सोने का सुअर | मनोज कुमार पांडेय
सोने का सुअर | मनोज कुमार पांडेय

सोने का सुअर | मनोज कुमार पांडेय – Sone Ka Suar

सोने का सुअर | मनोज कुमार पांडेय

चंदू बहुत खुश हैं। बापू मामा के यहाँ से लौट कर आए हैं और अभी उन्होंने अम्माँ से कहा कि कक्षा आठ से आगे की पढ़ाई के लिए चंदू का मामा के यहाँ रह कर पढ़ना तय हो गया है। ऐसा नाना और बापू ने मिल कर तय किया है।

मामा का घर मामा के गाँव में सबसे ऊँचा है। छत पर चढ़ जाओ तो मामा का ही गाँव नहीं बल्कि आसपास के और भी कई गाँव दिखाई पड़ते हैं। पूरब में नरायनगंज, पश्चिम में न्यायीपुर, उत्तर में सोरांव और दक्षिण में नहर पार नेवादा। मामा के गाँव का नाम है चौबारा। चौबारा के दक्षिण में गाँव से लग कर एक नहर बहती है। नहर के दोनों किनारों पर विलायती बबूल फैले हुए हैं। नहर के दक्षिण में आपस में जुड़े हुए कई छोटे छोटे तालाब हैं जो बारिश में मिल कर एक बड़ा तालाब बन जाते हैं। तालाब के पूरब में एक ऊँचा टीला है जिस पर तरह तरह के पेड़ों का एक जंगल छाया हुआ है।

चंदू को मामा के यहाँ जाना अच्छा लगता है। इस भूगोल के अलावा इसकी और भी कई वजहें हैं। पहली तो यही कि चंदू के आने जाने की इकलौती यही जगह है जहाँ वह कभी कभार आ जा सकते हैं। उन्हें पास के बाजार भी अकेले नहीं जाने दिया जाता। ऐसे में मामा का घर उन्हें मुक्ति और नएपन की तरफ ले जाने वाला एक सुंदर रास्ता लगता है जिसके किनारे किनारे खजूर और जामुन के पेड़ों की एक लंबी कतार है। चंदू के पूरे गाँव में इनके एक भी पेड़ नहीं हैं जबकि दोनों ही उन्हें बहुत अच्छे लगते हैं। गर्मियों में पहले जामुन पकता है फिर खजूर । काले काले जामुन और सूखे संतरे के रंग के खजूर।

मामा का घर पक्का है। फर्श इतनी चिकनी कि चाहे फर्श पर खाना खा लो और चंदू का घर खपड़ैल है जिसकी छत से गोजर और बिच्छू गिरते हैं। चंदू को दोनों से बहुत डर लगता है। बापू को बिच्छू बहुत जम कर चढ़ती है। उन्हें जब कभी बिच्छू डंक मारती है, वे हफ्तों बेसुध चारपाई पर पड़े रहते हैं। चंदू की उन दिनों चारपाई से नीचे उतरने की भी हिम्मत नहीं पड़ती। और गोजर के बारे में तो चंदू ने सुन रखा है कि वह चमड़ी में अपने पैरों को धँसा कर कुछ इस तरह चिपक जाती है कि चाहे उसके लाख टुकड़े कर डालो, फिर भी वह नहीं निकलती।

मामा के घर में बिजली है। चंदू के घर में चिमनी जलती है। मामा के यहाँ टी.वी. है। चंदू के यहाँ रेडियो भी नहीं है। मामा के यहाँ सब खूब गोरे हैं। चंदू के यहाँ चंदू और उनकी अम्माँ को छोड़ कर सब काले। चंदू सोचते हैं कि कितनी अच्छी बात है कि वे अम्माँ पर गए हैं। गोरे और खूबसूरत। और भी कई कारण हैं जैसे चंदू जब मामा के यहाँ से आने लगते हैं तो नानी उन्हें पाँच या दस रुपये देती हैं। पूरे साल में यह चंदू को इकट्ठा मिलने वाली सबसे बड़ी रकम होती है। रास्ते में बापू या अम्माँ पूछती हैं कि कितना मिला तो चंदू झूठ बोल जाते हैं और आधा ही बताते हैं। बाकी पैसे उन्हें कुछ दिन अपने मन का बादशाह बनाये रखते हैं। चंदू पूरा सही सही बता दें तो पैसे अम्माँ ले लें या फिर गुल्लक में डालना पड़े और गुल्लक चाहे जिसकी हो घर के गाढ़े वक्तों में काम आती है जो कि चंदू के घर में आता ही रहता है।

अनेक कारणों में एक कारण यह भी है कि चंदू ने अभी तक शहर नहीं देखा है और मामा का घर शहर से जुड़े कस्बे के नजदीकी गाँव में है। चंदू जिस स्कूल में पढ़ने जा रहे हैं उसका रास्ता उस कस्बे के बीचोंबीच होकर गुजरता है जिस पर चंदू साइकिल चलाते हुए रोज ब रोज गुजरा करेंगे। साइकिल साल भर पहले आ गई थी पर अभी तक इस पर दीदी का कब्जा था। वह साइकिल से स्कूल जाती थी और चंदू पैदल गाँव के दूसरे लड़कों के साथ लड़ते झगड़ते। साइकिल को लेकर अक्सर उनका दीदी से झगड़ा होता रहता। वह चंदू को साइकिल छूने भी नहीं देती थी। चंदू दीदी से तो पिटते ही बाद में दीदी ये बातें बापू से भी कुछ इस तरह बताती कि चंदू को वहाँ भी डाँट पड़ती। ये बीस इंच की कत्थई रंग की हीरो साइकिल चंदू को अनायास ही मिल गई क्योंकि दीदी दसवीं की परीक्षा पास कर गई और आसपास ऐसा कोई स्कूल नहीं था जहाँ वह आगे पढ़ाई के लिए जाती।

चंदू के स्कूल जाने के रास्ते में दो सिनेमाघर हैं। आते जाते फिल्मों के पोस्टर सड़क के किनारे की दीवारों या पान की गुमटियों की साइड में चिपके दिखाई पड़ते हैं। बृहस्पतिवार के दिन दोनों सिनेमाघरों की दो टेंपो निकलती हैं जिनमें चारों तरफ अगले दिन से लगने जा रही फिल्म के पोस्टर चिपके होते हैं और एक व्यक्ति लाउडस्पीकर पर फिल्म और उसके कलाकारों के बारे में बताता चलता है। हर पाँच मिनट बाद बताने वाला थक जाता है तो वह बीच में सुस्ताने के लिए फिल्म के गाने लगा देता है।

पिछली गर्मियों में छोटे मामा जब सबको चंद्रलोक टॉकीज में फिल्म दिखाने ले गए थे तो बाकी का तो चंदू नहीं जानते पर उनकी वह टॉकीज में देखी गई पहली फिल्म थी। फिल्म का नाम था ‘नगीना की निगाहें’। इसके बाद चंदू का मन इच्छाधारी नाग होने का करने लगा था। उनके सपनों में इच्छाधारी नाग आते और बीन की आवाज सुनते ही उन्हें अमरीश खेर याद आने लगता। पिछली गर्मी से इस गर्मी के बीच चंद्रलोक टॉकीज का नाम बदल कर गंगा टॉकीज हो गया है। गंगा टॉकीज में तीन तरह के टिकट हैं जिनके दाम हैं पंद्रह रुपये, दस रुपये और पाँच रुपये। इतने पैसे चंदू के पास इकट्ठे कभी नहीं होते हैं सो चंदू सिर्फ पोस्टर देखते हैं या फिर शो टाइम में कभी कभी टॉकीज चले जाते हैं और निकास की तरफ की सीढ़ियों पर बैठ कर फिल्म के गाने और डॉयलाग सुनते हैं। इस तरह बहुत सारी फिल्में चंदू ने देखी भले नहीं है पर उनके पूरे डॉयलाग उन्हें याद हैं।

मामा के लड़के अक्सर फिल्म देखने जाते हैं मामा के साथ, मामी के साथ और कई बार अकेले भी। चंदू सिर्फ पोस्टर देखते हैं, एक ही फिल्म के अलग अलग पोस्टर और पोस्टर के आधार पर फिल्म की कहानी की कल्पना कर लेते हैं। इस तरह गंगा टॉकीज और सूर्या टॉकीज, इन दोनों ही टॉकिजों में चलने वाली हर फिल्म की दो दो कहानियाँ होती हैं। एक वह जो सचमुच फिल्म की कहानी होती है और दूसरी वह जिसे पोस्टरों के आधार पर चंदू रचते हैं। इस दूसरी कहानी के बारे में सिर्फ चंदू को पता होता है।

मामा के घर आकर कई ऐसी मुश्किलें खड़ी हो गई हैं जिनके बारे में चंदू ने पहले कभी सोचा ही नहीं था। अभी कल की ही बात ले लो। कल दशहरे के मेले का दिन था। चंदू के सभी ममेरे भाई बहन एक से एक रंगीन कपड़ों में मेला जाने के लिए तैयार थे। पर चंदू के पास नये कपड़े के नाम पर स्कूल ड्रेस है, गाढ़ा नीला पैंट और आसमानी शर्ट। इसके अलावा एक और शर्ट है जो कॉलर पर पूरी तरह घिस गई है और अंदर का अस्तर बाहर निकल आया है। एक हॉफ पैंट है जो चूतड़ पर इस तरह से घिस चुकी है कि रंगीन तागे जो शायद सूती रहे होंगे, घिसते घिसते गायब हो गए हैं और दोनों उभारों पर टेरीकॉट के तागों के दो गोल धूसर घेर भर बचे हैं जो पैबंद नहीं हैं फिर भी पैबंद की तरह दिखाई पड़ते हैं। एक फुलपैंट भी है जो छोटी हो गई थी तो बापू ने नीचे की मोहड़ी खोल कर बड़ा करवा दिया। अब वह पैंट चंदू के नाप की तो हो गई है पर एक दूसरी मुश्किल पैदा हो गई है। पूरे पैंट का रंग धुंधला हो गया है पर पैंट की मोहड़ी खुलने के बाद जो हिस्सा नीचे से ऊपर आया है वह अभी भी पहले के रंग में है। इसलिए वह अलग से जोड़ी गई पट्टी की तरह दिखाई पड़ता है। एक चौड़ी मोहड़ी का पजामा भी है पर उसके बारे में चंदू की राय यह है कि उसको पहनने से अच्छा है कि चड्ढी पहन के घूमते रहो। चड्ढी चंदू के गाँव में तो चल जाती थी जहाँ बचपन से ही वह चड्ढी पहनते आए थे पर यहाँ उनका हमउम्र ममेरा भाई मुन्ना चूड़ीदार पजामा या रेडीमेड हॉफ पैंट पहनता है। चंदू घर से बापू की सफेद धोती उठा लाए हैं जिसे दुहर कर वह लुंगी की तरह पहनते हैं। वैसे उन्हें यह जरा भी नहीं पसंद है पर इस तरह वह अपनी एक ठसक बनाये रखने की कोशिश करते हैं और यही जाहिर करते हैं कि उन्हें तो यही पसंद है।

यह स्थिति सिर्फ कपड़ों के ही मामले में नहीं है। जूते, किताबें सारे मामलों में यही होता है। मुन्ना के पास नई नई किताबें होती हैं और चंदू के पास हमेशा वही पुरानी किताबें जिनके कई कई पन्ने फटे रहते हैं। चंदू लगातार इन स्थितियों के बारे में सोचते हैं और पछताते हैं कि वे यहाँ क्यों आए। चंदू को बापू पर गुस्सा आता है। वे भूल जाते हैं कि वे खुद भी यहाँ आने को लेकर कितने उत्साही और उतावले थे। बहुत सोचने लगे हैं चंदू और जितना सोचते हैं उतना ही क्षोभ और हीनता के गर्त में समाते चले जाते हैं। बार बार उनका मन कुछ तोड़ने फोड़ने का करने लगता है पर किसी तरह से वह खुद को रोके रखते हैं।

दिक्कत वहाँ से आई जहाँ पहले से ही हीनता के गर्त में सिर से पाँव तक धंसे चंदू को अनेक तरीकों से बार बार यह एहसास कराया जाने लगा कि वे कितने हीन हैं और इस काम में नाना, जो कि एक अर्थ में उनके यहाँ रहने की वजह बने थे, से लेकर मामियाँ, ममेरे भाई बहन, यहाँ तक कि गाँव के लोग भी जाने अनजाने भागीदार होते।

यह काम कई तरीके से होता। मान लो परवल चंदू को नहीं पसंद, तो मामी कहतीं कभी परवल खाया भी है। पराठे चंदू को कभी नहीं अच्छे लगे तो इसको लेकर उन पर ताना कसा जाता कि बाजरे की सूखी रोटी तोड़ी है अब जबान को नरम चीजें कैसे पसंद आएंगी।

ऐसे ही चंदू एक बार कपड़ा धुल रहे थे तो उनकी एक मौसी जिन्हें अपने संपन्न होने का बड़ा घमंड था, कह गईं कि चंदू ये रिन साबुन है, यह कपड़े के एक ही तरफ लगाया जाता है, दोनों तरफ नहीं। इसके बाद एक गंदी नखरीली हँसी का दृश्य है जिसे चंदू कभी नहीं भूल पायेंगे। हँसने के बाद मौसी ने कहा कि तुम्हारे घर में साबुन आता भी है या कपड़े रेह से ही धुले जाते हैं।

