साठ पार के माँ-बाबूजी | अभिज्ञात
साठ पार के माँ-बाबूजी | अभिज्ञात

साठ पार के माँ-बाबूजी | अभिज्ञात

साठ पार के माँ-बाबूजी | अभिज्ञात

जैसे कि एक की साँस का होना
दूसरे के लिए बेहद जरूरी है
एक जो पहले सोता है
लेता है घर्राटे जोर-जोर से
और दूसरा जागता रहता है उसके सहारे, उसकी डोर थामे

उसके लिए यह साँसों की आवाज एक आश्वासन है
जीने की लय
जीने का जरिया और मतलब
जीने की वजह

एक का खर्राटा बचाता है दूसरे को अकेला होने से

कभी-कभी लगता है खर्राटे लेने वाला करता रहता है दूसरे की साँस की रखवाली।

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