शाम तुम सुस्ता लो जरा | रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
शाम तुम सुस्ता लो जरा | रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
मैं एक पहाड़ हूँ झाड़ियों से भरा
शाम को तुम रंगीन गॉगल की तरह पहनकर
तुम मुझमें टहलने आती हो
तुम्हारा माथा प्यार भरी सुबह का मैदान है
तुम्हारे गले में किरणों की सुनहरी चेन
और आँखों में झील जैस दृश्य फैले हुए हैं
मैं विंध्याचल हूँ दूर तक फैला हुआ
तुम शाम बनकर मुझमें सुस्ता लो जरा