सत्य कोयले की खदान में लगी आग है | बाबुषा कोहली
सत्य कोयले की खदान में लगी आग है | बाबुषा कोहली

सत्य कोयले की खदान में लगी आग है | बाबुषा कोहली

सत्य कोयले की खदान में लगी आग है | बाबुषा कोहली

मैं कहती हूँ किसी इश्तहार का क्या अर्थ बाकी है
कि जब हर कोई चेसबोर्ड पर ही रेंग रहा है
आड़ी-टेढ़ी या ढाई घर चालें तो वक्त तय कर चुका है
काले सफेद खाने मौसम के हिसाब से
आपस में जगह बदलते हैं

फिर क्यों झूठे सत्य की तलाश में भटका जाए

एक नट सदियों से रस्सी पर चल रहा है
न उसने संतुलन का भ्रम दिखाया
न हवा में शरीर फेंक कलाबाजी का नमूना पेश किया
उल्टे सिक्के फेंकने वाले तमाशबीनों की ओर उछाल दिया
फोंटाना द त्रेवी का रूट मैप

पानी का देवता सिक्कों की माला पहन तुम्हें दुबारा बुलाता है
हर दुख दरकिनार कर तुम चल पड़ते हो
अपनी ही परछाईं देखने
जबकि कहीं का भी पानी तुम्हें अपनी ही शक्ल दिखाता है
पर कामना से भरे हुए तुम
रोम के पानी में खुद को बेहतर पाते हो

झूठ है तो दुनिया कायम है
सत्य कोयले की खदान में लगी आग है
याद है..
एक बार पृथ्वी आग का गोला थी

कब की पक चुकी हैं मेरे मकान की ईंटें

गर्म फर्श पर नंगे पाँव चलना अब मुश्किल है
मेरे कमरे में अब आग की लपटों की दीवारें होंगी
राख के ढेर पर बैठे हुए मैं
भटकी हुई ‘एलिस’ को राह बता दूँगी
मोड़ का आखिरी घर उसका है
जबकि पहला और बीच के सारे घर भी उसके ही हैं

पूरी दुनिया को नींद में चलने की बीमारी है
उस डॉक्टर को भी जो नींद में ही पर्ची पे पर्ची लिखे जा रहा है

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *