बड़ा दिन आने पर लड़कों ने एक बार फिर चप्पू वाली नाव की माँग की।

“ठीक है,” उनके पिता ने कहा, “जब हम वापस कार्तागेना लौटेंगे, तो हम वह नाव खरीद लेंगे।”

लेकिन नौ वर्ष का तोतो और और सात वर्ष का जोएल उससे ज्यादा दृढ़ निश्चय वाले थे जितना उनके माता-पिता उन्हें समझते थे।

“नहीं,” उन्होंने एक स्वर में कहा। “यह नाव हमें यहीं और अभी चाहिए।”

“देखो,” उनकी माँ बोली, “यहाँ नाव खेने के लिए अगर पानी कहीं मौजूद है तो वह केवल गुसलखाने में ही है।”

माँ और पिता, दोनों सही थे। कार्तागेना दे इंदियास में मौजूद उनके घर में बड़ा-सा अहाता था और खाड़ी के किनारे गोदी थी और वहाँ एक छप्पर था जहाँ दो बड़ी नावें रखी जा सकती थीं। दूसरी ओर यहाँ मैड्रिड में वे 47 पैसेओ दे ला कास्तेलीना की बहुमंजिली इमारत की पाँचवीं मंजिल पर ठुँसे हुए थे। लेकिन अंत में माता-पिता अपने बच्चों को इनकार नहीं कर सके क्योंकि उन्होंने बच्चों से वादा किया था कि वे उन्हें षष्ठक और दिक्सूचक-यंत्र समेत चप्पू वाली नाव खरीद कर देंगे यदि उन्होंने प्राथमिक स्कूल की अपनी कक्षा में पुरस्कार जीते, और वे दोनों ऐसा कर चुके थे। इसलिए उनके पिता ने उन्हें सब कुछ खरीद कर दे दिया और अपनी पत्नी से कुछ नहीं कहा जो जुए का कर्ज चुकाने के लिए उससे अधिक अनिच्छुक थी। वह एलुमिनियम की एक सुंदर नाव थी जिसके पानी के निशान वाली जगह पर एक सुनहरी धारी बनी हुई थी।

“नाव गैरेज में है,” दोपहर के भोजन के समय उनके पिता ने घोषणा की। “समस्या यह है कि नाव को किसी भी तरह लिफ्ट या सीढ़ियों से ऊपर नहीं लाया जा सकता और गैरेज में भी नाव को रखने भर की जगह ही है।”

लेकिन अगले सोमवार की दोपहर बच्चों ने अपने सहपाठियों को घर पर बुलाया ताकि वे सीढ़ियों से नाव को ऊपर ला सकें, और वे सब नाव को नौकरानी के कमरे तक लाने में सफल हुए।

“बधाई हो,” उनके पिता ने कहा, “लेकिन अब आगे क्या करोगे?”

“कुछ नहीं। हम तो नाव को केवल कमरे में लाना चाहते थे और अब वह कमरे में आ गई है।”

हर बुधवार की तरह इस बुधवार की रात भी माता-पिता फिल्म देखने चले गए। लड़के अब घर के मालिक थे। उन्होंने घर के सारे खिड़की-दरवाजे बंद कर दिए और शयन-कक्ष में लगे एक चमकते बल्ब को तोड़ दिया। टूटे हुए बल्ब में से पानी की तरह ठंडी सुनहरी रोशनी की धारा निकलने लगी। लड़कों ने पानी जैसी उस रोशनी को कमरे में तीन फीट की गहराई तक भर जाने दिया। फिर उन्होंने बिजली बंद कर दी, अपनी चप्पू वाली नाव निकाली और कमरे में मौजूद घरेलू सामानों के द्वीपों के बीच अपनी नाव खेने लगे।

यह शानदार रोमांच मेरी उस क्षुद्र टिप्पणी का नतीजा था जो मैंने ‘घरेलू सामानों के कवित्व’ विषय पर आयोजित एक गोष्ठी के दौरान दी थी। तोतो ने मुझसे पूछा कि स्विच दबाते ही बिजली कैसे जल जाती है और मुझ में इस प्रश्न पर गहन विचार करने की हिम्मत नहीं थी।

“बिजली की रोशनी पानी जैसी है,” मैंने जवाब दिया। “आप नल खोलते हैं और वह बाहर आने लगती है।”

और इस तरह दोनों लड़के हर बुधवार की रात अपने घर के कमरे में पानी जैसी बिजली की रोशनी में अपनी नाव खेते रहते। वे षष्ठक और दिक्सूचक-यंत्र का इस्तेमाल करना भी सीख गए। जब उनके माता-पिता घर लौटते तो वे लड़कों को सूखी जमीन पर देव-दूतों की तरह सोया हुआ पाते। कई महीनों के बाद लड़कों को इच्छा हुई कि वे और आगे जाएँ। इसलिए उन्होंने अपने माता-पिता से गोताखोरी की पोशाकों और उपकरणों की माँग भी कर दी – नकाब, मीनपक्ष, टंकी और हवा के दबाव वाली राइफलें।

“एक तो यह बुरा है कि तुम लोगों ने चप्पू वाली नाव को नौकरानी के कमरे में रख दिया है जिसका इस्तेमाल तुम लोग नहीं कर सकते,” उनके पिता ने कहा। “इस स्थिति को और भी बुरा बनाते हुए अब तुम गोताखोरी के उपकरण भी माँग रहे हो।”

“यदि हम अपनी वार्षिक परीक्षा में प्रथम स्थान पर आए तब तो आप हमें यह सब खरीद देंगे?” जोएल ने कहा।

“नहीं,” उनकी माँ चौंक कर बोली, “बस, बहुत हो गया।” किंतु उनके पिता ने हठी होने पर माँ को फटकारा।

“जब इन्हें कोई दिया गया काम करना होता है तो ये लड़के कोई छोटी-सी कील तक नहीं जीत पाते,” माँ ने कहा, “लेकिन इन्हें जो चाहिए, उसे प्राप्त करने के लिए ये दोनों कुछ भी करने में समर्थ हैं। यहाँ तक कि ये शिक्षक की कुर्सी भी हथिया सकते हैं।”

अंत में माता-पिता ने बच्चों की माँग पर न हाँ कहा, न नहीं। लेकिन जुलाई में तोतो और जोएल, दोनों को परीक्षा में अच्छे अंक लाने पर ‘गोल्ड गार्डेनिया’ पुरस्कार मिला और स्कूल के प्रधानाचार्य से सार्वजनिक सम्मान भी प्राप्त हुआ। बिना दोबारा माँग किए उसी दोपहर दोनों लड़कों को अपने शयन-कक्ष में गोताखोरी के सारे उपकरण अपनी मूल बधाई में प्राप्त हो गए। इसलिए अगले बुधवार की रात जब उनके माता-पिता ‘लास्ट टैंगो इन पेरिस’ नामक फिल्म देखने गए हुए थे, दोनों बच्चों ने पूरे घर में बारह फीट की गहराई तक पानी जैसी बिजली की रोशनी भर ली। फिर वे रोशनी के समुद्र में पालतू शार्क मछलियों की तरह मेज-कुर्सियों और पलंग के नीचे गोताखोरी करने लगे। इस गोताखोरी के दौरान उन्होंने कमरे के तल से कई ऐसी चीजें खोज निकालीं जो बरसों से अँधेरे में खोई हुई थीं।

वर्ष के अंत में स्कूल में हुए पुरस्कार वितरण समारोह में सर्वोत्कृष्टता के उदाहरण के रूप में दोनों भाइयों का अभिनंदन किया गया तथा उन्हें श्रेष्ठता के प्रमाण-पत्र प्रदान किए गए। इस बार उन्हें किसी चीज के लिए माँग नहीं करनी पड़ी क्योंकि खुद उनके माता-पिता ने उनसे पूछा कि अब उन्हें क्या चाहिए। वे दोनों इतने समझदार और संतुलित थे कि उन्होंने अपने घर पर केवल अपने सहपाठियों को खिलाने लिए प्रीति-भोज का आयोजन करने की इच्छा व्यक्त की।

अकेले में उनकी माँ के साथ उनके पिता बेहद उल्लसित थे।

“यह उनकी परिपक्वता का उदाहरण है,” पिता ने कहा।

“हाँ, आपने कही और ईश्वर ने सुनी!” माँ बोली।

अगले बुधवार जब बच्चों के माता-पिता ‘द बैट्ल ऑफ अल्जियर्स’ नामक फिल्म देखने गए हुए थे, पैसेओ दे ला कास्तेलैना के इलाके से गुजर रहे लोगों ने पेड़ों के बीच छिपी एक पुरानी इमारत के भीतर से रोशनी का प्रपात बहता देखा। वह रोशनी छज्जों में से उफन कर प्रचंड प्रवाह के रूप में इमारत के अग्र-भाग से नीचे आ रही थी और उस पूरे इलाके में रोशनी की सुनहरी बाढ़ लाते हुए तीव्र गति से बहकर ग्वादर्रामा तक जा रही थी।

इस आपात स्थिति से निपटने के लिए दमकल कर्मचारियों ने उस इमारत की पाँचवीं मंजिल के मकान के दरवाजे को तोड़ डाला और तब उन्हें उस पूरे फ्लैट में फर्श से लेकर छत की ऊँचाई तक भरी हुई चमकती रोशनी दिखी। बाहर वाले कमरे में रखा सोफा और तेंदुए के खाल से ढकी आराम-कुर्सियाँ कमरे में अलग-अलग ऊँचाइयों पर पानी जैसी रोशनी में उतरा रहे थे। पास में ही शराब की बोतलें और मनीला-शॉल से ढका भव्य पियानो भी किसी आधी डूबी फड़फड़ाती मांता-रे मछली की तरह तिर-उतरा रहे थे। घर में रखी चीजों में से जैसे कवित्व फूट रहा था और वे भी रसोई के आकाश में जैसे उड़ान भर रही थीं। माँ के मछलीघर से मुक्त हो गई चटख रंग की मछलियों के बीच ही लड़कों द्वारा नाचने के समय बजाए जाने वाले साज भी बह रहे थे। चमकती रोशनी के उस अपार दलदल में केवल वे मछलियाँ ही जीवित और प्रसन्न-चित जीव लग रही थीं। गुसलखाने में सबके दाँत साफ करने वाले ब्रश तैर रहे थे। वहीं पिता के कंडोम, वायलिन की अतिरिक्त मेरु और डिब्बे में रखी माँ की क्रीम भी उतरा रही थी। शयन-कक्ष में रखा हुआ टेलीविजन भी एक ओर झुक कर पानी जैसी रोशनी में उतरा रहा था। टी.वी. अब भी चल रहा था जिसमें केवल वयस्कों के लिए दिखाई जाने वाली मध्य-रात्रिकालीन फिल्म अब भी देखी जा सकती थी।

बड़े कमरे के अंत में गोताखोरी के सारे उपकरण लगा कर तोतो अपनी नाव के दुंबाल में बैठा हुआ था। उसने अपने हाथों में चप्पू पकड़े हुए थे, चेहरे पर नकाब लगाया हुआ था और वह पानी जैसी रोशनी की धारा के साथ आगे बढ़ रहा था। वह नावों को रास्ता दिखाने वाले तेज रोशनी वाले बुर्ज की तलाश कर रहा था। नाव की गलही में बैठा उसका भाई जोएल अभी भी अपने षष्ठक से ध्रुवतारे को ढूँढ़ रहा था। दोनों भाइयों के सैंतीस सहपाठी भी पूरे मकान में तिर-उतरा रहे थे। वे सब मस्ती में थे और उस पूरे पल को अमरत्व प्रदान करते हुए वे जेरेनियम के गमले में पेशाब कर रहे थे, प्रधानाचार्य की खिल्ली उड़ाते हुए स्कूल के गीत के शब्द बदलकर गा रहे थे, और दोनों भाइयों के पिता की शराब की बोतलों में से शराब चुरा कर पी रहे थे। उन्होंने एक ही समय में मकान में इतने बल्ब जला लिए थे कि वहाँ रोशनी की बाढ़ आ गई थी और 47 पैसेओ दे ला कैस्तेलीना की पाँचवीं मंजिल पर स्थित सेंट जूलियन स्कूल की दो प्राथमिक कक्षाएँ उस रोशनी की बाढ़ में डूब गई थीं। सुदूर स्थित स्पेन की राजधानी मैड्रिड तीव्र गर्मी और बर्फीली हवाओं वाला शहर था। यहाँ कोई नदी या समुद्र नहीं था। चारों ओर से जमीन से घिरे यहाँ के देशज लोगों ने पानी जैसी रोशनी में नाव चलाने में महारत हासिल नहीं की थी।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *