समय का सच | रविशंकर पांडेय
समय का सच | रविशंकर पांडेय
निथरे थिर पानी में दिखता
साफ समय का सच।
क्या बतलाएँ स्वाद
कि कैसे –
ये दिन बीते हैं
मीठे कम खट्टे ज्यादा
या एकदम तीते हैं,
मुँह में भरी हुई
हो जैसे
तीखी लाल मिरच।
बेलगाम बिगड़ैल
समय का
अश्वारोही है
चोर उचक्कों के चंगुल में
फँसा बटोही है,
इनकी टेढ़ी
चालों से
क्या कोई पाया बच।
कितना निर्मम
कितना निष्ठुर
समय कसाई है
छल प्रपंच से मार रहा
भाई को भाई है,
माँगा दानवीर से
छलकर –
कुंडल और कवच।