सब के सब नंगे | जय चक्रवर्ती
सब के सब नंगे | जय चक्रवर्ती

सब के सब नंगे | जय चक्रवर्ती

सब के सब नंगे | जय चक्रवर्ती

किसकी कौन कहे
हमाम में –
सबके सब नंगे !

बहरी राजसभा है सारी
अंधा राजा है।
बाहर-भीतर बंद महल का
हर दरवाजा है।
खुशहाली के इश्तहार
हर चौखट पर चिपके
यूँ बस्ती की हालत का
सबको अंदाजा है।

See also  कार-ए-नौ | अशोक कुमार

काजल की गंगा में
गूँज रही
हर-हर गंगे !

मुस्कानों पर अपना नाम
लिखा बटमारों ने
बिठा दिए हैं पहरे
चीखों पर जयकारों ने
अपने-अपने सम्मोहन के
इंद्रजाल रचकर –
नजर बाँध दी सबकी
मौसम के ऐयारों ने।

राजपाट का
गणित लगाते हैं
हिंसा-दंगे !

Leave a comment

Leave a Reply