सड़कों पर | पूर्णिमा वर्मन
सड़कों पर | पूर्णिमा वर्मन

सड़कों पर | पूर्णिमा वर्मन

सड़कों पर | पूर्णिमा वर्मन

सड़कों पर हो रही सभाएँ
राजा को –
धुन रही व्यथाएँ

प्रजा
कष्ट में चुप बैठी थी
शासक की किस्मत ऐंठी थी
पीड़ा जब सिर चढ़कर बोली
राजतंत्र की हुई ठिठोली
अखबारों –
में छपी कथाएँ

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दुनिया भर
में आग लग गई
हर हिटलर की वाट लग गई
सहनशीलता थक कर टूटी
प्रजातंत्र की चिटकी बूटी
दुनिया को –
मथ रही हवाएँ

जाने कहाँ
समय ले जाए
बिगड़े कौन, कौन बन जाए
तिकड़म राजनीति की चलती
सड़कों पर बंदूक टहलती
शासक की –
नौकर सेनाएँ

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