अभी शेष हैं हम
अपने आँखों में हैं।
औरों की पीड़ा में
झर-झर झर जाते
तपन-दहन में
बनकर व्यूह उतर आते
ठूँठ नहीं जी,
फूल-पात शाखों में हैं।
माना, बिंधकर घायल
पड़ा परिंदा है
अभी साँस है गर्म
हौसला जिंदा है
फिर-फिर उड़ने का
जुनून पंखों में है।
पहले भी टूटे हैं
कल भी टूटेंगे
किंतु, तीर-से
यही एक दिन छूटेंगे
ये सपने अब
एक नहीं लाखों में हैं।