सागर-संगीत | राकेश बिहारी
सागर-संगीत | राकेश बिहारी

सागर-संगीत | राकेश बिहारी – Sagar-Sangeet

सागर-संगीत | राकेश बिहारी

स्मार्ट और खूबसूरत क्रूज-बालाओं के सुमधुर स्वागत गीत और ताजा फूलों की भीनी-भीनी खुशबू के बीच सुपर स्टार लिब्रा के स्वागत कक्षा में प्रवेश करते ही राहुल क्षण भर को जैसे अपनी सारी थकान भूल गया। उसे आश्चर्य हो रहा था कि कैसे क्रूज की इस अनदेखी दुनिया को अपनी आँखों के कोर से छूते ही मुंबई क्रूज टर्मिनल पर पिछले आठ घंटे की थका देनेवाली प्रतीक्षा से उपजी तकलीफों को वह भूल सा गया था अचानक। कस्टम क्लेयरेंस की चिक-चिक, केबिन कन्फर्मेशन के लिए की गई भाग-दौड़ और उससे भी पहले लायन्स गेट पर मि. माथुर के इंतजार में धूप में खड़े-खड़े बिताए उन तकलीफदेह घंटों की लेश मात्र छाया भी नहीं रह गई थी उसके चेहरे पर। उस दिन जब चीफ आपरेटिंग ऑफिसर मि. सक्सेना ने उसे अपनी केबिन में बुला कर इस टूर पर जाने की जानकारी दी थी, वह समुद्र की सतह पर तैरते एक फाइव स्टार क्रूज की कल्पना भर से ही रोमांचित हो गया था। लेकिन तब उसने 216 मीटर लंबे, 28 मीटर चौड़े और 42000 टन भारी सुपर स्टार लिब्रा की इस शानो-शौकत की कल्पना तक भी नहीं की थी।

अपने ट्राली बैग को गलियारे में बिछे मखमली कारपेट पर घसीटता हुआ अभी वह केबिन में दाखिल हुआ ही था कि पब्लिक एड्रेस सिस्टम का स्पीकर गूँज उठा – ‘सुपर स्टार लिब्रा में आपका स्वागत है। आपकी सुरक्षित, आरामदेह और आनंददायक यात्रा हमारी मूल विशेषता है। हम गोवा की तरफ प्रस्थान कर चुके हैं। सभी अतिथियों से आग्रह है कि वे अगले दस मिनट में सेफ्टी ड्रिल के लिए असेंबली स्टेशन पर पहुँच जाएँ। आप सबको लाइफ जॅकेट्स भी वहीं दिए जाएँगे।’

राहुल सेफ्टी ड्रिल में जाने की बात कहता ही कि उसके पहले विक्रांत बोल उठा, ‘छोड़ो यार यह ड्रिल-व्रिल का चक्कर। साढ़े नौ बजे तक पूल बार बंद हो जाएगा और फिर अँधेरी रात में डेक पर बैठ कर ड्रिंक लेने का मजा ही कुछ और है…’ और न चाहते हुए भी वह असेंबली स्टेशन के बजाय टॉप डेक पर जाने के लिए लिफ्ट तक चला आया था।

पूल बार लगभग बंद होने को था। विक्रांत जब तक ब्लैक लेबल के लिए काउंटर तक बढ़ा, राहुल ऑरेंज जूस ले कर रेलिंग तक आ गया था। समंदर की छाती पर सवार अँधेरे को चीरते क्रूज की रफ्तार तेज हो गई थी। क्रूज की रफ्तार से बनती और पीछे छूटती लहरें रात के अँधेरे में किसी चौड़े हाईवे की तरह चमक रही थी। राहुल को चार महीने की अपनी बिटिया याद हो आई जो डिहाइड्रेशन के कारण हॉस्पीटल में भर्ती थी। रंजना नहीं चाहती थी कि वह उन्हें छोड़ कर जाए। मन तो उसका भी नहीं था, लेकिन सी.ओ.ओ. ने खुद उसे इस टूर के लिए नॉमिनेट किया था, वह इतनी आसानी से ना नहीं कर सकता था। डॉक्टर की बातों ने उसे थोड़ी तसल्ली दी थी – ‘डोंट वरी, शी इज डूइंग वेरी वेल। हम एक-दो दिन में इसे हॉस्पिटल से डिसचार्ज कर देंगे। यू कैन गो ऑन टूर… योर वाइफ इज मोर दैन सफि-शिएंट हियर…।’

उसने रंजना का नंबर मिलाया – ‘हैलो, कैसी हो? बेटी कैसी है?’

‘ठीक हूँ, बेटी भी ठीक है। सिस्टर का इंतजार कर रही हूँ। रातवाला इंजेक्शन लगना अभी बाकी है। क्रूज चल पड़ी?’

‘हाँ। क्रूज पर ही हूँ, नवें डेक पर… तुम होती तो मजा बढ़ जाता। यहाँ की तो दुनिया ही दूसरी है।’

‘कोई बात नहीं, फिलहाल बेटी ठीक हो जाए यही काफी है। अपना ध्यान रखना। फोन करते रहना।’

राहुल कुछ कहता इसके पहले ही मोबाइल कट गया। वह देर तक इंतजार करता रहा। वह रंजना को समंदर का शोर सुनाना चाहता था। वह फोन पर बेटी की आवाज सुनना चाहता था। लेकिन कनेक्टिविटी नहीं आनी थी सो नहीं आई। वह बेचैनी से डेक पर टहलता रहा। डेक से बाहर अँधेरे में घिरा समुद्र उसे भयावह लगने लगा था। उसने सोचा यदि इस समय कोई दुर्घटना हो गई तो…? दुर्घटना की कल्पना मात्र से ही उसे याद आया विक्रांत के चक्कर में उसने सेफ्टी ड्रिल में भी हिस्सा नहीं लिया। अपनी लाइफ जैकैट भी नहीं ली। भय और आशंका ने क्षण भर पहले के उसके प्रथम समुद्र यात्रा के आनंद और रोमांच का अतिक्रमण कर लिया था। इस बीच विक्रांत ड्रिंक लेने के बाद पाँचवें डेक पर स्थित ‘ताज बाइ द वे’ में डिनर के लिए चला गया था। वह नवें डेक पर ही ‘सैफ्रॉन’ में गया। सूप पीने की कोशिश की लेकिन गले से उतरा नहीं। कुछ खाने की भी इच्छा नहीं हुई। वह यूँ ही अपने केबिन में लौट आया।

केबिन आकार में छोटा था लेकिन उसमे जरूरत की सारी चीजें मौजूद थीं। अटैच्ड बाथरूम, उसमें ठंडे-गरम पानी के नल, सोफा, राइटिंग टेबल, राइटिंग पैड, पेन, अकाई का पोर्टेबल रंगीन टेलीविजन, आईने से सुसज्जित एक छोटा लेकिन निहायत ही खूबसूरत ड्रेसिंग टेबल, उसके ड्रॉअर में हिव्सपर और कंडोम का छोटा पैकेट और बहुत कुछ… उसने कंडोम का पैकेट उठा कर देखा। पहली बार उसके हाथ में इंपोर्टेड कंडोम का डब्बा था जिसमें गुलाबी, जामनी और हल्के रंगों के दो-दो यानी कुल छह कंडोम थे। तीन प्लेन और तीन डॉटेड। कंडोम के डिब्बे को देख-छू कर राहुल की नसों में एक स्वाभाविक उत्तेजना दौड़ती इसके पहले ही उसकी नजर राइटिंग टेबल पर पड़े एक इनफार्मेशन किट पर पड़ी। उसने उसे उठा कर पलटना शुरू किया… सबसे ऊपर वेलकम मैसेज, उसके बाद सेफ्टी इनफॉर्मेशन नोटिस, केबिन सर्विस डायरेक्टरी और सबसे नीचे टीवी चैनल डायरेक्टरी। केबिन सर्विस डायरेक्टरी में जहाँ पहले से दसवें डेक तक फैले क्रूज की विभिन्न सुविधाओं और उसके लोकेशन का उल्लेख था वहीं वेलकम मैसेज में शाम छह बजे से ले कर सुबह चार बजे तक होनेवाले विभिन्न मनोरंजन कार्यक्रमों की समय सूची थी। लेकिन उसकी आँखें सेफ्टी इनफॉर्मेशन फार्म पर ही अटक गईं –

‘सुपर स्टार लिब्रा में पर्याप्त मात्रा में लाइफ बोट्स, लाइफ जैकेट्स और लाइफ रैफ्ट्स उपलब्ध हैं। क्रूज के प्रस्थान करते ही सभी यात्री असेंबलिंग स्टेशन पर होनेवाली सेफ्टी ड्रिल में जरूर जाएँ। वहीं उन्हें उनका लाइफ जैकेट भी दिया जाएगा और उसके इस्तेमाल की विधि भी बताई जाएगी।’

राहुल एक बार फिर परेशान हो गया… उसने तो सेफ्टी ड्रिल अटेंड ही नहीं किया, लाइफ जैकेट भी नहीं ली… उसने मन ही मन विक्रांत को कोसा… उसकी परेशानी पसीने की बूँदों में छलछला आई थी… उसे सिगरेट की तलब महसूस हुई… उसने ऐश ट्रे खोजने की कोशिश की लेकिन अगले ही पल उसका ध्यान सेफ्टी इनफार्मेशन फार्म के अगले प्वाइंट पर गया और वह कसमसा कर रह गया… ‘केबिन के भीतर धूम्रपान वर्जित है… कृपया ऐसा न करें, यह खतरनाक साबित हो सकता है…’ सिगरेट पीने की इस असमर्थ तलब ने उसकी परेशानी को एक अजीब तरह की बेचारगी में बदल दिया था लेकिन सेफ्टी इनफॉर्मेशन फार्म के तीसरे प्वाइंट ने उसे हल्की-सी सांत्वना दी – ‘सेफ्टी इनफॉर्मेशन और सेफ्टी ड्रिल, टेलीविजन पर दिखाए जानेवाले सिप चैनल पर भी उपलब्ध हैं।’ राहुल ने तसल्ली की ठंडी साँस ली और वह तेजी से रिमोट ले कर चैनल बदलने लगा।

एक क्रूज बॉय और एक क्रूज गर्ल सेफ्टी ड्रिल करवा रहे थे। लाइफ बोट क्या है? इसे कब समंदर में उतारा जाता है? कैसे क्रूज के यात्रीगण लाइफ जैकेट पहन कर लाइफ बोट में उतरते हैं… और इस जैसी कई चीजें… इससे जुड़ी कई हिदायतें… राहुल का रोम-रोम एक अदृश्य भय से सिहर रहा था। टीवी पर उसने सेफ्टी ड्रिल तो देख ली लेकिन लाइफ जैकेट…? वह खुद को काफी असुरक्षित महसूस कर रहा था…’ आपातकालीन स्थितियों में इमर्जेंसी अलार्म बजाई जाएगी। इमर्जेंसी अलार्म में छह छोटी-छोटी व्हिसिलों के अलावा एक लंबी-सी व्हिसिल होगी जिसे सुनते ही आप तुरंत अपनी लाइफ जैकेट ले कर असेंबली स्टेशन तक पहुँच जाएँ। ‘सुपर स्टार लिब्रा’ में कुल तीन असेंबली स्टेशन हैं – ए, बी औरसी… सेफ्टी ड्रिल की इस वीडियो प्रस्तुति ने राहुल का असुरक्षा बोध और बढ़ा दिया था। उसने चैनल बदल कर कोई मनोरंजन चैनल देखना चाहा। लेकिन तेज आवाज और चमचमाती-सी झिलमिलाहट के बीच स्टार गोल्ड चैनल का आना और फिर चला जाना बता रहा था कि क्रूज सागर तट से बहुत दूर जा चुका था कि तभी ‘पब्लिक एड्रेस सिस्टम’ पर एक घोषणा हुई – ‘अतिथिगण, कृपया ध्यान दें। स्टार क्लब अब आपके मनोरंजन के लिए खुल गया है। शो की टिकटें फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व्ड बेसिस पर पाँचवें डेक पर क्लब के बाहर उपलब्ध हैं। क्लब में अपने साथ मोबाइल फोन, कैमरा या कोई अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरण नहीं लाएँ। धन्यवाद।’

राहुल ने घड़ी पर नजर दौड़ाई, पौने बारह होने को थे। उसने एक बार वेलकम मैसेज पर छपी समय सूची पर भी ध्यान दिया – ‘रात के बारह बजे से दो बजे तक – टॉपलेस शो – क्लब कैबरे, स्टारडस्ट लाउंज, डेक – पाँच’। टॉपलेस कैबरे पढ़ते ही उसके भीतर एक अजीब तरह की झनझनाहट दौड़ गई। उसने अब तक कैबरे के बारे में सिर्फ सुना था… ट्रेनिंग के दौरान पुणे में एक-दो बार वह डिस्को जरूर जा चुका था लेकिन अब तक उसे कैबरे देखने का मौका नहीं मिला था… उसने सोचा यह क्रूज नहीं, जन्नत है और मन ही मन मुस्करा उठा। उसने झट से कपड़े बदले। कहीं देर न हो जाए। थोड़ी देर पहले उसके मन में दुर्घटना की आशंका से जो असुरक्षा बोध फैल रहा था, अचानक ही उस पर टॉपलेस युवतियों की झूमती-मचलती काल्पनिक छवियों ने कब्जा जमा लिया था। अगले पाँच मिनट में वह स्टारडस्ट लाउंज के सामने था।

टिकट काउंटर पर लगी भीड़ को देख कर उसे सार्वजनिक छुट्टी के दिन के पहले की शाम शराब की दुकानों पर लगी भीड़ की याद हो आई। लग रहा था पूरा क्रूज यहीं आ गया था। डिसप्ले केस में लगे कैबरे के पोस्टरों ने उसकी कल्पना को और फैलने का मौका दिया। दो तरह की टिकटें थीं – फ्रंट स्टॉल हजार रुपए और बैक स्टॉल आठ सौ रुपए। उसने सोचा वह सिर्फ दो सौ रुपए के लिए दूर से नहीं देखेगा। उसने अपने पर्स से पाँच सौ के दो पत्ते निकाले और खिड़की पर लगी लाइन में खड़ा हो गया। उसके आगे अब दो ही लोग बचे थे कि उसने लिफ्ट से मि. माथुर को निकलते हुए देखा। वह भी इधर ही आ रहे थे। वह सकपका गया। दूसरे सेक्शन का कोई बड़ा अधिकारी भी हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन अपने ही बॉस के साथ कैबरे देखने की बात वह सोच भी नहीं सकता था। माथुर साहब की इस अचानक उपस्थिति ने उसके उत्साह पर घड़ों पानी फेर दिया। वह चुपचाप अपने केबिन की तरफ चला गया।

केबिन का दरवाजा बंद करते हुए उसके मन में माथुर के लिए एक भद्दी-सी गाली थी… एक तो मौका मिला था, वही भी इस साले के कारण हाथ से फिसल गया। बारह बज चुके थे, उसने सोचा शो शुरू हो चुका होगा… उसकी आँखों के आगे डिस्प्ले विंडो में लगी युवतियों से मिलती-जुलती लड़कियों की कई-कई टॉपलेस छवियाँ बनने-बिगड़ने लगी थीं। इस तरह एक नायाब मौका उसके हाथ से निकल जाएगा, उसने सोचा भी न था। उसने किसी तरह खुद को तसल्ली दी… एक रात अभी और बाकी है। कल वह इस अवसर को नहीं गँवाएगा… अब माथुर कल तो आने से रहा और आ भी गया तो क्या कर लेगा… यदि उसे हमारे साथ यह सब देखने में संकोच नहीं तो फिर वह ही उसका लिहाज क्यूँ करे? चाहे वह खुद को लाख ढाढ़स बँधा ले पर एक नई और मजेदार दुनिया का साक्षी होनेवाली इस मध्य रात्रि का चौबीस घंटों के लिए स्थगित हो जाना उसे खल रहा था… उसने फिर से टेलीविजन के चैनल बदलने की कोशिश की। कोई भी इंटरटेनमेंट चैनल नहीं आ रहा था। क्रूज लगातार समंदर की सतह पर तैर रहा था… उसने पर्दा सरकाया। अँधेरे समुद्र में दूर कोई रोशनी का पुंज थिरक रहा था… शायद कोई मालवाहक पोत था वह… अपनी ही गति में समुद्री लहरों से खेलता… टकराता… बाहर हवा की तेज सरसराहट होगी शायद… लहरों का शोर भी। लेकिन बंद केबिन के शीशे से झाँकते हुए इन आवाजों की कल्पना ही की जा सकती थी कि तभी डोरबेल की आवाज आई। इस समय कौन हो सकता है? विक्रांत तो इतनी जल्दी नहीं आनेवाला… वह तो नाइट क्लब के बाद शायद कसीनो भी जाएगा… फिर कौन हो सकता है इस समय? उसने अनमने ढंग से दरवाजा खोला, सामने एक खूबसूरत क्रूज गर्ल खड़ी थी… हाथ में दो लाइफ जैकेट लिए…

‘मे आई कम इन, सर?’

‘यस प्लीज।’ दरवाजे में ऑटो लॉक लगा था, उसके अंदर आते ही वह अपने आप बंद हो गया।

राहुल ने बेड पर बैठते हुए उसे सोफा पर बैठने का इशारा किया।

‘सर, आप लोग सेफ्टी ड्रिल में नहीं आए…?’

‘लेकिन, तुमको कैसे पता?’

‘लाइफ जैकेट रजिस्टर में आपके केबिन की इंट्री नहीं थी।’ सफेद यूनीफार्म में फँसी वह लड़की यकीनन बहुत खूबसूरत थी… अच्छी लंबाई, फेयर कांप्लेक्शन, तीखे नक्श और भरा-भरा जिस्म… राहुल बेझिझक इस खूबसूरती को देख रहा था… उसने मन ही मन सोचा क्या कैबरे डांसर भी इतनी ही खूबसूरत होगी? …झिझक या संकोच की कोई झिल्ली क्रूज गर्ल के चेहरे पर भी नहीं थी… जबकि उसे पता था कि सामने बैठा मर्द उसे लगातार देख रहा है… अपनी आँखों में एक खास तरह की कामना लिए…।

‘तो तुम लाइफ जैकेट देने आई हो?’