मौसी के इस वाक्य के बाद चंदू शर्म से काँपने लगे। उनके मन में आया कि कुछ ऐसा हो जाए कि वे वहीं का वहीं गायब हो जाएं। चंदू तो गायब नहीं हो पाए पर साबुन जरूर गायब होने लगे। चंदू के गुस्से को एक दिशा मिल गई। नहाने का हो या कपड़े का, चंदू साबुन उठाते और छत पर पहुँच जाते। मामा के घर के पीछे एक गड़ही थी जिसमें आसपास के सभी घरों का गंदा पानी जमा होकर सड़ता रहता था। इस गड़ही के चारों तरफ घनी बँसवारियाँ थीं, जिन पर जो जिसकी तरफ थीं उन लोगों ने कब्जा कर रखा था। इन बँसवारियों से होकर कोई गड़ही की तरफ जाने का रुख भी नहीं करता था लिहाजा कुछ भी उठा कर फेंक देने के लिए ये जगह बेहद मुफीद थी। चंदू दुमंजिली छत पर जाते और गड़ही की तरफ साबुन की टिकिया उछाल देते, जो गंदे बजबजाते पानी में एक आवाज भर पैदा करती। यह आवाज चंदू को एक हिंसक खुशी से भर देती।

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जब घर में साबुन की गुम टिकिया ढूंढ़ी जा रही होती तो चंदू भी अपने ममेरे भाइयों बहनों के साथ ढूंढ़ रहे होते। उनका मन भीतर ही भीतर खुशी से खदबदाता रहता। हालांकि बाद के दिनों में उन पर शक भी किया गया कि वह साबुन की टिकिया छुपा कर रखते जाते हैं और जब घर जाते हैं तो उठा ले जाते हैं पर सही बात कोई नहीं जान पाया।

दरअसल चंदू विरोधियों के बीच थे इसलिए वे धीरे धीरे घात लगा कर काम करना सीख गए थे। पता चला कि पंद्रह बीस दिन सब कुछ सामान्य है और कोई घटना नहीं घटी पर अगले हफ्ते चंदू कई कारनामे एक साथ कर गुजरते। साबुन से शुरुआत हुई तो चंदू खुलते ही चले गए। उन्हें एक रास्ता मिल गया था जिससे वे अपने भीतर की आग को बुझाते रहते। वह लगातार मौके का इंतजार करते। मन ही मन साजिशों के जाल बुनते और पता नहीं क्या क्या सोचते रहते। सोचते सोचते कभी उदास हो जाते तो कभी मुस्कुराते और इस क्रम में धीरे धीरे वे इतने घुन्ने होते चले गए कि उनके चेहरे पर तो एक चुप्पी छाई होती और मन में खुशियों के लड्डू फूट रहे होते या फिर इसका उल्टा वे उदासी के महासागर में गोते लगा रहे होते।

बाद के अनेक दृश्य हैं जिनमें चंदू ममेरे भाई की किताब के पन्ने फाड़ रहे हैं। चंदू साइकिल पंक्चर कर रहे हैं। कोई किताब छुपा कर टांड़ पर फेंक दे रहे हैं। छत पर से कोई कपड़ा पिछवाड़े गिरा दे रहे हैं, कुछ इस तरह कि कोई देखे तो यही समझे कि हवा से चला गया होगा। अपने इन कारनामों के लिए चंदू हमेशा ऐसा कोई समय चुनते जब उनके ममेरे भाइयों में आपस में कोई झगड़ा दिखाई पड़ता। छोटे मामा का बड़ा लड़का बंटी चंदू की नाक में दम किए रहता पर वह नाना और मामा मामी को इतना प्यारा था कि हर संदेह से परे था। चंदू अपने कारनामों की वजह से कभी नहीं पिटे बल्कि बंटी की झूठी शिकायतों की वजह से ज्यादा पिटे। पिटने के कई मौके ऐसे भी रहे जब उन्हें किसी बात का प्रतिकार करने की वजह से पीटा गया ।

इस बंटी का किसी से कोई झगड़ा होता तो यह चंदू के लिए बदले का सबसे सुनहरा मौका होता। यह तरीका इतना प्रभावी रहा कि धीरे धीरे दूसरे मामा का परिवार उसे संदेह की नजर से देखने ही लगा। इस बंटी का और क्या करें चंदू? आलू की बुवाई हो रही है। नाना सब बच्चों को लेकर आलू की बुवाई करवा रहे हैं। चंदू भी हैं। बंटी खेत से ढेले उठा उठा कर चंदू को मार रहा है। जब भी ढेला लगता है चंदू खिसिया कर रह जाते हैं। वह सीधा प्रतिकार करना चाहते है पर बंटी नाना के आसपास ही चक्कर लगा रहा है। ऐसे ही एक तेज ढेला आकर चंदू की कनपटी पर लगता है। चंदू गुस्से से तनतना जाते हैं और इतने दिनों का अर्जित अभ्यास कि बदला लेने के लिए सही मौके का इंतजार करें उनसे नहीं हो पाता। वह बदले में एक बड़ा सा ढेला उठाते हैं और पूरे दमखम से बंटी को दे मारते हैं। चंदू का दुर्भाग्य कि वह ढेला बंटी को न लग कर नाना को जा लगता है। नाना चंदू को खदेड़ लेते हैं। चंदू पकड़े जाते हैं और उनकी उसी खेत में जी भर के कुटम्मस होती है।

चंदू के अगले कई दिन अब छुप छुप कर बीतेंगे। उनके छुपने की कई जगहें हैं। मामा के घर के आगे का हिस्सा पहले कच्चा था और पीछे का पक्का बना था। बाद में जब आगे वाला हिस्सा बना तो पीछे वाले हिस्से की छत नीची रह गई। अब मकान के नये हिस्से की छत पर से पुराने हिस्से की छत पर जाने के लिए एक सीढ़ी नीचे उतरती है। सीढ़ी के नीचे की जगह में कुछ फालतू सामान पड़े रहते हैं। चंदू ने अपने लिए उन्हीं फालतू सामानों के बीच एक छोटी सी जगह खोज निकाली है। जिसमें वह गाहे बगाहे जरूरत के वक्त जाकर बैठ जाते हैं। मकान के पुराने वाले हिस्से में छत पर दो कमरे हैं जिनमें से एक कमरे में दो पुरानी चारपाइयाँ पड़ी हुई हैं। इन चारपाइयों पर अब कोई नहीं लेटता। चारपाइयों पर फटे पुराने बिस्तर गंजे रहते हैं। कई बार चंदू भी इन बिस्तरों का हिस्सा बन जाते हैं। एक बार जब उन्हें लाल हाँड़ा ने डंक मारा तो वह पूरे दो दिन उन्हीं बिस्तरों पर करवटें बदलते रहे। दूसरे दिन शाम को जब छोटे मामा को चंदू की सुधि आई तो उन्होंने चंदू को बुलाया और कुछ झाड़ फूँक का नाटक किया। चंदू का दर्द तब तक ऐसे ही काफी कम हो गया था सो उन्होंने मामा को खुश करने के लिए कह दिया कि उनका दर्द चला गया। इसके बाद चंदू उठे और अपने मनपसंद काम में जुट गए।

मामा के घर के सामने एक शिव मंदिर है। मंदिर के पीछे काफी जगह खाली है। चंदू ने यहाँ वहाँ से लाकर तमाम तरह के पौधे वहाँ लगा रखे हैं। गेंदा, गुड़हल, बेला, हरसिंगार, चांदनी, मुर्गकेश, तरह तरह के फूल, वैसे ये सब अलग अलग मौसम के फूल हैं पर चंदू अपनी स्मृतियों में जब भी इस फुलवाड़ी को देखेंगे तो उन्हें सारे ही फूल एक साथ खिले नजर आएंगे।

नानी चंदू से खुश रहती हैं, इसलिए भी कि उन्हें पूजा के लिए तरह तरह के फूल मिल जाते हैं। चंदू के पहले उन्हें सिर्फ पीले कनेर के सहारे ही रहना पड़ता था। तो नानी चंदू से खुश तो रहती हैं मगर… बस यही एक मगर लगा रहता है। नानी अकेली हैं जहाँ से चंदू को थोड़ी ओट मिलती है पर ये ओट भी कई बार ओट में ही मिल पाती है। चंदू का अपने ममेरे भाइयों बहनों से झगड़ा वगैरह होता है तो गलती चाहे किसी की भी हो, नानी चंदू को ही समझाती हैं। कई बार तो मीठे लहजे में डाँट भी देती हैं। चंदू को ये डाँट तब और मीठी लगती है जब नानी उन्हें अपनी कोठरी में बुलाती हैं और कभी पेठा, कभी अनरसे की पूड़ी, कभी दलपट्टी तो कभी बेसन के लड्डू देती हैं।

चंदू के ममेरे भाइयों के अलावा कुछ दूसरे भी स्थायी दुश्मन हैं। एक चितकबरी गाय है जिसका नाम नाना ने गौरी रख छोड़ा है। गौरी पता नहीं क्यों चंदू को पसंद नहीं करती। जब चरने जाती है तो चंदू को इतना परेशान करती है कि चंदू का दम निकल जाता है जबकि मुन्ना उसे डाँट भी देता है तो वह गाय से भीगी बिल्ली बन जाती है। इसी गौरी को चंदू डंडा दिखाता है तब भी उसके ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ता। चंदू गौरी के पीछे पीछे दौड़ता रहता है फिर भी कभी वह इस खेत में मुँह मार देती है तो कभी उस खेत में। एक बार वह ठकुराने के ददन सिंह के खेत में घुस गई जिनकी मामा के यहाँ से पुरानी दुश्मनी है। तो ददन सिंह ने चंदू का कान जम कर उमेठा, बाहें मरोड़ी और पीठ पर मुक्का मारा। चंदू अपमान और दर्द से रोते बिलबिलाते गौरी पर झपटे और गुस्से में गौरी की पीठ पर दनादन डंडे बरसा दिए। गौरी भागती रंभाती नाना के पास जा पहुँची। पीछे लुटे पीटे दौड़ते हाँफते चंदू आए जहाँ पन्नालाल का बेंत उनका इंतजार कर रहा था।

पन्नालाल का बेंत चंदू का दूसरा स्थायी दुश्मन है। छोटे मामा के पास एक बेंत है जिसे वह महीने में एक बार तेल जरूर पिलाते हैं। इस बेंत को बातचीत में सब पन्नालाल का बेंत कहते हैं। पन्नालाल गाँव का ही गरीब आदमी था जिसको किसी बात पर छोटे मामा ने इस बेंत से मारा था। इसके बाद पन्नालाल बहुत दिन दिनों तक चारपाई पर पड़ा रहा और ठीक होने के बाद कमाने के बहाने गाँव छोड़ कर कहीं चला गया। तब से बेंत का नाम पन्नालाल का बेंत पड़ गया।

इसके बाद से मामा का जब भी किसी से झगड़ा होता है वह उसे पन्नालाल के बेंत का नाम लेकर धमकाते हैं और चंदू के ममेरे भाई बहन उन्हें धमकाते हैं कि आने दो पापा को, पन्नालाल के बेंत से चमड़ी न कटवा दें तब कहना।

चंदू इस बेंत से बहुत डरते हैं।

चंदू सलमान खान से भी बहुत डरते हैं।

मामा के यहाँ टी.वी. पर फिल्में वगैरह देखते देखते अचानक एक दिन चंदू ने महसूस किया कि उनके सीने में भी एक दिल है जो साथ में पढ़ने वाली एक लड़की के लिए धड़कता है। प्यार के जोश में चंदू ने एक दिन लड़की को आई लव यू बोल दिया। लड़की कुछ नहीं बोली और चली गई। लड़की बड़ी मामी की सहेली की बेटी है और मुन्ना से उसका ठीकठाक संवाद है। दूसरे दिन ठीक उसी समय चंदू ने उसे फिर से आई लव यू बोला तो लड़की ने चप्पल दिखाई और दूसरे दिन क्लासटीचर से तथा मामी से बताने की धमकी देकर चली गई। क्लास में तो चंदू अफोर्ड कर सकते थे पर मामी को बताया जाना, अपने पिछले अनुभवों के आधार पर उन्होंने तुरंत कुछ दृश्यों की कल्पना कर ली कि मामी उनसे सारी बातें खोद खोद कर पूछ रही हैं, मुन्ना छुप कर सारी बातें सुन रहा है। मामी सारी बातें मामा को बता रही हैं, मामा सारी बातें नाना को बता रहे हैं, नाना ने बापू को बुलाया है और चंदू को बापू की मार के कई भयानक दृश्य आज भी याद हैं। चंदू बापू की मार से बहुत डरते हैं।

तो यही सब सोच कर उन्होंने प्यार से तोबा कर ली पर इससे अच्छा तो वे इस खेल में शामिल ही रहते। दो दिन बाद ही मुन्ना उनसे मजे लेने लगा और उनकी आशिकी के किस्से पूछने लगा। चार दिन बाद से ही चंदू की भूतपूर्व संभावित प्रेमिका के पास सलमान खान की चिट्ठियाँ पहुँचने लगीं। जाहिर है कि चंदू को इसके बारे में कुछ भी नहीं पता चला। तब भी नहीं जब एक दिन बड़े मामा ने पूछा कि चंदू तुम्हें सलमान खान बहुत पसंद है क्या, तो चंदू ने मिनमिनाती आवाज में कहा कि नहीं, मुझे सलमान खान बिल्कुल नहीं पसंद है। मुझे तो गोविंदा पसंद है। मामा उस समय तो कुछ नहीं बोले पर मामा के पूछने का मतलब चंदू को तीन दिन बाद रविवार के दिन समझ में आया जब मामी और लड़की की माँ के सामने उनकी बाकायदा पेशी हुई। चंदू के सामने सलमान खान के खतों का पुलिंदा रख दिया गया और पहले से ही यह तय मानते हुए कि सलमान खान कोई और नहीं बल्कि चंदू ही हैं, उन पर देर तक जोर डाला गया कि वे कुबूल कर लें कि वही सलमान खान यानी कि इन खतों के लेखक हैं। फिर उन्हें झाँसा दिया गया कि अगर वे अपनी गलती मान लें तो उन्हें कुछ नहीं कहा जाएेगा और नाना या बापू से भी नहीं बताया जाएगा। चंदू नहीं माने तो नहीं माने इसके बावजूद शक की सुई लंबे समय तक उन पर टंगी रही। बात आगे बढ़ती रही। नाना से बताया गया और बापू से बताने के लिए विशेष व्यूह की रचना की गई।

