साइबरेटी | अशोक कुमार
साइबरेटी | अशोक कुमार

साइबरेटी | अशोक कुमार – Saibarati

साइबरेटी | अशोक कुमार

कंप्यूटर पर काम करते-करते पीठ सीधी करके हाथ ऊपर उठा कर उसने अँगड़ाई ली। रात के दो बज चुके थे और वह काम खत्म कर के लेटने की सोच ही रहा था कि कंप्यूटर स्क्रीन पर एक खूबसूरत लड़की की तस्वीर आई और उसने अपनी सारी सेंसुअलिटी उँड़ेलते हुए मुस्कुरा कर पूछा, ‘टायर्ड?’ हेनरी का अँगड़ाई लेना बीच में ही रुक गया, हाथ हवा में लटके रह गए और मुँह खुला रह गया। इंटरनेट पर काम करते-करते अलग-अलग साइट्स खुल जाते हैं, पोर्न साइट्स भी आ जाते हैं लेकिन एक लाइव, मुजस्सिम लड़की और वो भी ऐसे सवाल कर रही है जैसे वो हेनरी के काम को, थकान को बाकायदा देख रही है। उसे बेतरह ताज्जुब हुआ। लड़की बेहद खूबसूरत, शाइस्ता और सेंसुअल थी। एक मिनट के लिए हेनरी जहाँ था वही थम गया।

‘हाँ …थोड़ा सा…!’ हेनरी ने जैसे होश में आ कर जवाब दिया।

‘चैट करोगे?’

‘दरअसल अब मैं सोना चाहता हूँ।’

‘मेरे साथ! …हं हं हं हं…’ और वो बेसाख्ता हँसने लगी।

‘उसके लिए मैं काफी थक गया हूँ… लेकन हाँ अगर मैं इतना थका न होता तो शायद…।’

‘तब तुम्हारा कारण क्या होता?’

‘हर बात का कारण तो नहीं होता न… ज्यादातर बातें मन की होती हैं… बेवजह… अकारण… सिर्फ इसलिए की जी किया… बस!’

‘ये भी तो एक कारण है…।’

‘अच्छा, देखो अब मैं सोने जा रहा हूँ… फिर कभी बात करेंगे… बाई।’

हेनरी ने कंप्यूटर ऑफ कर दिया और फिर जैसे एकदम खाली हो कर अपनी आधी रोकी हुई अँगड़ाई पूरी की, कुर्सी मैं पीछे टिक कर मेज पर रखी बोतल से एक घूँट पानी का गटका और उँगलियों से मेज पर एक बार तबला सा बजा कर उठा और खिड़की के पास आ गया। खिड़की क्या थी पूरी की पूरी लंबी ऊँची शीशे की दीवार थी जहाँ से दूर सोते हुए न्यू यॉर्क शहर की जगमगाती रौशनी और एक आध कभी-कभी गुजरती कार की लाइट नजर आ रही थी। हेनरी लौट कर बिस्तर की ओर जाने लगा की टेलीफोन की घंटी बजी।

‘यस!’

‘क्या कर रहे हो?’ रिचर्ड था।

‘बेस बॉल खेल रहा हूँ! …अरे इस समय कोई क्या करता है यार?’

‘गुड…! तो अपना बैट उठाओ और आ जाओ… हमारा पिच तैयार हो रहा है।’

‘आर यू मैड?’

‘इन ए वे…! हम लोग पार्टी कर रहे हैं और चाहते हैं कि तुम यहाँ आ जाओ। सक्सेना टैक्सस से आया है और उसकी बीवी उस पर दया कर के इंडिया अपने गाँव भाग गई है। हम सब अकेले हैं और चाहते हैं कि सब अकेले मिल कर एक दूसरे के कंधे पर सर रख कर खुशी का इजहार कर सकें।’

बहुत इधर-उधर की बातें हुई। बड़ी ना नुकर हुई लेकिन हेनरी को जाना पड़ा। जब वो रिचर्ड के घर पहुँचा तब रात के तीन बज चुके थे। दूसरे दिन शनिवार था इसलिए किसी को कोई परवाह नहीं थी।

