भाँग खाकरनींद के आगोश मेंखोया शहर हर तरफदहशत उगातीरात आकरपतित मनछल-छद्म करतामुस्कराकरऔर सहसाघोल देता हवा मेंतीखा जहर सिकुड़ जातीआपसी संबंध कीपतली गलीनजर आतीदेह भी विश्वास कीझुलसी, जलीप्रकट होतीमानवों के बीच मेंचौड़ी नहर