स्त्री... | प्रदीप त्रिपाठी
स्त्री... | प्रदीप त्रिपाठी

स्त्री… | प्रदीप त्रिपाठी

स्त्री… | प्रदीप त्रिपाठी

अपनी दोनों आँखों से
एक साथ देखता हूँ मैं
दो अलग-अलग स्त्रियों को
एक ही दिन में।

एक आँख से देखता हूँ उस स्त्री को
जो अपने कमर में
छोटे से कपड़े में बच्चे को बाँधकर
सड़क या सीढ़ियों पर मध्य दोपहरी में
पूरे दिन काम करती है,
और
दूसरी आँख से देखता हूँ
किसी एक प्रोफेसर की पत्नी को
जो पूरे दिन सिर्फ एक स्विच का इस्तेमाल करती है
पंखे, टी.वी., कूलर, कार, मोबाइल, ए.सी., मोटर, फ्रीज़, मिक्सर… आदि

एक छोटे से अंतराल में
देखता रहता हूँ मैं
अपनी इन्हीं दोनों आँखों से
एक-साथ
दो अलग-अलग स्त्री को।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *