सुभद्रा कुमारी चौहान
सुभद्रा कुमारी चौहान

क्या कहते हो? किसी तरह भी 
भूलूँ और भुलाने दूँ? 
गत जीवन को तरल मेघ-सा 
स्मृति-नभ में मिट जाने दूँ?

शांति और सुख से ये 
जीवन के दिन शेष बिताने दूँ? 
कोई निश्चित मार्ग बनाकर 
चलूँ तुम्हें भी जाने दूँ?

कैसा निश्चित मार्ग? हृदय-धन 
समझ नहीं पाती हूँ मैं 
वही समझने एक बार फिर 
क्षमा करो आती हूँ मैं।

जहाँ तुम्हारे चरण, वहीं पर 
पद-रज बनी पड़ी हूँ मैं 
मेरा निश्चित मार्ग यही है 
ध्रुव-सी अटल अड़ी हूँ मैं।

भूलो तो सर्वस्व ! भला वे 
दर्शन की प्यासी घड़ियाँ 
भूलो मधुर मिलन को, भूलो 
बातों की उलझी लड़ियाँ।

भूलो प्रीति प्रतिज्ञाओं को 
आशाओं विश्वासों को 
भूलो अगर भूल सकते हो 
आँसू और उसासों को।

मुझे छोड़ कर तुम्हें प्राणधन 
सुख या शांति नहीं होगी 
यही बात तुम भी कहते थे 
सोचो, भ्रांति नहीं होगी।

सुख को मधुर बनाने वाले 
दुख को भूल नहीं सकते 
सुख में कसक उठूँगी मैं प्रिय 
मुझको भूल नहीं सकते।

मुझको कैसे भूल सकोगे 
जीवन-पथ-दर्शक मैं थी 
प्राणों की थी प्राण हृदय की 
सोचो तो, हर्षक मैं थी।

मैं थी उज्ज्वल स्फूर्ति, पूर्ति 
थी प्यारी अभिलाषाओं की 
मैं ही तो थी मूर्ति तुम्हारी 
बड़ी-बड़ी आशाओं की।

आओ चलो, कहाँ जाओगे 
मुझे अकेली छोड़, सखे! 
बँधे हुए हो हृदय-पाश में 
नहीं सकोगे तोड़, सखे!

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