रिचर्ड, शेख, सक्सेना और हेनरी चारों की दोस्ती बड़ी पक्की और दस साल पुरानी थी। तब से जब शेख, सक्सेना और रिचर्ड माइक्रोसॉफ्ट में काम करते थे और हेनरी के पड़ोसी थे। तब चारों शादीशुदा थे और इनकी बीवियों की आपस में अच्छी जान पहचान थी। इन्हीं बीवियों ने अपने-अपने पतियों की मुलाकातें भी करवाई थी और फिर जान पहचान दोस्ती में बदल गई थी। हेनरी टेक्निकल डिजाइनर था और बड़ी-बड़ी कंपनियों में डिजाइन कंसल्टेंट था। फिर समय कुछ बदला और नए-नए लोग बड़ी-बड़ी कंपनियों में बड़े-बड़े ओहदों पर छा गए और वे अपने-अपने डिजाइन कंसल्टेंट्स/एक्सपर्ट्स ले आए। हेनरी का काम कम होने लगा। सब जगह सबको ‘नौजवान’ चाहिए थे। सोच ये थी कि नौजवान ज्यादा ‘आज’ के हिसाब से सोचते हैं। इन ‘नौजवानों’ की उम्र बीस से पच्चीस होती थी और इन्हें बड़ी-बड़ी तनख्वाहों पर रख लिया जाता था। बड़े-बड़े नामी कॉलेजों से ताजा-ताजा सीखे/निकले लोग! तजुर्बे का क्या है? काम करते करते हो जाएगा। हेनरी हालाँकि किसी तौर से बूढ़ा नहीं था लेकिन पता नहीं या तो उसकी अड़तालीस साल की उम्र और बेइंतिहा तजुर्बा आड़े आ गया या समय बदल गया या दुनिया बदल गई। उसका काम बेतरह कम हो गया और उसे अपना बड़ा सा पाँच बैडरूम और स्विमिंग पूल वाला पेंट हाउस छोड़कर सबर्ब में एक छोटे से फ्लैट में शिफ्ट होना पड़ा। उसकी बीवी ने समझ लिया कि अब हेनरी क्या तो कमाएगा और क्या खिलाएगा। वो अपनी चार साल की लड़की को ले कर घर छोड़कर चली गई और हेनरी पर जायदाद के हिस्से का मुकदमा अलग ठोक गई। आजकल हेनरी का समय मुकदमा लड़ने और एक कार कंपनी के लिए एक ‘मोस्ट एडवांस्ड सिक्योरिटी सिस्टम’ डेवलप करने में जाता है।

शेख की बीवी मेक्सिकन थी (या शायद है ये कहना मुश्किल है) और ज्यादातर अपने परिवार के साथ मैक्सिको में ही रहना पसंद करती थी। सक्सेना अब तक शादीशुदा था। दो बड़ी एक ग्यारह और दूसरी पंद्रह साल की लड़कियों को ले कर उसकी बीवी आजकल अपने मायके बिहार के सासाराम गई हुई थी। वो हर साल जाती थी, हर बार महीने भर के लिए। लड़कियों को ‘इंडिया’ बिलकुल पसंद नहीं है लेकिन इस बार जबरदस्ती उन्हें वो ले गई थी।

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रिचर्ड की बीवी शुरू से ही बहुत नकचढ़ी थी और दो साल पहले रिचर्ड के एक करीबी दोस्त के इश्क में पड़ कर वो रिचर्ड को छोड़ चुकी थी।

अंदर ही अंदर सब अकेले थे और एक दूसरे से मिलने और मौज मजे के अवसर ढूँढ़ते रहते थे। ये मिलना बहुत दिनों बाद इस वीकेंड मुमकिन हुआ था।

‘द वर्स्ट थिंग देट हप्पेनेड टु दिस वर्ल्ड इज आई.टी. (सबसे बदतर बात जो इस दुनिया में हुई वो है आई.टी.)’ हेनरी ने अपनी बियर का खाली कैन डस्टबिन में फेकते हुए कहा।

‘अच्छा!’ शेख भड़का, ‘साले ई-मेल भेजते समय, एस.एम.एस. करते समय ये ख्याल नहीं आता। आई.टी. ने लाइफ कितनी सुविधाजनक बना दी है वो कभी कुबूल नहीं करोगे… ब्लडी एहसान फरामोश।’

‘ये जला बैठा है’, रिचर्ड ने अपने गिलास में चौथी बार वोदका भरते हुए हेनरी की तरफ उँगली दिखा कर कहा – ‘इसने चड्डी खरीदी थी और इसके पास कुछ दिनों बाद उसी स्टोर से एक नई ब्रांड की चड्डी का इश्तिहार आ गया, मेल पर भी और फोन पर भी।’

‘नथिंग इज ब्लडी प्राइवेट एनी मोर।’ हेनरी ने एक नया बियर का कैन खोला।

‘देखो भाई हम लोगों ने तो बरसों आई.टी. की कमाई खाई है और खा रहे हैं… बट दिस आई एग्री विथ यू!’ सक्सेना अपनी कुर्सी में पसर गया।

‘क्या? …व्हाट यू एग्री?’ शेख एकदम लड़ने के मूड में आ गया।

‘यु नो …एक बार मैंने और मेरे एक साथी दोनों ने टाइम्स स्क्वेर से न्यू जेर्सी तक टैक्सी ली। टैक्सी में हम लोगों ने क्या बातें की हम लोगों को भी याद नहीं… सब यूँ ही इधर-उधर की ऊल-जलूल…! शाम को जब मैं घर पहुँचा तो पता चला पुलिस मेरे बारे में पूछती हुई आई थी। मैंने पुलिस वाले को फोन किया… पता चला कि हमारे टैक्सी ड्राइवर ने जो कि शायद इजरायली था और अँग्रेजी ठीक से नहीं समझता था, उसने हमारे खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी।’

‘क्या शिकायत?’ शेख ने पूछा।

‘ये की हम दो लोग जिसमें मैं पाकिस्तानी बताया गया था टैक्सी में कहीं बम धमाका करने की योजना बना रहे थे।’

‘देखा… मैं क्या कहता था।’ हेनरी ने सर हिला कर कहा।

‘सक्सेना! तुम बम धमाके करोगे, मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।’ शेख ने मजा लिया।

‘शट आप! मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा…।’

‘तो फिर! टैक्सी ड्राइवर को ख्वाब आया?’

‘बम तो किसी भी भाषा में बम होता है यार।’

‘शेख मजाक छोड़ो यार… उसे सच बताने दो।’ रिचर्ड ने बात पकड़ी।

‘बात ये थी’ सक्सेना ने कहा – ‘कि उस दिन कहीं बम धमाका हुआ था और हम लोग शायद ये डिसकस कर रहे थे कि आखिर लोग बम क्यों फोड़ते हैं? लोगों को क्यों मारते हैं?’

‘तो पुलिस तुम्हारे घर कैसे पहुँच गई?’

‘क्या बच्चों जैसी बातें करते हो यार! क्रेडिट कार्ड से टैक्सी का पेमेंट करोगे तो तुम्हारे घर तो क्या पुलिस तुम्हारे दादा परदादा के घर भी पहुँच जाएगी’

‘सी… दिस इस व्हाट आई मीन’ हेनरी ने पिज्जा का हिस्सा चबाते हुए कहा, ‘आई टी इज द वर्स्ट थिंग।’

‘ये बात तो है कि प्राइवेसी खत्म हो गई है। ‘शेख ने अपना खाली गिलास भरने के लिए उठते हुए कहा – ‘लेकिन आई.टी. के जो अड्वॅंटेजेस हैं उनके मुकाबले ये इतनी बड़ी बात नहीं है।’

‘हे! होल्ड ओन! दिस इस सीरियस! …सक्सेना! पुलिस तुम्हारे पीछे अब भी है?’

‘आई डोंट नो। दो तीन बार उनसे मुलाकात के बाद शायद पुलिस की समझ में आ गया होगा कि ये गलत रिपोर्ट है क्योंकि वो चुप बैठ गई है। लेकिन परेशानी तो मुझे हुई न।’

‘देखो यार! ये बुड्ढों वाला रोना बंद करो और आज की बात करो… ऐसी कोई चीज है जिसके फायदे और नुकसान दोनो न हों।’

‘फायदों की ऐसी-तैसी, सारे फायदों के सामने तुम बाजार में नंगे खड़े हो! …वो तुमको चलता है?’

