शांतिनिकेतन में कृष्णकली | निशांत
शांतिनिकेतन में कृष्णकली | निशांत
1.
जब ऋतु आती है
पेड़ो पर खिलता है पलाश
तुमने खिले हुए पलाश वृक्ष
सचमुच, अपनी आँखों से देखा है?
अमलतास ?
या गुलमोहर ?
शांतिनिकेतन चले आओ
चले आओ कोलकाता
चले आओ मेरे पास
मैं ऋतुमती हूँ
मैं हूँ सब आज।
2.
पेड़ों पर खिलता है पलाश
मैं एक पेड़ हूँ
पलाश की तरह खिली हुई
तुमने देखा है भरा हुआ पलाश वृक्ष
आज मैं
पलाश हूँ
अपने सुग्गे का
इंतजार करती हुई।
3.
मुझे पलाश इतना क्यों खींचता है?
अपने रूप
लावण्य
और सुंदरता की तुलना
मैं हमेशा इस से ही क्यों करती हूँ ?
यह इतना खूबसूरत है
न चाहते हुए भी मन मे उतर गया है
तुम भी जादू जानते हो
मन मे उतर जाते हो
एक दिन
सिर्फ एक दिन तुमने कहा था
‘तुई आमार पलाश’
रात को
तुम्हारी याद जब आती है
रात, उस दिन में बदल जाता है
आजकल
मैं
सिर्फ दिन में रहती हूँ
रात होती ही नहीं
आजकल।
4.
सरस्वती पूजा थी
आठ साल की थी
पिता ने कहा था – ‘तुई आमार पलाश’
बारह साल बाद
एक दिन तुमने कहा था
– ‘तुई आमार पलाश’
एक दिन और… छोड़ो, छोड़ो
अच्छी बातों को ही याद रखना चाहिए
साहित्य
बिना पढ़े भी
बातों का
मर्म समझा जा सकता है
सिर्फ उसकी तीव्रता का बोध
कराता है साहित्य
तुमने क्यों कहा था – पढ़ो पढ़ो पढ़ो
देखो, पढ़ने से
सब चीजें बड़ा बड़ा करके समझने लगी हूँ
– ‘तुई आमार पलाश’ का
क्या क्या अर्थ करने लगी हूँ।
5.
पिता मेरी बड़ी बड़ी आँखों को प्यार करते
दुग्गा दुग्गा कहते
डरते भी
ओ छिपा के रखना चाहते मुझे सात तालों में
पढ़ना, भरतनाट्यम सीखना और चित्रकला के स्कूलों में
मेरे साथ साथ आते जाते
बाकी समय माँ साथ रहती
तालों में कहाँ बंद रह पाया है जंगल
मैं जंगल की तरह बढ़ रही थी
जंगल एक जादू है
मन एक आकाश
प्रेम एक आग है
पहले माँ जली
फिर भाई
पिता
तुम
और अंत में मैं
पलाश की तरह दहक के
झरने लगीं मेरी आँखें
तुमने क्यों कहा था
– ‘तुई आमार पलाश।’
जंगल में
आग लग चुकी थी।
6.
इस हरे जंगल में
बाँसुरी क्यों बजाते हो
शांतिनिकेतन की शांति भंग करने का अधिकार
तुम्हें किसने दिया ?
तुम झूठे हो
मुझे कभी चिड़िया कहते हो
कभी पलाश
कभी गुड़िया
और तुम क्या हो?
जंगली?
मैं मछली हूँ, मछ्ली।
अपने तालाब की।
लक्ष्मी हूँ, लक्ष्मी
अपने गाँव के पंडाल की
मेरी आँखें दुर्गा की तरह है
पिता जी तो मुझे दुग्गा दुग्गा कहते है
और यहाँ शांतिनिकेतन आने से पहले
जो लड़का मुझे अच्छा लगता था
ओ मुझे यक्षिणी कहता था, यक्षिणी।
यहाँ आकर थोड़ा समझदार हुई
हुई हूँ थोड़ी बड़ी
फँसी हूँ नाटक संगीत कविता गीत और
किताब में
ये जो दाढ़ीवाला बुड्ढा है ना
इसकी आँखें है या जादू
नहीं देखती बाबा, प्रेम हो जाएगा
तुम कुछ भी बनना
इस बुड्ढे जैसा मत बनना
शांतिनिकेतन में मत रहना
पता है सारी लड़कियाँ जलती है, तुम से
कहाँ से सीखा इतनी अच्छी बाँसुरी बजाना
इस जंगल मे आग लगाना।
7.
तुम ने मुझे उस दिन तारा क्यों कहा था ?
देखो, मैं तो कितनी नजदीक हूँ तुम्हारे
हाथ बढ़ाओ तो हाथ में आ जाऊँ
तारा, नहीं।
वाममार्गी तारा फारा मैं नहीं समझती
इतना समझती हूँ
तुम मुझ से प्रेम करते हो ना?
मत करो।
मैं सिर्फ बापी* से प्रेम करती हूँ
माँ से भी
भाई से भी
तो तुमने क्यों कहा कि
तीन आदमी से प्यार कर सकती हो तो
चौथे से क्यों नहीं।
क्या ऐसे तर्क के साथ
किसी लड़की से बात किया जा सकता है
तुम बत्तमीज हो पर
तर्क अच्छा लगा
मैं हिंदी पढ़ती हूँ
प्रेम रवि ठाकुर को करती हूँ
गीत उनके मुँह से लगे है
तुम भी तो उन्हीं के जैसे दाढ़ी बढ़ा रहे हो
ठाकुर बन रहे हो ?
रुको, थोड़ा और मुझे समझदार होने दो
थोड़ा उम्र बढ़ने दो
एम.ए. पास करने दो।
बापी* = पिता