संगम-तट | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता
संगम-तट | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

भेंटती महान बहनें :
गंगा-यमुना
श्रुति से सरस्वती भी

साँवलापन लिए जमुन-जल
गंगा-जल उजला
डुबकी गंगा में
यमुना में भी

महान छंद की तरह
गंगा का पाट
काशी की ओर बढ़ रहा
सागर तक उसकी यात्रा है

संगम-तट पर खड़ा
सोचता –
कितने कवि, योगी,
मुक्ताकांक्षी के हृदयों में
स्पंदित होगा
यह संगम-तट

मेरा अंतस् भी
कितना विस्तृत-कितना कोमल
हुआ जा रहा
गंगा-यमुना के जल से
संगम-तट की सन्निधि से।

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