रक्तचाप | पंकज चतुर्वेदी
रक्तचाप | पंकज चतुर्वेदी
रक्तचाप जीवित रहने का दबाव है
या जीवन के विशृंखलित होने का ?
वह ख़ून जो बहता है
दिमाग़ की नसों में
एक प्रगाढ़ द्रव की तरह
किसी मुश्किल घड़ी में उतरता है
सीने और बाँहों को
भारी करता हुआ
यह एक अदृश्य हमला है
तुम्हारे स्नायु-तंत्र पर
जैसे कोई दिल को भींचता है
और तुम अचरज से देखते हो
अपनी क़मीज़ को सही-सलामत
रक्तचाप बंद संरचना वाली जगहों में –
चाहे वे वातानुकूलित ही क्यों न हों –
साँस लेने की छटपटाहट है
वह इस बात की ताकीद है
कि आदमी को जब कहीं राहत न मिल रही हो
तब उसे बहुत सारी ऑक्सीजन चाहिए
अब तुम चाहो तो
डॉक्टर की बताई गोली से
फ़ौरी तसल्ली पा सकते हो
नहीं तो चलती गाड़ी से कूद सकते हो
पागल हो सकते हो
या दिल के दौरे के शिकार
या कुछ नहीं तो यह तो सोचोगे ही
कि अभी-अभी जो दोस्त तुम्हें विदा करके गया है
उससे पता नहीं फिर मुलाक़ात होगी या नहीं
रक्तचाप के नतीजे में
तुम्हारे साथ क्या होगा
यह इस पर निर्भर है
कि तुम्हारे वजूद का कौन-सा हिस्सा
सबसे कमज़ोर है
तुम कितना सह सकते हो
इससे तय होती है
तुम्हारे जीवन की मियाद
सोनभद्र के एक सज्जन ने बताया –
(जो वहाँ की नगरपालिका के पहले चेयरमैन थे
और हर साल निराला का काव्यपाठ कराते रहे
जब तक निराला जीवित रहे) –
रक्तचाप अपने में कोई रोग नहीं है
बल्कि वह है
कई बीमारियों का प्लेटफ़ॉर्म
और मैंने सोचा
कि इस प्लेटफ़ॉर्म के
कितने ही प्लेटफ़ॉर्म हैं
मसलन संजय दत्त के
बढ़े हुए रक्तचाप की वजह
वह बेचैनी और तनाव थे
जिनकी उन्होंने जेल में शिकायत की
तेरानबे के मुंबई बम कांड के
कितने सज़ायाफ़्ता क़ैदियों ने
की वह शिकायत ?
अपराध-बोध, पछतावा या ग्लानि
कितनी कम रह गई है
हमारे समाज में
इसकी तस्दीक़ होती है
एक दिवंगत प्रधानमंत्री के
इस बयान से
कि भ्रष्टाचार हमारी ज़िंदगी में
इस क़दर शामिल है
कि अब उस पर
कोई भी बहस बेमानी है
इसलिए वे रक्त कैंसर से मरे
रक्तचाप से नहीं
हिंदी के एक आलोचक ने
उनकी जेल डायरी की तुलना
काफ़्का की डायरी से की थी
हालाँकि काफ़्का ने कहा था
कि उम्मीद है
उम्मीद क्यों नहीं है
बहुत ज़्यादा उम्मीद है
मगर वह हम जैसों के लिए नहीं है
जैसे भारत के किसानों को नहीं है
न कामगारों-बेरोज़गारों को
न पी. साईनाथ को
और न ही वरवर राव को है उम्मीद
लेकिन प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री
और योजना आयोग के उपाध्यक्ष को
बाबा रामदेव को
और मुकेश अंबानी को उम्मीद है
जो कहते हैं
कि देश की बढ़ती हुई आबादी
कोई समस्या नहीं
बल्कि उनके लिए वरदान है
मेरे एक मित्र ने कहा :
रक्तचाप का गिरना बुरी बात है
लेकिन उसके बढ़ जाने में कोई हरज नहीं
क्योंकि सारे बड़े फ़ैसले
उच्च रक्तचाप के
दौरान ही लिए जाते हैं
इसलिए यह खोज का विषय है
कि अठारह सौ सत्तावन की
डेढ़ सौवीं सालगिरह मना रहे
देश के प्रधानमंत्री का
विगत ब्रिटिश हुकूमत के लिए
इंग्लैंड के प्रति आभार-प्रदर्शन
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए
वित्त मंत्री का निमंत्रण –
कि आइये हमारे मुल्क में
और इस बार
ईस्ट इंडिया कंपनी से
कहीं ज़्यादा मुनाफ़ा कमाइए
और नंदीग्राम और सिंगूर के
हत्याकांडों के बाद भी
उन पाँच सौ विशेष आर्थिक क्षेत्रों को
कुछ संशोधनों के साथ
क़ायम करने की योजना –
जिनमें भारतीय संविधान
सामान्यतः लागू नहीं होगा –
क्या इन सभी फ़ैसलों
या कामों के दरमियान
हमारे हुक्मरान
उच्च रक्तचाप से पीड़ित थे ?
या वे असंख्य भारतीय
जो अठारह सौ सत्तावन की लड़ाई में
अकल्पनीय बर्बरता से मारे गए
क़र्ज़ में डूबे वे अनगिनत किसान
जिन्होंने पिछले बीस बरसों में
आत्महत्याएँ कीं
और वे जो नंदीग्राम में
पुलिस की गोली खाकर मरे –
अपना रक्तचाप
सामान्य नहीं रख पाए ?
यों तुम भी जब मरोगे
तो कौन कहेगा
कि तुम उत्तर आधुनिक सभ्यता के
औज़ारों की चकाचौंध में मरे
लगातार अपमान
और विश्वासघात से
कौन कहता है
कि इराक़ में जिसने
लोगों को मौत की सज़ा दी
वह किसी इराक़ी न्यायाधीश की नहीं
अमेरिकी निज़ाम की अदालत है
सब उस बीमारी का नाम लेते हैं
जिससे तुम मरते हो
उस विडंबना का नहीं
जिससे वह बीमारी पैदा हुई थी