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हुआ यह कि फिल्मी गीतों की एक फटी पुरानी किताब चंदू को जाने कहाँ से मिल गई। जिस समय उन्हें वह किताब मिली उस समय वह प्रेम में थे सो वह किताब उन्हें अच्छी भी लगी। चंदू ने लेई से चिपका कर किताब की हालत सुधार ली और उस पर अपने प्रिय हीरो गोविंदा की तस्वीर चिपका दी। चंदू एक दिन इसी किताब का पारायण करते हुए बैठे थे कि बड़ी मामी ने यह किताब देख ली और यह कह कर चंदू से माँग लिया कि वे भी पढ़ना चाहती हैं। चंदू बेचारे भला क्या करते, उन्होंने बिना किसी नानुकुर के वह किताब मामी को दे दी। बाद में कई बार चंदू का मन हुआ कि वह मामी से किताब वापस माँग लें पर उनकी हिम्मत नहीं पड़ी। मामी ने किताब क्यों माँगी थी इसका खुलासा तब हुआ जब चंदू के बापू आए। मामी ने चंदू के बापू को फिल्मी गानों की वह किताब दिखाई और बोली कि देखिये आप के चंदू आजकल क्या क्या पढ़ रहे हैं। इसके बाद उन्होंने पूरा सलमान खान प्रसंग बापू को बता दिया। जाहिर है कि मामी की इस कहानी में सलमान खान कोई और नहीं बल्कि चंदू ही थे।

चंदू की रीढ़ तक में कँपकपी दौड़ गई। बापू के गुस्से से वह अच्छी तरह परिचित थे पर पता नहीं क्या सोच कर बापू ने समझदारी दिखाई और चंदू पर एक ठंडी नजर भर डाल कर रह गए। बापू जब घर जाने लगे तो उन्होंने कहा कि चलो घर हो आओ। तुम्हारी अम्माँ ने बुलाया है, एक दो दिन में लौट आना। चंदू बापू को ना नहीं बोल सके। वैसे जबसे वह यहाँ आए हैं अपना घर उन्हें पहले की अपेक्षा बहुत अच्छा लगने लगा है पर इस समय चंदू घर नहीं जाना चाहते क्योंकि बापू के इरादे उन्हें अच्छे नहीं लग रहे थे और बापू के भीतर से पिटाई के घने बादलों के उमड़ने घुमड़ने की आवाज आ रही थी।

पर चंदू को घर जाना पड़ा। मामा के घर से चंदू का घर करीब बीस मील है। पूरे बीस मील चंदू बापू की साइकिल के कैरियर पर सिकुड़े से बैठे रहे। पूरे रास्ते बापू उनकी खबर लेते रहे। रही चंदू की बात तो पहले तो उन्हें यही नहीं समझ में आया कि एक पुरानी फिल्मी गाने की किताब पढ़ने या रखने में भला क्या दिक्कत थी पर चूंकि मामी से लकर बापू तक सभी ऐसी नाकिस किताब रखने के खिलाफ थे इसलिए चंदू ने मिनमिनाते हुए अपना अपराध दूसरे पर धकेलने की कोशिश की और कहा कि ये किताब उन्हें नवाब अली यानी चंदू के स्कूल के संगीत टीचर ने दी थी और कहा था कि गाने याद कर लेना तो सुर लय ताल सिखा देंगे। बापू ने कहा कि वे नवाब अली को जानते हैं और मिलने पर उनसे इस बारे में पूछेंगे।

बापू थोड़ी देर चुप रहे, फिर पूछा कि ये सलमान खान का क्या किस्सा है। चंदू ने कहा कि वे सलमान खान नहीं हैं और उन्हें मुन्ना फँसा रहा है। यह कहते कहते चंदू रोने लगे। ये उनका आखिरी अस्त्रा था या शायद डर का चरम। बापू चुप हो गए फिर पूरे रास्ते बापू कुछ नहीं बोले फिर भी चंदू पूरे रास्ते सँसे रहे। कोई पूछे तो चंदू यही बताएंगे कि यह सफर उनकी जिंदगी का एक मुश्किल सफर रहा। बापू जब तक उनकी खबर लेते रहे और बाद में जब चुप भी हो गए तब भी पूरे रास्ते चंदू को यही लगता रहा कि बापू अभी साइकिल रोकेंगे और सड़क पर ही उन्हें पीटना शुरू कर देंगे। पर चंदू की किस्मत अच्छी थी। बापू ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। फिर भी पूरे रास्ते जिस भयानक डर और आशंका में उनका समय गुजरा वह शायद पिटाई से भी बढ़ कर था। इससे अच्छा तो बापू ने उन्हें पीट ही दिया होता तो इस डर और आतंक से तो उन्हें मुक्ति मिल गई होती।

घर पहुँच कर बापू ने पानी मंगाया, पिया और फिर चंदू को अपने पास बुलाया। चंदू को लगा कि अब बस कयामत आ ही गई। काँपते हुए चंदू बापू के पास पहुँचे। बापू बहुत देर तक चंदू को देखते रहे। चंदू की नजरें उठा कर बापू की तरफ देखने की हिम्मत तो नहीं हुई पर बापू की उस निगाह में ऐसा कुछ जरूर था जिसे चंदू पहचान नहीं पा रहे थे। बापू ने चंदू से बैठने के लिए कहा तो चंदू बैठ गए। आखिरकार बापू की चुप्पी टूटी, उन्होंने चंदू के सिर पर हाथ रखा और बोले अब तुम इतने बड़े हो गए हो कि घर की हालत देख सकते हो। वहाँ पढ़ने गए हो तो पढ़ने में मन लगाओ। इस तरह की चीजों में नाक क्यों कटा रहे हो। बापू फिर चुप हो गए, थोड़ी देर बाद बोले जाओ, सुबह तैयार हो जाना। कल मुझे कचहरी जाना है। मैं तुमको सोरांव में छोड़ दूँगा। वहाँ से तुम चले जाना।

