पुन्न के काम आए हैं | दिविक रमेश
पुन्न के काम आए हैं | दिविक रमेश

पुन्न के काम आए हैं | दिविक रमेश

पुन्न के काम आए हैं | दिविक रमेश

सब के सब मर गए
उनकी घरवालियों को
कुछ दे दिवा दो भाई

कैसा विलाप कर रही हैं।

‘कैसे हुआ ?’
वही पुरानी कथा
काठी गाल रहे थे
लगता है ढह पड़ी
सब्ब दब गए
होनी को कौन रोक सकता है
अरी, अब शबर भी करो
पुन्न के काम ही तो आये हैं

लगता है
कुआं बलि चाहता था

हां
जब भी कुआं बलि चाहता है
बेचारे मजदूरों पर ही कहर ढहाता है।’

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *