संदूक
संदूक

सब कुछ छोड़ कर
इसे माँ साथ लाई थी
अपने संस्कारों के साथ जब
पहले पहल घर आई थी

समय गुजर जाता है बगैर जाने
इसका रंग खुरच गया है बगैर जाने

माँ कहती है
पहले इसमें आभूषण और नए कपड़े थे
माँ कहती है तो शायद रहे होंगे
मैंने कभी नहीं देखे

थकान और पुराने कपड़ों से भरता जा रहा है संदूक
जो चीजें नहीं हैं जो होनी चाहिए
माँ उन्हें अनावश्यक कह कर टालती जा रहीं हैं

इसमें कुछ पुराने सिक्के हैं
जो बाजार में अब नहीं चलते

गाड़ी में होती है जब माँ
नए चाल के लड़के इसे देखकर नाक भौं सिकौड़ते हैं
और माँ बार बार अपनी सीट के नीचे झाँकती हैं
और अपनी जगह पा कर चैन की साँस लेती है।

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