‘टॉपिक चेंज करो यार… एनफ …हेनरी! व्हाट आर यु डिजाइनिंग दीज डेज?’ (तुम आजकल क्या डिजाइन कर रहे हो?)

‘ए सिस्टम फॉर द फ्यूचर कार्स (भविष्य की कारों के लिए एक सिस्टम) जो कि एक किलोमीटर पहले ही ड्राइवर को खतरे से आगाह कर देगा।’

‘अरे वाह! याने एक किलोमीटर पहले ही मुझे मालूम पड़ जाएगा कि मेरी बीवी घर पर है या नहीं।’ सक्सेना ने बड़ी जोर का ठहाका लगाया।

‘किसी से जिक्र मत करना… ये डिजाइन एकदम यूनीक है और अभी सीक्रेट है।’ हेनरी ने कहा – ‘मैं फेसबुक पे डाल दूँ! …हं हं हं हं…!’ शेख चहका।

दोस्तों की नोक झोंक और पार्टी तब तक चली जब तक कि नशे ने सबको दबोच कर नींद की आगोश में नहीं फेक दिया।

जब तक हेनरी अपने फ्लैट पर लौटा शाम के चार बज चुके थे और उसके सर में बेतरह दर्द हो रहा था। उसने कॉफी गर्म की। सोचा थोड़ा और सो लिया जाए लेकिन फिर ये ख्याल उसने अपने बचे हुए काम के मद्देनजर खारिज कर दिया। कंपनी को अपना डिजाइन और रिपोर्ट जमा करने के लिए हालाँकि उसके पास अब भी दस दिन थे लेकिन उसके पहले उसे तमाम जर्नलस और नोट्स रिफर करने थे और एक लंबी रिपोर्ट तैयार करनी थी। हेनरी ने कॉफी का घूँट भरा और कंप्यूटर ऑन किया।

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‘हाय ब्यूटीफुल!’ कंप्यूटर ऑन होते साथ फिर वो ही रात वाली लड़की स्क्रीन पर आ गई।

‘हाय!’ हेनरी को ताज्जुब हुआ, ‘तुम फिर?’

‘हाउ वाज योर पार्टी?’

‘तुम्हें कैसे मालूम मैं पार्टी में गया था?’

‘हमें सब मालूम है… तुमने दो कैन बियर पी और फिर…।’

‘और फिर…?’

‘और आगे कुछ साफ-साफ पता नहीं चल पाया लेकिन मजा किया तुमने…।’

‘हाउ डू यु नो?’

‘पिज्जा तो तुम ही ने आर्डर किया था न…।’

‘ओ आई सी…।’

‘सो हाउ डू यु फील?’

‘व्हाट नॉनसेंस… तुम हमारे ऊपर नजर रखे हो।’

‘नजर तो तुम पर सभी रखे हुए हैं…।’

‘याने?’

‘याने तुम्हारा बैंक अकाउंट, तुम क्या खरीदते/खाते हो, तुम कहाँ जाते हो, क्या करते हो, कंप्यूटर पर क्या ढूँढ़ते/पढ़ते हो… क्या है जिस पर तुम पर नजर नहीं रखी जा रही है… और तुम तो कंप्यूटर पर इतना काम करते हो तुमसे बेहतर ये बात और कौन जान सकता है।’

‘असल में ये टेक्नोलॉजी टेक्नीशियंस ने और बड़ी जल्दी-जल्दी ईजाद कर दी… इसमें सामाजिक इशूज कहीं बहुत पीछे छूट गए।’

‘समाज हमेशा से ही भ्रष्ट और मतलबी है लेकिन खैर ये सब छोड़ो …अपनी बात करो, हम समय से पीछे न छूट जाएँ! …मिलने की तमन्ना है?

