हो गया, पता नहीं चला। बाद में तो समाचार में भी आया था कि शायद वह आतंकवादियों के लिए जासूसी कर रहा था।’

‘जो भी हो, हमारे लिए यह हर तरह से खतरनाक है। हमें मिलकर कुछ करना होगा …इसे यहाँ से हटाना ही होगा।’

‘हाँ, हाँ, सच में इसे प्लेटफार्म से हटाना ही पड़ेगा। हमारी सुरक्षा का सवाल है।’ सबका समवेत स्वर प्लेटफार्म पर गूँजा।

पुरुष अब भी जलन से छटपटा रहा है। ठंडे पानी की पट्टियाँ रखी जा रही हैं। थोड़ी देर पहले चंडी बनी महिला अब पूरी तरह शांत होकर ठेले के पास बैठी है। चेहरे पर न तो कटुता के भाव हैं न क्षोभ और न अंतर्द्वंद्व के ही। वहाँ एकत्र पुरुष इस अप्रत्याशित घटना से चिंतित है। शाम होने वाली है, अपनी सुरक्षा के लिए परेशान पुरुष मंडली को देखकर महिला थोड़ा मुस्कराती है, फिर उठकर आवेशहीन आंतरिक संतुष्टि तथा दृढ़ता के साथ आगे बढ़ जाती है। जैसे प्लेटफार्म पर बड़ी देर से रुकी कोई ट्रेन चल पड़ी हो।

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