सांध्य तारा | एडगर ऐलन पो
सांध्य तारा | एडगर ऐलन पो

सांध्य तारा | एडगर ऐलन पो

सांध्य तारा | एडगर ऐलन पो

गर्मियों की दोपहर थी,
और आधी रात का समय;
और तारे अपनी कक्षाओं में,
चमकते थे पीले से
उज्जवल, शीतल चंद्रमा की चाँदनी में,
जो था अपने दास ग्रहों के बीच,
स्वयं आकाश में,
लहरों पर थी उसकी किरणें।
मैंने ताका कुछ पल
उसकी सर्द मुस्कान को;
उदासीन, बहुत ही भावहीन लगी मुझे
उधर से गुजरा कफन जैसा
एक लोमश बादल,
और मैं मुड़ा तुम्हारी ओर,
गर्वीले सांध्य तारे,
तुम्हारी सुदूर महिमा में
और तुम्हारी किरणें ज्यादा प्रिय होंगी;
क्योंकि मेरे दिल की खुशी
गर्वीला हिस्सा है तुम जिसे
रात को आकाश में वहन करते हो,
मैं और भी सराहता हूँ
तुम्हारी दूरस्थ आग को,
उस ठंडी अधम चाँदनी से बढ़कर।

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