‘आज मुझे बेहद काम है।’

‘काम तो मुझे भी बहुत है। मैं तुम्हारे जैसे न जाने कितने लोगों को न जाने किन-किन बातों के लिए तसल्ली और दिलासा देती रहती हूँ।’

‘तुम यही काम करती हो।’

‘यही समझ लो… ज्यादातर लोग जो मेरी मदद चाहते हैं उनमें ज्यादातर आत्महत्या के ख्वाहिशमंद होते हैं।’

‘कारण?’ हेनरी अपनी कॉफी का प्याला ले कर कंप्यूटर के सामने लड़की की बातों में इंटरेस्ट लेते हुए बैठ गया।

‘कारण बहुत हैं! …इंसेक्युरिटी (अनिश्चितताएँ) बढ़ गई हैं, स्पर्धा बढ़ गई है, कोई सताया हुआ है कोई अपने आपको सता रहा है।’

‘तुम्हारा नाम भी तो होगा या तुम्हें कंप्यूटर परी कहा जाए।’

‘मेरा नाम है लिंडा… लिंडा ग्रीन!’

जरा देर के लिए खामोशी रही फिर लिंडा ने कहा – ‘क्या तुम मेरे साथ सोना पसंद करोगे?’

‘फिर वो ही बात।’

‘आज तो तुम थके हुए भी नहीं हो।’

‘मेरे साथ ही क्यों?’

‘क्योंकि मैं जानती हूँ कि तुम्हारी बीवी से तुम्हारा तलाक हो चुका है और औरतों के साथ तुम्हारे सोने की औकात बहुत कम हैं।’

‘तो क्या ये तुम्हारी समाज सेवा होगी?’

‘एक तरह से…।’

‘मुफ्त?’

‘हं हं …मुफ्त क्या होता है हेनरी!’

‘तुम्हें मेरा नाम भी मालूम है?’

‘मुझे ये भी मालूम है कि तुम कौन सी साइज का अंडरवियर पहनते हो… हं हं हं हं…।’

‘डैम!’ हेनरी ने इंटरनेट ऑफ कर दिया।

इंटरनेट ऑफ करके हेनरी ने कंप्यूटर पर अपने प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया। तभी उसके सेल फोन पर मैसेज आया ‘कितने रूड हो तुम! मैं इतने प्यार से तुमसे बात करना चाहती हूँ और तुम ने इंटरनेट ऑफ कर दिया लिंडा। हेनरी ने अपने दोनों हाथ हवा में उछाल कर ओंठ गोल करके डिस्गस्ट में हवा छोड़ी। फिर उसने फोन भी ऑफ कर दिया। वैसे भी आज रविवार था और किसी का फोन आने की कोई उम्मीद नहीं थी। उसके बाद शांति से हेनरी ने चार घंटों तक अपने प्रोजेक्ट पर काम किया। जब वह फारिग हुआ तब तक रात के दस बज चुके थे और उसे कुछ खाने का जी कर रहा था। उसने पिज्जा आर्डर किया।

दिन-रात लगे रहने के कारण हेनरी का काम दस दिन की जगह छ दिनों में समाप्त हो गया। इन छ दिनों में न वह कहीं गया, न किसी से मिला और अक्सर लिंडा के डिस्टर्ब किए जाने के बावजूद अपना संयम बरकरार रख सका। छ दिन बाद आज शाम को वह रिलैक्स्ड था। उसने सोचा जरा बाहर जा कर थोड़ी चहलकदमी करेगा और फिर किसी शांत से रेस्टोरेंट में बैठकर अच्छा सा भोजन करेगा। कितने दिन तो हो गए थे पिज्जा खाते खाते।

