प्रेमा तेरहवां अध्याय - शोकदायक घटना | मुंशी प्रेमचंद | हिंदी कहानी
प्रेमा तेरहवां अध्याय - शोकदायक घटना | मुंशी प्रेमचंद | हिंदी कहानी

पूर्णा, रामकली और लक्ष्मी तीनों बड़े आनन्द से हित-मिलकर रहने लगी। उनका समय अब बातचीत, हँसी-दिल्लगी में कट जात। चिन्ता की परछाई भी न दिखायी देती। पूर्णा दो-तीन महीने में निखर कर ऐसी कोमलागी हो गयी थी कि पहिचान न जाती थी। रामकली भी खूब रंग-रूप निकाले थी। उसका निखार और यौवन पूर्णा को भी मात करता था। उसकी ऑंखों में अब चंचलता और मुख पर वह चपलता न थी जो पहले दिखायी देती थी। बल्कि अब वह अति सुकुमार कामिनी हो गयी थी। अच्छे संग में बैठते-बैठते उसकी चाल-ढाल में गम्भीरता और धैर्य आ गया था।

अब वह गंगा स्नान और मन्दिर का नाम भी लेती। अगर कभी-कभी पूर्णा उसको छोड़ने के लिए पिछली बातें याद दिलाती तो वह नाक-भौं चढ़ा लेती, रुठ जाती। मगर इन तीनों में लक्ष्मी का रुप निराला था। वह बड़े घर में पैदा हुई थी। उसके मॉँ-बाप ने उसे बड़े लाड़-प्यार से पाला था और उसका बड़ी उत्तम रीति पर शिक्षा दी थी। उसका कोमल गत, उसकी मनोहर वाणी, उसे अपनी सखियॉँ में रानी की पदावी देती थी। वह गाने-बजाने में निपुण थी और अपनी सखियों को यह गुण सिखाया करती थी। इसी तरह पूर्णा को अनेक प्रकार के व्यंजन बनाने का व्यसन था। बेचारी रामकली के हाथों में यह सब गुण न थे। हॉँ, वह हँसोड़ी थी और अपनी रसीली बातों से सखियों को हँसाया करती थी।

एक दिन शाम को तीनों सखियाँ बैठी बातचित कर रही थी कि पूर्णा ने मुसकराकर रामकली से पूछा—क्यों रम्मन, आजकल मन्दिर पूजा करने नहीं जाती हो।

रामकली ने झेंपकर जवाब दिया—अब वहॉँ जाने को जी नहीं चाहता। लक्ष्मी रामकली का सब वृत्तान्त सुन चुकी थी। वह बोली—हॉँ बुआ, अब तो हँसने-बोलने का सामान घर ही पर ही मौजूद है।

रामकली—(तिनककर) तुमसे कौन बोलता है, जो लगी जहर उगलने। बहिन, इनको मना कर दो, यह हमारी बातों में न बोला करें। नहीं तो अभी कुछ कह बैठूँगी तो रोती फिरेंगी।

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  2. प्रेमा दूसरा अध्याय- जलन बुरी बला है
  3. प्रेमा तीसरा अध्याय- झूठे मददगार
  4. प्रेमा चौथा अध्याय- जवानी की मौत
  5. प्रेमा पाँचवां अध्याय – अँय ! यह गजरा क्या हो गया?
  6. प्रेमा छठा अध्याय – मुये पर सौ दुर्रे
  7. प्रेमा सातवां अध्याय – आज से कभी मन्दिर न जाऊँगी
  8. प्रेमा आठवां अध्याय- कुछ और बातचीत
  9. प्रेमा नौवां अध्याय – तुम सचमुच जादूगर हो
  10. प्रेमा दसवाँ अध्याय – विवाह हो गया
  11. प्रेमा ग्यारहवाँ अध्याय – विरोधियों का विरोध
  12. प्रेमा बारहवाँ अध्याय – एक स्त्री के दो पुरूष नहीं हो सकते
  13. प्रेमा तेरहवां अध्याय – शोकदायक घटना

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