‘हाँ, हम अपने किसी मेहमान को असुरक्षित नहीं छोड़ सकते… वह चाहे तो भी… आपकी सुरक्षा हमारा फर्ज है।’ राहुल ने सोचा लड़की खूबसूरत दिखती ही नहीं खूबसूरती से बोलती भी है। नाइट क्लब के संभावित मजे के हाथ से छूट जाने के बाद अपनी निराशा और कुंठा के बीच यह क्रूज गर्ल लाइफ जैकेट ले कर नहीं, उसके लिए एक पूरी जिंदगी ले कर आ गई थी… खूबसूरत और मादक भी… वह उसे जल्दी नहीं जाने देना चाहता था।

‘लेकिन मुझे तो इसका इस्तेमाल करना नहीं आता।’

‘मैं हूँ न सिखाने को… लेकिन सर, एक बात पूछूँ? बुरा तो नहीं मानेंगे?’

‘नहीं-नहीं, जो चाहो निःसंकोच पूछ सकती हो।’

‘आप सेफ्टी ड्रिल में नहीं आए, इसमें कोई आश्चर्य नहीं। हर यात्रा में दो-चार केबिन के लोग नहीं आते… कुछ को पता नहीं चलता तो कुछ डेक से संमदर देखने का सब्र नहीं कर पाते… लेकिन आप इस समय यहाँ…?’

‘मैं समझा नहीं, यहाँ नहीं तो कहाँ जाऊँ मैं, अब तो डेक से भी अँधेरे के सिवा कुछ और नहीं दिख रहा।’ राहुल जानबूझ कर अनजान बनने की कोशिश कर रहा था। वह चाह रहा था पहले वही खुले।

‘मेरा मतलब आप नाइट क्लब नहीं गए। जब पूरा क्रूज वहाँ जमा हुआ है, आप के इधर होने का कारण…?’ राहुल को अच्छा लगा, उसे कोई कोशिश नहीं करनी पड़ रही, लड़की खुद पटरी पर आ रही है।

‘मन तो था जाने का, लेकिन इतनी नजदीक से खूबसूरती को देख भर के उत्तेजित होना मुझे पसंद नहीं… इससे और परेशान हो जाता हूँ मैं…।’ राहुल के जवाब से क्रूज गर्ल भी भीतर-ही-भीतर खुश हो रही थी… तो शिकार खुद जाल में आ रहा है…

‘बड़े दिलचस्प आदमी हैं आप?’ क्रूज गर्ल के होंठों ने एक हल्की-सी मुस्कान ओढ़ ली थी जिसमें एक सहजता भी थी और एक खास तरह का आमंत्रण भी।

‘मैं अपनी परेशानी बता रहा हूँ और तुम इसे दिलचस्प कह रही हो?’

क्रूज गर्ल अब भी राहुल के पिछले संवाद तक अटकी थी… ‘और यदि खूबसूरती सिर्फ देखने भर के लिए नहीं हो तो?’

‘मैं इसे एक प्रश्न मानूँ या प्रस्ताव?’

‘आप जो चाहें।’

‘यदि यह एक प्रश्न है तो फालतू है और यदि प्रस्ताव… तो इस पर विचार किया जा सकता है।’

‘मैं फालतू बातों में अपना कीमती वक्त बर्बाद नहीं करती।’ लड़की ने कीमती शब्द पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया था।

गो कि मोल-भाव अनिवार्यतः ऐसे संबंधों के प्रस्थान बिंदु होते हैं, लेकिन राहुल अचानक ही कीमती शब्द पर उस लड़की के बलाघात से चौंक गया था। उसने अब तक इस बारे में सोचा ही नहीं था… वह जितनी जल्दी हो सके इन व्यावसायिक क्षणों से निबट कर अपने आनंद लोक की सैर पर निकल जाना चाहता था… जहाँ सिर्फ और सिर्फ संगीत हो… देह का… जीवन का और उसके बीच सिक्कों की कोई खनक दूर-दूर तक सुनाई न पड़े।

‘इससे पहले कि मैं तुम्हारे प्रस्ताव पर अपनी सही कर दूँ, चाहता हूँ कि तुम बता ही दो कि तुम्हारा वक्त कितना कीमती है?’ राहुल ने बड़ी मुश्किल से ये शब्द कहे थे। वह तो इस लड़की की खूबसूरती, उसके शारीरिक गठन और बातचीत के कलात्मक लहजे से इतना प्रभावित था कि उसके लिए कोई भी कीमत अदा कर सकता था, बशर्ते वह उसके पर्स की सीमा में हो।

क्रूज गर्ल कुछ देर के लिए एकदम चुप हो गई। उसने मन ही मन हिसाब लगाया, अभी एक महीना बचे हैं, कम से कम दस लोग तो मिल ही जाएँगे इस बीच… पल भर को उसे कलवाले गेस्ट की याद हो आई और उसका रोम-रोम सिहर गया। …कितना हिंसक हो गया था वह… आदमी नहीं बिल्कुल जानवर ही था… कहीं मेरी कीमत लगाने के बाद यह भी उतना ही क्रूर और वहशी हो गया तो…? नहीं, यह ऐसा नहीं लगता वरना अब तक धीरज से बैठा नहीं रहता… कब का हाथ-मुँह मारना शुरू कर चुका होता… उसने फिर से सोच का सिरा छोड़ हिसाब का सिरा पकड़ लिया और कहा – ‘पाँच हजार।’

‘तुम्हें नहीं लगता यह ज्यादा है?’

‘ज्यादा मुझे नहीं आपको लग रहा है।’ उसने अपनी टाँगें फैला ली थीं। राहुल की निगाहें उसके चेहरे से फिसलती हुई उसकी गोरी-चिकनी टाँगों तक पहुँच गई थीं।

‘नाइट क्लब का टिकट तो हजार रुपए ही है।’

लड़की का महज दूसरा अनुभव था लेकिन अपनी बातों से वह पूरी पेशेवर लग रही थी। ‘लेकिन सर, वह सिर्फ देखने भर की कीमत है, वह भी दस फुट की दूरी से… और फिर कीमतें सिर्फ वक्त और सुविधाओं की ही नहीं, जरूरतों की भी होती हैं।’ इस बार उसने जरूरत शब्द पर जोर दिया था… राहुल इस प्रश्न से नहीं उलझना चाहता था कि यह जरूरत किसकी है – उसकी अपनी या फिर उस लड़की की या फिर दोनों की। उसने जल्दी से कहा, ‘जैसी तुम्हारी मर्जी’ और उसे अपनी तरफ खींच लिया। अपने नजदीक खींचने में जो अधिकार भाव था वह कीमत अदा करने के बाद सहज ही किसी खरीददार के व्यवहार में झलकने लगता हैं।

लड़की ने उसे अपनी बाँहों में कसते हुए कहा, ‘सर, इतनी जल्दी भी क्या है? अभी तो साढ़े बारह ही बजे हैं… आपके दोस्त जल्दी भी आएँगे तो ढाई बजे। इससे पहले कि आप खूबसूरती को और नजदीक से देख भर के परेशान हो जाएँ, आइए आपको लाइफ जैकेट का इस्तेमाल करना बता दूँ।’

बावजूद इसके कि एक जीती-जागती-सी जिंदगी उसके सामने अपनी तमाम अदाओं के साथ उसकी हो जाने को तैयार खड़ी थी, लाइफ जैकेट का नाम सुनते ही राहुल के भीतर का असुरक्षा बोध फिर से सामने खड़ा हो गया और उसने लड़की को अपनी बाँहों से आजाद कर दिया।

वह लड़की पूरी तन्मयता और ईमानदारी से लाइफ जैकेट के उपयोग का तरीका बता रही थी लेकिन राहुल का असुरक्षा बोध कभी उसके काले घने केश में उलझता तो कभी उसके सीने में धड़कने लगता था।

‘तुमने अपना नाम नहीं बताया?’

‘नाम में क्या रखा है, सर? मेरे जैसी लड़कियाँ अपना नाम नहीं बतातीं। गर बताती भी हैं तो वह कभी सच नहीं होता। आप जिस नाम से चाहे पुकार सकते हैं…’

‘नाम बताने में हर्ज भी क्या है? क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं?’

‘अब तक आप ने कुछ ऐसा नहीं किया है कि आप पर अविश्वास करूँ लेकिन इतनी जल्दी विश्वास कर लेने का भी तो कोई कारण नहीं है न। …बेहतर हो हम इस विश्वास-अविश्वास के चक्कर में नहीं पड़ें। वैसे भी आपको हमारे जिस प्रस्ताव पर सही करनी है उसका विश्वास-अविश्वास से नहीं, धड़कन और संगीत से रिश्ता है।’ अपनी बातों से एक बार फिर राहुल को चमत्कृत करती हुई वह बाथरूम में घुस गई थी फ्रेश होने… उसने अंदर से दरवाजा बंद नहीं किया था, सटा भर दिया था।

पावर सेवर की दूधिया रोशनी से नहाए इस शांत केबिन में शावर की आवाज बाथरूम से छन-छन कर आ रही थी। राहुल ने बेड पर से ही लेटे-लेटे आवाज दी – ‘क्या मुझे अंदर आने की इजाजत है?’

‘नहीं। वैसे मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन, आपका आकर्षण खत्म हो जाएगा।’

लड़की जब बाथरूम से निकली उसने गाउन पहन रखा था। बिना किसी मेकअप के खुले बालों में धुली-धुली यह लड़की राहुल को किसी दूसरे लोक से उतर आई परी लग रही थी। एक ऐसी सुंदरता जिसमें सहज स्निग्ध और पारदर्शी पवित्रता थी… जिसे देख कर ही मन में एक खुशबू-सी तैर जाए… उसने सोचा, ‘सुंदर तो यह अब लग रही है, पहले तो बस वह सुंदरता की भूमिका भर थी… राहुल एक शब्दहीन अभिव्यक्ति में भर गया था… उसे अनायास अपनी बेटी की याद हो आई। पता नहीं कैसी होगी… एंटीबायटिक का कोर्स शायद पूरा हो गया होगा आज… कल उसे हॉस्पिटल से डिसचार्ज होना है… उसने एक बार फिर मोबाइल की स्क्रीन पर देखा कनेक्टिविटी अब भी गायब थी… लड़की आलमीरे से हेयर ड्रायर निकाल कर अपने बाल सुखा रही थी… राहुल ने सोचा… क्या उसकी बेटी भी बड़ी हो कर इतनी ही खूबसूरत लगेगी… उसकी आँखों में एक नम खुशी तैरने लगी थी…

‘किस दुनिया में खो गए, सर? उठिए फ्रेश हो आइए… एक बजने को है।’

राहुल लेटा रहा, ‘इतनी जल्दी भी क्या है… हाँ, एक बात पूछूँ?’

‘मेरा नाम-पता छोड़ कर कुछ भी पूछ सकते हैं आप। निराश नहीं करूँगी मैं आपको।’

‘इतनी बातें हो जाने के बाद भी तुम्हें लाइफ जैकेट का इस्तेमाल बताने की याद कैसे रही? और याद भी रही तो सब कुछ छोड़ कर बताना जरूरी क्यों लगा तुम्हें? वह भी तब, जब मुंबई टू गोवा क्रूज की दुर्घटना की कोई खबर कभी सुनने को नहीं मिली।’

‘सर, मेरा असली काम तो वही है, फिर उसे कैसे भूल सकती हूँ। रही बात दुर्घटना की तो उसका क्या ठिकाना? …कब कहाँ हो जाए… मैं भी तो किसी दुर्घटनावश ही इस क्रूज की नौकरी में आ गई थी…’ लड़की सहसा चुप हो गई, उसे लगा वह बहक रही है।

‘कैसी दुर्घटना?’

‘रहने दीजिए, सर…’

‘नहीं-नहीं… तुम्हें बताना ही होगा।’

‘कोई दस साल पहले की बात है, इसी कंपनी का दूसरा क्रूज ‘सी बर्ड’ फिनलैंड जा रहा था। मेरे पिता जॉन निल्सन उसके क्रूज डायरेक्टर थे। यात्रा लंबी थी, एक रात अँधेरे में भयंकर तूफान उठा, जिसका सामना ‘सी बर्ड’ नहीं कर सका और मेरे पापा उसी तूफान की भेंट चढ़ गए। उनके कुछ दोस्त, जो लाइफ जैकेट ले कर कूद पड़े थे, बच गए थे… बाद में उन्होंने ही बताया कि कैसे तमाम एहतियातों के बावजूद अफरा-तफरी में मेरे पापा को लाइफ जैकेट नहीं मिल पाई थी और वे… न क्रूज में जिंदा रह सकते थे न क्रूज से कूद सकते थे और देखते ही देखते उनकी धड़कनों ने उनका साथ छोड़ दिया था।’ लड़की की आँखें गीली हो गई थीं। लेकिन वह कहती जा रही थी अविराम –

‘मेरा भाई तब अवयस्क था, मैं बड़ी थी और पिता की जगह कंपनी ने मुझे रख लिया था। माँ नहीं चाहती थी कि मैं क्रूज की नौकरी करूँ लेकिन हमारे आगे दूसरा रास्ता भी नहीं था। मैंने नई जिंदगी शुरू कर दी, खूबसूरत होने के कारण मुझे रिसेप्शन पर रखा गया था। लेकिन पिता की स्मृतियाँ लगातार मेरा पीछा करती रहीं, फिर मैंने खुद से पहल कर के अपना ट्रांसफर सेफ्टी ड्रिल डिपार्टमेंट में करवा लिया है। आप ठीक कह रहे हैं कि मुंबई टू गोवा यात्रा में अब तक कोई दुर्घटना नहीं हुई। लेकिन मैं नहीं चाहती कि मेरे पापा की कहानी कभी किसी और के साथ दुहराई जाए। इसलिए एक-एक केबिन में लाइफ जैकेट पहुँचाने का जिम्मा मैंने खुद सँभाल लिया है।’ लड़की फिर चुप हो गई थी, आम लड़कियों से अलग अपने आँसुओं पर उसका गजब का नियंत्रण था। उसके चेहरे पर उदासी का सौंदर्य तैर रहा था। राहुल भी कुछ नहीं कह सका। दोनों के बीच उग आई इस गंभीर खामोशी को लड़की ने ही परे धकेला था –

‘सर, जल्दी कीजिए, आधे घंटे में टॉपलेस शो खत्म हो जाएगा।’

राहुल की उत्तेजना पर भावनात्मकता की तरलता हावी हो गई थी लेकिन उसने जाहिर नहीं होने दिया। पिछले डेढ़ घंटे में उसे पहली बार खयाल आया कि उसने कपड़े भी चेंज नहीं किए थे। वह बिना आवाज बाथरूम में चला गया था।

वह देर तक शावर के नीचे खड़ा रहा। अचानक एक नई तरह की आशंका उसके भीतर पसरने लगी… यदि आज की रात कोई भयंकर तूफान आए और लाइफ जैकेट या लाइफ बोट उसका साथ न दे तो…? उसकी बेटी जिसने अभी उसे एक बार भी पापा नहीं पुकारा है उसकी किन छवियों-स्मृतियों को ले कर बड़ी होगी…? क्रूज गर्ल को तो भला नौकरी मिल गई… लेकिन उसकी बेटी ने तो अभी दुनिया को भर आँख देखा भी नहीं है। क्रूज गर्ल की कल्पना भर से ही उसकी आशंका और घनीभूत हो गई… तो क्या कभी उसकी बेटी भी जरूरत और कीमत के इन समीकरणों में… उसके रोम-रोम से कुछ घुल-घुल कर बह रहा था… उसने सोचा यह लड़की सिर्फ लाइफ जैकेट इश्यू नहीं करती है, लोगों को जिंदगी का तोहफा देती है अपने पिता की स्मृतियों और अपनी दुआओं में लपेट कर। लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उसकी कौन-सी मजबूरी है कि वह… उसे अचानक ही थोड़ी देर पहले कहे उसके शब्द उसकी कानों में गूँज गए ‘कीमत वक्त और सुविधाओं से ज्यादा जरूरतों की होती है।’ उसे जरूरत शब्द पर उसका बलाघात अब तक सुनाई पड़ रहा था… उसने चाहा वह अभी बाहर निकल कर उससे उस वाक्य का मतलब पूछे लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हुई… उसने अपने पर्स से हजार रुपए के पाँच नोट निकाले और हैंगर पर टँगी उसकी सफेद यूनीफार्म की जेब में चुपके से रख दिया और बाहर आ गया।

‘सर, आपने कितनी देर कर दी, मैंने दरवाजा भी नॉक किया लेकिन आप ने कोई जवाब नहीं दिया। अब तो शो खत्म होनेवाला होगा, मुझे जाना पड़ेगा।’

‘सॉरी, मैंने तुम्हारा वक्त बर्बाद किया।’ राहुल वक्त के साथ कीमती शब्द भी जोड़ना चाहता था लेकिन नहीं कह पाया… लेकिन लड़की ने शायद यह समझ लिया था।’

‘नहीं सर, अफसोस तो मुझे होना चाहिए कि मैंने अपनी बातों से आपका मूड खराब कर दिया।

‘क्या तुम सुबह हमारे साथ सूर्योदय देखने टॉप डेक पर आ सकती हो…? तुम्हारे साथ मुझे अच्छा लगेगा…’

‘अच्छा तो मुझे भी लगेगा सर, लेकिन सॉरी, मेरी नौकरी मुझे इसकी इजाजत नहीं देती… हाँ, यदि कल की रात आप नाइट क्लब नहीं गए तो मैं आपके केबिन में आ सकती हूँ। मेरा वादा है, अपनी बातों से आपका मूड खराब नहीं करूँगी।’

राहुल चाह कर भी कुछ नहीं कह सका।

लड़की बाथरूम में चली गई थी, दरवाजा उसने इस बार भी बंद नहीं किया था, सिर्फ सटा भर दिया था।

जब वह बाहर आई उसके बाल फिर से बँधे थे… उसने फिर से खुद को सफेद यूनीफार्म में कैद कर लिया था… उसके चेहरे पर बीते पलों की परछाई भर भी नहीं थी… उसने हैंगर पर शायद यूनीफार्म ही नहीं क्रूज गर्ल का चेहरा भी टाँग दिया था जिसे उसने फिर से पहन लिया था… ढाई बजने को था… राहुल चाह कर भी उसे नहीं रोक सका… उसने धीरे से कहा था – ‘सी यू सर, बाई…’ दरवाजा उसके जाते ही खुद-ब-खुद बंद हो गया।

राहुल ने साढ़े पाँच का अलार्म लगाया और लाइट ऑफ कर दी। उसके भीतर जैसे तूफान उठा था… और नींद चाह कर भी उस तूफान तक आने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी… नींद और राहुल के भीतर उठे उस तूफान की जंग देर तक चलती रही। अलार्म की आवाज से उसकी नींद खुली। विक्रांत अपने बिस्तर पर बेखबर सो रहा था… रात वह कब आया उसे पता भी नहीं चला… दरवाजे की एक चाभी उसके पास भी थी।

सूर्योदय होने में अभी 20-25 मिनट शेष थे। उसने जल्दी से ब्रश किया और टॉप डेक पर पहुँच गया। अपने पीछे एक गहरा फेनिल अहसास छोड़ता क्रूज सागर की छाती पर लगातार मचल रहा था… सूर्योदय की प्रतीक्षा में दर्जनों आँखें टकटकी लगाए डेक पर खड़ी थीं… उसने देखा माथुर साहब भी अपना हैंडीकैम लिए दसवें डेक की सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे। हवा में हल्की-सी नमी और मीठी-सी सरसराहट थी जो उसे छू-छू कर अपने होने का अहसास करा रही थी। दूर-दूर तक फैले हरे पानी के अंतहीन जंगल पर नीले आसमान ने अपनी छतरी तान रखी थी… सुदूर पूरब का चेहरा सिंदूरी होना चाहता था। तभी उसने देखा रातवाली वही लड़की डेक पर उसके सामने से गुजरी, वह उसे पास बुलाना चाहता था… शायद वह भी उसके बगल में खड़ी हो कर समंदर की गहराइयों से ऊपर आते इस अग्नि-पिंड को देखना चाहती थी… लेकिन वह बुला न सका… वह आ न सकी… दोनों की आँखें मिलीं और उनके बीच पसरी अदृश्य-सी चुप्पी के सहारे हँसता-खेलता बाल सूर्य आसमान के पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा गया।

मशहूर टेलीकाम कंसल्टिंग फर्म टेलीटच इंटरनेशनल द्वारा स्पांसर्ड यह ट्रिप, जिसमें राहुल अन्य चार अधिकारियों के साथ अपनी कंपनी का प्रतिनिधित्व कर रहा था, भारत में ‘थ्री-जी’ और ‘फोर-जी’ मोबाइल के भविष्य पर चर्चा करने के लिए आयोजित थी। आज लंच के पहले सारे प्रजेंटेशन्स होने थे। राहुल पूरे प्रजेंटेशन के दौरान अनमना-सा रहा। पिछली रात की स्मृतियाँ उसके आगे-पीछे घूमती रहीं। उस लड़की की खूबसूरती, उसके पिता की मृत्यु की कहानी, उसके भीतर पनपती आशंका, उसका भय सब जैसे उसके अंग-अंग में चिपक-से गए थे। लाइफ जैकेट का इस्तमाल सीखने के बावजूद उसका असुरक्षाबोध उसके भीतर से गया नहीं था… शायद उसकी परतें और मोटी हो गई थीं… प्रजेंटेशन के दौरान वह बार-बार निकल कर बाहर जाता रहा… कभी रिसेप्शन, कभी डिस्को, कभी साइबर कैफे, कभी शापिंग लाउंज… लेकिन वह लड़की कहीं दिखी नहीं… उसके भीतर का भय जितना तीव्र होता जा रहा था, उस लड़की से पुनः-पुनः मिलने, उसके साथ होने की उसकी इच्छा और सघन होती जा रही थी।

शाम को जब सब गोवा घूमने जा रहे थे राहुल ने उस लड़की को रिसेप्शन के आस-पास देखा। पता नहीं क्यों उसके भीतर उसके साथ बीच पर जाने की इच्छा हुई, वह उसके साथ समंदर में उतर कर देखना चाहता था… लड़की ने भी उसकी तरफ देखा लेकिन एक बार फिर दोनों चुप रहे।

जब राहुल अपने दोस्तों के साथ कोल्वा बीच पर पहुँचा समंदर में स्थित पहाड़ पर खड़े हरे वृक्षों की ओट में दिन भर का थका सूरज डूबने-डूबने को था। सूबह का सिंदूरी क्षितिज अब तक पीतवर्णी हो चुका था… दूर कोई प्रेमी युगल कए दूसरे का हाथ थामे लहरों से भीगते सागर में उतर रहे थे… वह अपने दोस्तों से अलग एक बड़े से शिलाखंड पर बैठा देर तक समंदर की टकराती लहरों से नहाता रहा। उसे लगा जैसे सूरज हमेशा-हमेशा के लिए डूब रहा है। उसे अचानक ही रातवाली लड़की उसी गाउन में सामने से आती दिखाई पड़ी… उसने उसे पुकारना चाहा लेकिन सहसा उसे याद आया उसे तो उसका नाम ही नहीं मालूम, कि तभी उस लड़की की वह आकृति जैसे किसी लहर में गुम हो गई… अँधेरा घिरने लगा था… उसके दोस्त लौट चलने के लिए उसे आवाज दे रहे थे…।

बाहर जैसे-जैसे अँधेरा पसर रहा था क्रूज के भीतर की जिंदगी फिर से जवान हो रही थी। कुछ लोग बार की तरफ जा रहे थे तो कुछ बूमर्स डिस्को की तरफ… कुछ लोग अब भी फिटनेस क्लब, ब्यूटी सैलून और स्वीमिंग पुल में ही जमे थे… राहुल विक्रांत के साथ कसीनों तक चला गया। विक्रांत ने कुछ गेमिंग चिप्स और टोकेन खरीदे थे। रॉलेट, ब्लैकजैक, स्टार पानटून और स्लॉट मशीन जैसे नए गेम्स और उसके खेलने का तरीका उसे बहुत उबाऊ और पैसा बहाऊ लग रहा था। विक्रांत अब तक चार हजार रुपए हार चुका था… पिछली हार से उबरने की कोशिश करती उसकी हर नई चाल उसे और घाटे में ले जा रही थी… वह अब और वहाँ नहीं रह सका। वह डेक पर लौट गया था।