घड़ी में आठ बज रहे थे। उसने अपनी टी शर्ट बदली, पाँवों में स्लिप ऑन जूते डाले और अपने फ्लैट का दरवाजा खोला। सामने वाले फ्लैट का दरवाजा खुला हुआ था और वहाँ रहने वाली मोटी अकेली औरत के छोटे-छोटे चारों बच्चे हमेशा की तरह ही रिरिया रहे थे और उनकी मोटी अकेली माँ उन्हें अपनी आदत के मुताबिक मार-पीट कर चुप करा रही थी। ये तो रोज की बात थी। हेनरी ने लिफ्ट ली और नीचे उतर गया। नीचे दस कदम बाद बिल्डिंग का मेन गेट था और सामने थी सड़क। वो इस उहापोह में पड़ गया की जाए कहाँ। इतालियन रेस्टोरेंट में या इंडियन में। इनमें से किसी में भी जाने के लिए सड़क क्रॉस करना पड़ती और जरा दूर तक चलना पड़ता। उसने इधर-उधर देखा। ट्रैफिक बहुत था। आस-पास छोटी बड़ी एक दूसरे से लगी बिल्डिंग्स भी थी और कुछ हाई राइज भी। आवारा बच्चे बिल्डिंग्स की ‘स्टूपस’ (छोटी सीढ़ियों) पर आने-जाने वालों की सुविधा की परवाह किए बगैर कुछ-कुछ खेल रहे थे। अपने चारों ओर देख कर उसके चेहरे पर एक तंज की मुस्कराहट तैर गई। ‘वाह! हेनरी! वाह! …क्या मुकद्दर पाया है तुमने!’ कहाँ अपना 555 पार्क एवेन्यू का पैंट हाउस और कहाँ ब्रोंक्स की इस बस्ती की 196 स्ट्रीट! पार्क एवेन्यू में क्या ठाठ की जिंदगी थी। क्या बड़े-बड़े लोगों की बस्ती थी। क्या पार्क थे, क्या बिल्डिंग्स थी, क्या रेस्टोरेंट्स थे, क्या तहजीबमंद अपर क्लास लोग थे …और कहाँ ये ड्रग्स बेचने वालों और पोर्तुरीकंस और लैटिन अमेरिकंस से भरी इतनी भीड़-भाड़ वाला ब्रोंक्स का इलाका। …ब्रोंक्स में कौन आता है? …वो जो या तो बर्बाद हो जाता है या फिर मामूली माध्यमवर्गीय होता है। ‘अब तुम बर्बाद भी हो और माध्यमवर्गीय हो गए हो, हेनरी!’ ‘…कोई बात नहीं” उसके अंदर से जैसे आवाज आई – ‘आज कह लो तुम्हें जो कहना हो… लेकिन कल जब मेरा डिजाइन दुनिया देखेगी न… तब देखना मैं फिर पार्क एवेन्यू जा कर रहने लायक हो जाऊँगा।’

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आसपास छोटी-छोटी ‘बुडेका’ (परचून से ले कर सभी जरूरी चीजें रखने वाली छोटी दुकानें) थी। छोटे-छोटे मुकदमें लड़ने वाले छोटे-छोटे वकीलों के छोटे-छोटे दफ्तरनुमा थे और हवा मैं फ्राइड चिकेन और इस तरह के खाने की खुशबुएँ तैर रही थी। हेनरी सड़क पर जरा आगे बढ़ा ही था की एक बढ़ी दाढ़ी, गंजे सर और बढे नाखूनों वाला एक निहायत ही गंदा काला शख्स ‘नीग्रो’ एक निहायत ही गंदा लंबा सा ओवरकोट पहने लाल आँखों से देखता हुआ हेनरी का रस्ता रोक कर खड़ा हो गया। ‘गिव मी मनी।’ (मुझे पैसा दो।)

‘हैव नो मनी।’ हेनरी आगे बढ़ने लगा।

आदमी ने आँखें और बड़ी-बड़ी कर के अपना मुँह हेनरी के मुँह के करीब लाते हुए एक बार फिर अपनी भभका छोड़ती भर्राई हुई लेकिन इस बार ज्यादा तुर्श आवाज में कहा। ‘गिव में मनी।’

हेनरी को लगा हो सकता है कि ये शख्स अब शायद शारीरिक रूप से नुकसान पहुँचाने पर आमादा हो जाए। वो जरा झुका और बाएँ से डुक कर के बचते हुए तकरीबन भाग लिया। तब तक रेस्टोरेंट आ गया।

रेस्टोरेंट में भीड़ कम थी। हेनरी बैठा ही था कि एक खूबसूरत सी गोरी लड़की शायद कोई विद्यार्थी रही होगी जो अपने खाली समय में काम कर के पैसे कमा रही होगी। उसके सामने आई, लड़की ने हेलो कहा और उसे एक मेनू कार्ड थमाया।

‘यु आर न्यू हियर?’ (तुम यहाँ नई हो) हेनरी ने उसकी तरफ देख कर पूछा।

‘या’

‘व्हाट अ ब्यूटीफुल गर्ल लाइक यू डूइंग विथ दी ड्रैगन।’ (तुम जैसी खूबसूरत लड़की ड्रैगन के पास क्या कर रही है?)

