स्मृतियाँ | जितेंद्र श्रीवास्तव | हिंदी कविता
स्मृतियाँ | जितेंद्र श्रीवास्तव | हिंदी कविता

स्मृतियाँ सूने पड़े घर की तरह होती हैं
लगता है जैसे
बीत गया है सब कुछ

पर बीतता नहीं है कुछ भी

आदमी जब तैर रहा होता है
अपने वर्तमान के समुद्र में
अचानक स्मृतियों का ज्वार आता है
कुछ समय के लिए
और सब कुछ बदल देता है

अचानक बेमानी लगने लगता है
तब तक सबसे अर्थवान लगने वाला प्रसंग
और जिसे हम छोड़ आए होते हैं
बहुत पीछे अप्रासंगिक समझकर
वह जीवन की तरह मूल्यवान लगने लगता है

बहुत से संबंध और बहुत से मित्र
जो छूट गए होते हैं आँकड़ों की गणित में
अचानक किसी दिन सिरहाने खड़े मिलते हैं

कुछ चिट्ठियाँ निकलती हैं पुराने बक्सों से
और बंद पडी आलमारियों से
और उनमें लिखी तहरीरें
दिखा जाती हैं आईना

बीता हुआ कल
वहीं दुबका बैठा मिलता है
कभी हाथ मिलाने को बढ़ आता है उत्सुक
कभी छुपा लेता है नजरें
कुछ लोगों को लगता है
जैसे स्मृतियाँ पीछे खींच ले जाती हैं हमें
लेकिन ऐसा होता नहीं है
स्मृतियाँ अक्सर तब आती हैं
जब सूख रहा होता है
अंतर का कोई कोना
सूखे के उस मौसम में
वे आती हैं बरखा की तरह
और चली जाती हैं
मन-उपवन को सींच कर

See also  बेघर रात

हिमपात | जीतेन्द्र श्रीवास्तव | हिंदी कविता

गिरने लगी है बर्फपूस के शुरू होते हीऔर लकड़ी के अभाव मेंबहाई जाने लगी हैं लाशेंबिना जलाए ही लोग ठकुआए हुए टुकुर-टुकुर ताक रहे हैंओरा गया है उनका विश्वासन जाने कहाँ है सरकार!

साहब लोग रेनकोट ढूँढ़ रहे हैं | जितेंद्र श्रीवास्तव | हिंदी कविता

हजारों टन अनाज सड़ गयासरकारी गोदामों के बाहर” यह खबर कविता में आकर पुनर्नवा नहीं हो रहीयह हर साल का किस्सा हैहर साल सड़ जाता है हजारों टन अनाजप्रशासनिक लापरवाहियों से हर साल मर जाते हैं हजारों लोगभूख और कुपोषण सेहर साल कुछ लोगों पर कृपा होती है लक्ष्मी कीबाढ़ हो आकाल हो या हो…

See also  लौटता मानसून | लाल्टू

सबसे हसीन सपने | जितेंद्र श्रीवास्तव | हिंदी कविता

अँधेरे में कुछ नहीं दिखतान घर   न पेड़   न गड्ढे   न पत्थरन बादल   न मिट्टी   न चिड़ियाँ-चुरुँगहाथ को हाथ भी नहीं सूझता अँधेरे में पर कैसा आश्चर्य!दुनिया के सबसे हसीन सपनेहमेशा देखे जाते हैं अँधेरे में ही।

See also  जीवन-चरित

Leave a comment

Leave a Reply