समुद्री हवा और तेज गति से मुंबई की ओर लौटते क्रूज के बीच आसमान में टँगे सितारों में रातवाली लड़की अब भी टिमटिमा रही थी। वह फिर से उसका साथ चाहता था लेकिन नाइट क्लब की जवान महफिल के बीच क्रूज के शांत केबिन में नहीं… वह उसके साथ डेक पर बैठ कर चाँदनी में नहाना चाहता था… उसकी अनकही जरूरतों और मजबूरियों को उसकी जुबानी सुनना चाहता था… वह चाहता था रात के बारह नहीं बजे, नाइट क्लब की महफिल नहीं सजे… लेकिन उसके चाहने से क्या होना था…? घड़ी ने फिर से रात के बारह बजाए… एक बार फिर से सारे डेक नीरव शांति से भर गए… स्टारडस्ट लाउंज की टिकट खिड़की एक बार फिर से हरे-हरे नोटों का गवाह बनी… उसे पता था वह फिर आएगी लेकिन वह उसके साथ अकेले केबिन में नहीं रहना चाहता था… वह बारह बजे से ढाई बजे तक ‘सेल अवे पार्टी अंडर द स्टार्स’ के लिए नवें डेक पर चला गया। चाँदनी के साए तले सुपर स्टार लिब्रा की गोद में बैठा राहुल क्रूज म्यूजिसियन्स के सुपर हिट संगीत का आनंद ले रहा था… इस बीच वह लड़की दो बार आई और उसे देख कर चली गई थी… वह चाहता था कि वह उसके पास आ कर बैठे और वह उसकी उसी पवित्र सुंदरता को देखता हुआ इस बरसती चाँदनी में संगीत के लहरों से खेलता रहे… उसके भीतर एक कोमल-सी जिज्ञासा हुई… क्या वह भी ऐसा ही चाहती है…? लेकिन एक बार फिर वह बुला न सका और वह आ न सकी…।

उस सुबह राहुल देर तक सोता रहा। क्रूजवाली लड़की बार-बार डेक पर गई, वह सूर्योदय देखने नहीं आया।

दोपहर ढाई बजे के आस-पास क्रूज मुंबई पहुँच गया था सारे यात्री चेक आउट कर के वेटिंग लाउंज में पोर्ट खाली होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। वेटिंग लाउंज से रिसेप्शन तक सलीके से पंक्तिबद्ध क्रूज बॉयज और क्रूज गर्ल ड्रम और गिटार की मधुर ध्वनि के बीच विदा गीत गा रहे थे… अपने मेहमानों को उनके पधारने का धन्यवाद दे रहे थे… उनसे फिर पधारने का आग्रह कर रहे थे। राहुल की निगाहें रातवाली लड़की को ढूँढ़ रही थीं लेकिन वह उसकी नजर से दूर रिसेप्शन के दूसरे कोने पर खड़ी लगातार उसकी तरफ देख रही थी… उसका ट्रॉली बैग उस तक पहुँच गया था… क्रूज पोर्ट पर आ लगी थी।

रात को दिल्ली लौटते हुए ट्रेन में जब राहुल ने अपने ट्रॉली बैग के बाहरी पॉकेट से पढ़ने के लिए कोई मैगजीन निकाली तो उसके साथ सुपर स्टार लिब्रा का एक लिफाफा भी निकला। उसने लिफाफा खोला, उसमें हजार-हजार के वही पाँच नोट थे जो उसने उस रात बाथरूम में टँगी उस लड़की के यूनीफॉर्म की जेब में चुपके से डाला था, साथ में एक पत्र भी –

‘मैं आपके रुपए लौटा रही हूँ। यह सच है कि वक्त कीमती होता है, लेकिन हमारा प्रस्ताव सिर्फ वक्त बिताने का नहीं था… यह भी सत्य है कि मैंने आपसे अपने साथ की नहीं, अपनी जरूरतों की कीमत माँगी थी, लेकिन… मुफ्त नहीं। बिना आपकी जरूरतों को पूरा किए मुझे अपनी जरूरत की कीमत लेने का कोई हक नहीं हैं…

हाँ, इतना जरूर कहूँगी कि आप के साथ बहुत अच्छा लगा। चूँकि आप अच्छे लगे इसलिए आपसे अपनी जरूरतों का भी खुलासा करना चाहती हूँ।

अगले माह मेरे छोटे भाई का एमबीए में एडमिशन होना है। मुझे उसके लिए 50 हजार रुपए जमा करने हैं। उम्मीद है मुझे इस बीच दस मेहमान मिल ही जाएँगे… लेकिन हर बार आपकी याद आएगी।

मैंने क्रूज के डाटा बेस से आपका मोबाइल नं. और ई-मेल आइडी ले लिया है। यदि किसी कारणवश पैसे पूरे नहीं हुए तो उधार माँगने के लिए आपको याद करूँगी… आप मुझे पहचान लेंगे न…?

और हाँ, अपनी बातों से मैंने जो उस रात आपका मूड खराब किया उसके लिए एक बात फिर क्षमा चाहती हूँ।’

राहुल को लगा जैसे उसकी मुट्ठी से एक पूरी दुनिया समंदर के रेत की तरह फिसल गई है… उसने सोचा पिछली रात उसे केबिन में ही होना चाहिए था… वह उस लड़की से कहना चाहता था कि तुम लाइफ जैकेट पहुँचाती और सेफ्टी ड्रिल कराती ही अच्छी लगती हो, पचास हजार रुपए तुम्हें मैं दे दूँगा, लेकिन मुफ्त नहीं… धीरे-धीरे लौटा देना मुझे। लेकिन उसकी बात कैसे पहुँचेगी उस तक…? उसका तो न उसे नाम मालूम है न टेलीफान नं. लेकिन वह तो उसे फोन कर सकती है… लेकिन कहीं उसने पैसे जोड़ लिए तो…? नहीं… भगवान न करे वह एक पैसा भी जोड़ पाए… ट्रेन के बाहर अँधेरा पसर गया था… उदासी और बेबसी में लिपटा एक अँधेरा उसके भीतर भी घिरने लगा था धीरे-धीरे… उसने इस अँधेरे को पूरी ताकत से दूर धकेलने की कोशिश की… ‘सागर का पानी चाहे लाख खारा हो उसकी लहरों का संगीत बहुत मीठा होता है…’ लेकिन यह क्या उसकी शक्ति लगातार क्षीण हो रही है और उसके मन के अँधेरे में घुलता यह संगीत… शोर में बदल रहा है… लगातार…

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सागर-संगीत – Sagar-Sangeet

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