लड़की हँसी और चली गई। हेनरी ने भी हल्का महसूस किया और अपनी ही शैतानी पर खुद ही मुस्कराते हुए मेनू देखने लगा।

रात को जब वह वापस पहुँचा तो उसके अंदर चार बोतल बियर और अच्छा तबियत का खाना उसकी रिलैक्स्ड तबियत को दोबारा चौबारा कर चुके थे। हेनरी उस दिन आ कर सीधा सो गया।

सुबह उठ कर उसने अपने प्रोजेक्ट और डिजाइन का आखिरी बार मुआयना किया फिर सोचा जरा मेल चेक कर लिया जाएँ। इंटरनेट ऑन करके उसने अपना मेल चेक किया। तबियत रिलैक्स्ड थी। काम हो चुका था। दो घड़ी फेसबुक भी देखने में क्या हर्ज था। लिंडा फिर आ गई।

‘लिसेन हनी… आई लॉन्ग फॉर यू…।’ (मुझे शिद्दत से तुम्हारी चाह है।)

‘ऑलराइट बेबी… हियर आई एम।’ आज हेनरी और लिंडा ने चैट की।

चैट में एक-दूसरे को किस किया, एक-दूसरे के कपड़े उतारे और बड़ी देर तक मुहब्बत की तमाम तरह की तमाम बातें की। करीब घंटे भर बाद लिंडा बड़ी जल्दी में लगी। बोली, ‘आई गोट टू गो।’ (मुझे जाना है)। लिंडा चली गई थी लेकिन अपना पता और फोन नंबर दे गई थी। हेनरी ने इत्मीनान की अँगड़ाई ली और उठकर एक प्याला अपने लिए कॉफी गर्म करके पी।

दोपहर को खाना खाने के बाद हेनरी ने सोचा कि अब उसे अपना डिजाइन और अपनी रिपोर्ट क्लाइंट को भेज देनी चाहिए। उसने देखा तो उसके होश उड़ गए। कंप्यूटर से प्रोजेक्ट उड़ चुका था। हेनरी बर्बाद हो गया था। उसकी मेहनत मटियामेट हो चुकी थी। उसके पास तो इतना पैसा भी नहीं था कि वह क्लाइंट से लिया हुआ एडवांस भी वापस कर सके। ‘ये जरूर लिंडा की कारिस्तानी है’ उसने सोचा। उसने लिंडा को फोन लगाया, साइट पर देखा, तस्वीर फेसबुक पर ढूँढ़ी, सब गलत, सब झूठ। माथा पीटने के सिवा कोई चारा नहीं था।

चार हफ्तों बाद एक नई पैदा हुई कार बनाने वाली कंपनी का अखबारों में बड़ा सा विज्ञापन आया। ‘हमारी कार का एडवांस सिक्योरिटी सिस्टम आपको एक किलोमीटर पहले ही खतरों से आगाह कर देगा।’

उसी समय हेनरी के फ्लैट में आंसरिंग मशीन पर मैसेज रिकॉर्ड हुआ, ‘हाय हेनरी! सक्सेना! …आई जस्ट सॉ दी एड (अभी विज्ञापन देखा)… ये तुम्हारा ही डिजाइन किया हुआ सिक्योरिटी सिस्टम है न! …वेल डन मैन।’

उसके बाद एक मेसेज और रिकॉर्ड हुआ, ‘हेनरी तुमने हमारे साथ धोखा किया है। हमसे पैसे लेकर हमारी प्रतिस्पर्धी कार कंपनी को सेक्युरटी सिस्टम बेच दिया है। अब हम अदालत में मिलेंगे।’

तब तक आंसरिंग मशीन से जरा दूर बगल में पच्चीस नींद की गोलियाँ खाए हेनरी सो चुका था।

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