प्यार : बीसवीं सदी-3 | प्रभात रंजन
प्यार : बीसवीं सदी-3 | प्रभात रंजन

प्यार : बीसवीं सदी-3 | प्रभात रंजन

प्यार : बीसवीं सदी-3 | प्रभात रंजन

मुंशी रामाधार
काम क्लर्की
तनख्वाह दस-दस, दस बार
बच्चों की संख्या छह-सात
पत्नी कृष, जर्जर, चिड़चिड़ाती,
घर ज्यों नरक का द्वार,
बच्चे बीमार,
दिन-भर चीखोपुकार,
‘माँ, लगी है भूख’
‘आ खा ले मुझे
कट जाए
भवधार’

मुंशी रामाधार –
तीन बेटियाँ
यौवनवती, सुंदरी
हीरे की ज्यों मुंदरी
ज्यों घूरे पर पन्नियाँ…

विवाह के लिए तैयार
दहेज पंद्रह-बीस हजार
(इंतजार, इंतजार, इंतजार।)

बगल के रईसजादे –
(शानदार)
सिनेमा के गाने
फिर ताँक-झाँक –
बिटिया ‘रमो’
उम्र अट्ठाइस साल –
(तिल-तिल जला हुआ, झँवराया चेहरा}

पहले तो चंद दिन
माता जी से
हुआ परिचय
फिर बहिन जी से बातचीत
किस्से-कहानी की किताबों का आदान-प्रदान,
खतोकिताबत।
फिर…फिर…फिर… –

रमा बाई –
कोठरी नंबर अट्ठाइस
खाँसी…
घुटती धुएँ की दीवार।

यह नहीं कि प्यार मर गया है
या सब-कुछ बदल गया है।
प्यार जिंदा है।
बहुत-कुछ वह,
जो कहा नहीं जाता।
घुटता है आदमी इतना
कि
सहा नहीं जाता
पर तब भी प्यार कहा नहीं जाता…
ये आधी गिरती,
आधी सँभली दीवारें
यह समाज –
इसके मूल्य,
इसकी व्यवस्थाएँ,
आस्थाएँ…
अर्द्ध-सत्य के धुएँ-भरे कुएँ से
घुटता, चीखता, कराहता समाज।

हमसे, तुमसे, सबसे
बना हुआ समाज
यहाँ प्यार नहीं –
केवल व्यभिचार।

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