चंदू को अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ। चंदू को इस बात पर भी भरोसा नहीं हुआ कि बापू ने उन्हें बिना मारे छोड़ दिया। वे वैसे ही बुत बने पड़े रहे और जब उन्हें इस बात का एहसास हुआ तो खुशी के मारे वह वहीं खड़े खड़े भें भें करके रोने लगे। अब चौंकने की बारी बापू की थी। बापू ने चंदू को चुप होने के लिए कहा और उठ कर खेत की तरफ चल दिए।

बापू गए तो अम्माँ पास में आ गईं। अम्माँ ने चंदू से पूछा क्या हुआ क्यों रो रहे हो। चंदू उसी तीव्रता से चुप हो गए पल भर पहले जिस तीव्रता से रो रहे थे। वे अम्माँ से कभी नहीं झूठ बोल पाये। उन्होंने सब कुछ अम्माँ को जैसे का तैसा बता दिया। अम्माँ सुनतीं रहीं। उनके चेहरे के भाव पल पल बदलते रहे। जब चंदू सब कुछ कह चुके तो अम्माँ बोलीं, थोड़े दिनों की बात है बेटा, अपने पर काबू रखो। ये जो कुछ तुम कर रहे हो, इससे तुम्हें क्या मिल जाता है? मुन्ना की किताब फाड़ने पर तुम्हें नई किताब मिल जाती है क्या? फिर ये सब करने का क्या फायदा। उनकी किस्मत उनके साथ हमारी किस्मत हमारे साथ। फिर अम्माँ एक एक करके नानी, नाना, मामी, मामा, या और भी गाँव के तमाम लोगों के बारे में पूछती रहीं। चंदू ने सबके बारे में बताया। अम्माँ ने सब कुछ सुना फिर बोली बेटा किसी भी तरह निबाह लो और ये बातें भूल कर भी अपनी दादी या बापू से मत कहना। मेरी इज्जत तुम्हारे हाथ।

दूसरे दिन चंदू फिर से मामा के यहाँ पहुँच गए। इस बार चंदू और चुप चुप रहने लगे। इस बार के बापू चंदू की समझ में नहीं आए। इस बार की अम्माँ चंदू की समझ में नहीं आयीं। वह लगातार बापू, अम्माँ और अपने घर के बारे में सोच रहे थे। आखिर में उन्होंने सोचा कि अगर उनके पास खूब पैसा हो जाए तो स्थितियाँ एकदम बदल जाएंगी। इसके बाद चंदू ने इस बारे में विस्तार से सोचा कि जब उनके पास पैसा हो जाएगा तो वे क्या क्या करेंगे। सबसे पहले उन्होंने सोचा कि वह मामा कि गाँव में ही एक पक्का घर बनवाएंगे जो मामा के घर से दुगुना ऊँचा होगा। फिर उन्होंने अपने गाँव के घर के बारे में सोचा। कपड़ों के बारे में सोचा, किताबों के बारे में सोचा, फिल्मों के बारे में सोचा, अपना एक सिनेमाहॉल बनवाने के बारे में सोचा और आखिर में उन्होंने एक हीरोपुक खरीदने के बारे में सोचा। मुन्ना साइकिल से स्कूल जाता है तो वे हीरोपुक से जाएंगे।

चंदू अपने में मगन बैठे यही सब सोच रहे थे कि हीरोपुक में ब्रेक लग गया। नाना चिल्ला रहे थे कि इतनी देर हो गई और अभी तक गौरी की सानी पानी नहीं हुई। चंदू बेमन से उठे, खाँची उठायी और भूसा निकालने के लिए भुसौल की तरफ बढ़ गए। भूसा निकालते हुए उनके सामने यह यक्षप्रश्न उपस्थित हुआ कि सब कुछ तो ठीक है वे करेंगे पर इसके लिए पैसा कहाँ से आएगा। पैसा आने का एक रास्ता तो वही था जिसके लिए बापू ने रास्ते में समझाया था पढ़ लिख कर कलेक्टर बनने’ का। पर यह रास्ता बहुत लंबा था दूसरे इसमें हीरोपुक से स्कूल जाने की गुंजाइश नहीं बचती थी इसलिए सानी पानी करते हुए चंदू ने पैसे कमाने के कुछ दूसरे तरीके खोजने शुरू किए और तब उन्हें सोने के सुअर का ध्यान आया।

सोने के सुअर का किस्सा चंदू को पहले कभी नानी ने सुनाया था कि नहर के पार का टीला जिस पर तमाम तरह के पेड़ रहते हैं, वहीं पेड़ों के बीच में एक कुँआ है। कुँए में कुँए की दीवाल से चिपका हुआ एक पीपल का पेड़ है जिसकी जड़ें कुँए की दीवाल फाड़ कर मिट्टी में तो समाई ही हैं, सीधे दीवाल में चिपकी हुई पानी के भीतर तक चली गई हैं। पानी में एक सुअर रहता है। सुअर सोने का है और सात कड़ाही सोने का मालिक है। जब सुअर चलता है तो उसके पीछे सोने की सात कड़ाहियाँ घूमती हुई चलती हैं। उस समय जमीन में कान लगाओ तो जमीन से घनन घनन की आवाज आती है। धरती धीरे धीरे काँपने लगती है। जब कभी ये सुअर धरती के ऊपर टहलने के लिए निकलता है तो कुँए की जगत फट जाती है और कुँए से पानी बहने लगता है। पूरे टीले के चारों तरफ पानी भर जाता है। टीले के बगल में जो तालाब हैं वह कुँए के पानी से ही बारहों महीने लबालब भरे रहते हैं। टहलने के बाद जब सुअर कुँए में वापस लौटता है कुँए की जगत फिर पहले जैसी हो जाती है।

तो नानी ने बताया कि सुअर कुँए में रहता है। उसका सब कुछ सोने का है, सोने की पूँछ, सोने की थूथन, सोने के दांत, सोने के बाल। उसकी पूरी की पूरी देह सोने की है और जो उसे एक बार देख लेता है फिर वह कुछ और देखने के काबिल नहीं बचता।

यही सोने का सुअर चंदू के भीतर समा गया। पल पल बेचैन करने लगा। वह लगातार इसी सुअर के बारे में सोचते रहते। उन्होंने सुअर पर एक तुकबंदी भी रच डाली जिसे वह गाहे बगाहे गुनगुनाते रहते।

सोने के सुअर के सोने के बाल हैं

सोने के सुअर की सोने की खाल है

सोने के सुअर के सोने के नाखून हैं

सोने के सुअर में सोने का खून है।

ऐसे ही करते करते सुअर चंदू के सपनों तक में घुस गया। कभी अपनी थूथन से चंदू को चूमता, कभी पूँछ से हवा करता, कभी गुर्राता तो कभी दूर से ही ललचाता और एक दिन उसने चंदू को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह टीले पर सुअर से मिलने जाएंगे।

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यह एक घनी अंधेरी रात थी जिसमें चंदू ने सुअर से मिलने जाने की हिम्मत जुटायी। रात का पहला पहर बीत रहा था जब चंदू अपने कमरे से निकले। पहले बारजे पर आए फिर खिड़की के सहारे नीचे आ गए। अंधेरी रात सन सन कर रही है। कहीं कहीं कुत्ते भौंक रहे हैं। आसमान में तारे चमक रहे हैं पर उनकी चमक कुछ भी देखने के लिए नाकाफी है। चंदू रास्ता टटोलते हुए आगे बढ़ रहे हैं। उनके रोंगटे सन्न भाव से खड़े हैं और हल्की से हल्की आहट को भी उन तक पहुँचाने के लिए तत्पर हैं। उनकी आँखों की पुतलियाँ लगातार नाच रही हैं।

चंदू ने अपना रास्ता इतना चुपचाप तय किया कि एक कुत्ता तक नहीं भौंका। चंदू नहर पर पहुँचे तो नहर कलकल गलगल की आवाज करते हुए बह रही थी। नहर के पास ठंडी ठंडी हवा बह रही थी। चंदू ने एक एक करके अपने सारे कपड़े उतारे और नहर किनारे लगे एक पेड़ की डाल पर टाँग दिया। इसके बाद चंदू नहर में उतर गए। नहर पार करने के बाद चंदू ने बदन का पानी झटका और टीले की तरफ बढ़ गए।

टीला अपने ऊपर के जंगल सहित जैसे कोई बूढ़ा शैतान लग रहा था। चंदू को डर सा लगा, सीने में कुछ धक सा होकर रह गया। एक बार तो चंदू ने सोचा कि वापस लौट जाएं पर तभी उन्हें भूतों और चुड़ैलों से जुड़े बहुत सारे किस्से याद आ गए जिनमें डर कर भागने वालों का भूत पीछा करते हैं और उन्हें पकड़ लेते हैं पर जो भूतों से नहीं डरता भूत खुद उससे डरते हैं और उसकी मनचाही मुराद पूरी करते हैं। सो चंदू वापस नहीं पलटे और धीरे धीरे चलते हुए कुँए के पास पहुँच गए।

यह एक विशाल कुँआ था। चंदू कुँए की जगत पर पहुँचे तो उन्हें आभास हुआ कि कुँआ काँप रहा है। कुँए के कई खंभे गिर गए थे जिनकी जगह खाली हो गई थी। जो खंभे खड़े थे वे अपने अनियमित क्रम में और भी डरावने लग रहे थे। कुँए की जगत पर उगा पीपल का पेड़ ऐसा लग रहा था जैसे कुँए का ही एक खंभा जीवित होकर बढ़ता चला गया हो। हवा के बहाव में पीपल के पत्ते चटचट की आवाज कर रहे थे। तभी ऊपर से चाँद निकल आया जो एकदम कुँए की सीध में था। चंदू को ऐसा लगा जैसे आसमान से कोई उनकी मदद के लिए टार्च दिखा रहा है।

उत्तेजित चंदू ने पुकारा। सोने के सुअर कहाँ हो तुम? तुम जो इतनी धन दौलत लेकर घूमते हो वह तुम्हारे किसी काम की भी है? सुनो क्या तुम मेरी बात सुन रहे हो?

चंदू को लगा, जैसे कुँए में कुछ चमका फिर तुरंत ही चमक गायब हो गई। चंदू कुँए में झाँकते हुए बोले, क्या तुम मुझसे आइस पाइस खेल रहे हो? सोने के सुअर किस बात का घमंड है तुम्हें? क्या इसका कि तुम सोने के हो या इसका कि तुम्हारे पास सात कड़ाही सोना है? इस सोने का आखिर क्या करोगे तुम? आवाज दो या तुम बोल ही नहीं पाते हो? हाँ तुम तो सुअर हो और सुअर भला बोल कैसे सकता है?

जवाब में नीचे से एक घनघनाती हुई गुर्राहट आई। गुर्राहट की आवाज चंदू को सहलाती हुई लगी। उन्हें लगा कि सुअर उन्हें नीचे बुला रहा है। उन्हें लगा कि उनका सपना साकार होने में बस थोड़ी ही देर है। सुअर से वे कहेंगे कि सुअर अगर उन्हें एक कड़ाही सोना दे दे तो वे यहीं मामा के गाँव में जहाँ उन्होंने अपना घर बनवाने के लिए सोच रखा है वहीं घर के सामने सुअर का एक मंदिर बनवाएंगे और रोज सुबह शाम सुअर की पूजा किया करेंगे।

यही सब सोचते सोचते चंदू ने पीपल की जड़ को थाम लिया और नीचे उतरने लगे। नीचे से फिर घुर्र घुर्र की आवाज आई। चंदू ने नीचे उतरते हुए सुअर को फिर से पुकारा और कहा कि वह चारों तरफ सुअर की महिमा का प्रचार किया करेंगे। इस तरह चारों तरफ सुअर की जय जयकार हो जाएेगी। चंदू नीचे उतरते हुए लगातार प्रार्थना कर रहे थे कि सुअर सामने आओ। सुअर सामने आओ। नीचे से घुर्र घुर्र की आवाज फिर से आई। चंदू भूल गए कि वे अंधेरी रात में एक भयानक कुँए में पीपल की जड़ों से लटके हुए और भी गहरे अंधेरे में उतरते चले जा रहे हैं। चंदू एक सम्मोहन में पहुँच गए। एक जुनून था जो उन पर तारी हुआ जा रहा था। ऐसे ही चंदू नीचे उतरते रहे। घुर्र घुर्र की आवाज आती रही। लगातार नीचे बुलाती हुई आवाज, चंदू को ललचाती हुई आवाज।

अचानक चंदू को लगा कि जैसे जैसे वे नीचे उतरते जा रहे हैं वैसे वैसे पानी भी नीचे उतरता जा रहा है। चंदू पल भर को जैसे जड़ हो गए फिर उन्हें वो सारे किस्से याद आ गए जिनमें भगवान अपने भक्तों का इम्तहान लेते हैं। उन्हें लगा कि सुअर भी उनका इम्तहान ले रहा है। और आखिरकार उनके ऊपर खुश होकर उन्हें उनका मनचाहा वरदान देगा। तो चंदू फिर से नीचे उतरने लगे पर अब तक चंदू थक गए थे सो हाँफने लगे।

एक साँप चंदू के बदन पर सरसराता हुआ ऊपर की तरफ निकल गया। चंदू कुछ इस तरह सिहर गए कि पीपल की जड़ उनके हाथों से छूट गई और वह कुँए में जा गिरे और इसी के साथ कुँए का सारा पानी पाताल में समा गया। अब कुँए में सिर्फ कीचड़ भरा हुआ था। नंगे चंदू कीचड़ में कुछ इस तरह लथपथ हो गए कि वे भी कीचड़ का ही एक हिस्सा लगने लगे।

चंदू ने कान लगाया कि शायद कहीं से घुर्र घुर्र की आवाज आए पर आवाज बंद हो चुकी थी। कुँए में एक भयानक सन्नाटा फैला हुआ था। चंदू ने चीखते हुए कई बार आवाज लगाई कि सुअर तुम कहाँ हो, सुअर कहाँ हो पर न कहीं कोई चमक उभरी न कहीं से गुर्राहट की आवाज आई। अब चंदू को डर लगा और जोर की झुरझुरी आई। चंदू ने ऊपर की ओर देखा। आसमानी टार्च गायब थी। कुँए में भयानक अंधेरा था। चंदू को कुछ भी नहीं दिखाई पड़ रहा था। उन्होंने कुँए की दीवाल टटोली तो पीपल की जड़ उनके हाथ में आई। चंदू पीपल की उसी जड़ के सहारे ऊपर चढ़ने लगे। ऊपर पहुँचते पहुँचते चंदू निढाल हो गए। उनके बदन में जरा सा भी दम बाकी नहीं बचा। उनका सपना पहले ही टूट चुका था। ऊपर पहुँच कर चंदू पस्त होकर वहीं जगत पर लेट गए। पीपल जरा नीचे होकर उन पर हवा करने लगा। हवा से चंदू जरा चैतन्य हुए तो उन्होंने पाया कि हजारों जोंकें उनके बदन से चिपकी हुई हैं। चंदू ने जोर की झुरझुरी ली और जल्दी जल्दी जोंकों को नोचने लगे। जोंकें फिसल फिसल जा रही थीं। चंदू को जोर की उबकाई आई। चंदू को जोर से डर लगा। पीपल के पत्ते अभी भी सटासट बज रहे थे। चंदू को लगा जैसे पीपल के ऊपर कोई बैठा उनके ऊपर हँस रहा है। पर चंदू की उपर की ओर देखने की हिम्मत नहीं हुई। उन्हें कँपकँपी हुई।

अचानक चंदू पूरा जोर लगा कर नहर की ओर भागे। टीले पर के पेड़ों ने एक नग्न आकृति जो कीचड़ में सिर से पाँव तक सनी हुई थी और जिस पर सैकड़ों जोंकें यहाँ वहाँ चिपकी हुई थीं को देखा होगा तो डर के मारे काँप गए होंगे। चंदू भागते हुए आए और नहर में कूद गए। चंदू नहर के पानी में अपने बदन को मल मल कर नहाते रहे, जोंकें छुड़ायीं और बाहर निकल आए।

अब नंगे चंदू को ठंड लगने लगी। चंदू हाथों से बदन का पानी पोछते हुए उस पेड़ तक पहुँचे जहाँ उन्होंने अपने कपड़े रख छोड़े थे। कपड़े गायब थे। आसमान अब भी वैसे ही तारों से भरा था। कभी नानी ने चंदू को बताया था कि तारे इंद्र भगवान की आंखें हैं जिनसे वह पूरी दुनिया पर नजर रखते हैं। चंदू तिक्त भाव से मुस्कुराये कि इंद्र भगवान के रहते हुए उनके कपड़े गायब हो गए। चिढ़ के मारे उन्होंने इंद्र भगवान को अपना सूसू दिखाया और दबे पाँव मामा के घर की तरफ चल दिए।

रात खत्म होने की तरफ बढ़ रही थी। पूरब की तरफ से आसमान में एक सिंदूरी आभा उतरने को थी। चंदू पस्त कदमों से जरा भी आहट न करते हुए मामा के घर की तरफ लौट रहे थे। उनसे थोड़ी दूरी बनाये हुए एक कुत्ता चुपचाप उनके पीछे चला आ रहा था। घर पहुँच कर चंदू वैसे ही बदन की पूरी चुप्पी के साथ खिड़की पर चढ़े, वहाँ से बारजे पर चढ़े फिर अपने कमरे में पहुँच गए जहाँ दूसरी चारपाई पर उनका ममेरा भाई मुन्ना सोया हुआ था।

सुबह जब मुन्ना उठा तो उसने पाया कि चंदू नींद में सुअर सुअर बड़बड़ा रहे थे। मुन्ना शिकायत करने के लिए भागा कि चंदू उसे सुअर कह रहे हैं। नाना आए और उन्होंने पाया कि चंदू बुखार से तप रहे हैं। नाना ने नानी को बुलाया। चंदू के पास बैठ कर उनका माथा सहलाते हुए नानी ने सोचा कि चंदू ने तेज बुखार के बीच शायद कोई डरावना सपना देखा होगा। अपनी ही सुनाई हुई सोने के सुअर और उसके पैरों से बंधी सात सोने की कड़ाहियों की बात नानी शायद भूल चुकी हों।

अगले तीन दिनों तक चंदू ऐसे ही बुखार में पड़े रहे और बीच बीच में सुअर सुअर बड़बड़ाते रहे। बच्चों को उनके आसपास फटकने की मनाही कर दी गई। बस नानी ही अकेली थीं जो पूरे समय उनके साथ बनी रहीं। बाकी लोग आते रहे और अपनी अपनी राय देते रहे। नाना ने चंदू के बापू को खबर करवायी। चौथे दिन जब चंदू के बापू वहाँ पहुँचे थे उसी दिन सुबह चंदू को होश आया था। होश में आते ही चंदू ने नानी से कहा कि वे अपने गाँव जाएंगे और अब वे यहाँ नहीं रहेंगे।

नानी कुछ भी नहीं बोलीं। पल भर बाद चंदू के चेहरे पर नानी का एक बूंद आँसू गिरा। चंदू ने आँखें मूँद लीं। थोड़ी देर बाद चंदू उठे और एक झोले में अपना सामान समेटने लगे। नानी पहले तो उन्हें देखती रहीं फिर उनकी मदद में जुट गईं।

दोपहर बाद जब चंदू के बापू वहाँ पहुँचे तो लगभग उसी समय चंदू अपने घर पहुँच चुके थे और यहाँ मामा के यहाँ सब चंदू को ढूँढ़ रहे थे। नानी चुपचाप अपने कमरे में लेटी हुई थीं।

घर पर चंदू ने अम्माँ को बताया कि वे हमेशा के लिए मामा का घर छोड़ आए हैं, तो अम्माँ भी कुछ नहीं बोलीं, बस बैठी चंदू का माथा सहलाती रहीं। चंदू ने पाया कि अम्माँ हूबहू नानी की तरह उनका माथा सहला रही हैं और इस बात पर अचरज से भर गए। ठीक इसी समय एक बूँद आँसू अम्माँ की आँख से भी गिरा जो चंदू का माथा सहला रहे अम्माँ के ही हाथों पर गिरा। आँसू की इस एक बूँद के बारे में चंदू क्या कभी जान पाएंगे।

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सोने का सुअर – Sone Ka Suar

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