प्रेमा तीसरा अध्याय- झूठे मददगार | मुंशी प्रेमचंद | हिंदी कहानी
प्रेमा तीसरा अध्याय- झूठे मददगार | मुंशी प्रेमचंद | हिंदी कहानी

बाबू अमृतराय रात भर करवटें बदलते रहे। ज्यों-ज्यों उन्होने अपने नये इरादों और नई उमंगो पर विचार किया त्यों-त्यों उनका दिल और भी दृढ़ होता गया और भोर होते-होते देशभक्ति का जोश उनके दिल में लहरें मारने लगा। पहले कुछ देर तक प्रेमा से नाता टूट जाने की चिंता इस लहर पर बॉँध का काम करती रही। मगर अंत में लहरे ऐसी उठीं कि वह बॉँध टूट गया।


सुबह होते ही मुँह-हाथ धो, कपड़े पहिन और बाइसिकिल पर सवार होकर अपने दोस्तों की तरफ चले। पहले पहिल मिस्टर गुलजारीलालबी.ए. एल.एल.बी. के यहॉँ पहुँचे। यह वकील साहब बड़े उपकारी मनुष्य थे और सामाजिक सुधार का बड़ा पक्ष करते है। उन्होंने जब अमुतराय के इरादे ओर उनके पूरे होने की कल्पनाए सुनी तो बहुत खुश हुए और बोले—आप मेरी ओर से निश्चिंत रहिए और मुझे अपना सच्चा हितैषी समझिए। मुझे बहुत हर्ष हुआ कि हमारे शहर में आप जैसे योग्य पुरूष ने इस भारी बोझ को अपने सार लिया। आप जो काम चाहें मुझे सौप दीजिए, मै उसको अवश्य पूरा करूगा और उसमें अपनी बड़ाई समझूँगा।


अमृतराय वकील साहब की बातों पर लटू हो गये। उन्होंने सच्चे दिल से उनको धन्यवाद दिया और कहा कि मैं इश शहर में एक सामाजिक सुधार की सभा स्थापित करना चाहता हूँ। वकील साहब इस बात पर उछल पड़े और कहा कि आप मुझे उस सभा का सदस्य और हितचिन्तक समझें। मैं उसकी मदद दिलोजान से करुँगा। उमृतराय इस अच्छे शगुन होते हुए दाननाथ के घर पहूँचे। हम पहले कह चुके हैं कि दाननाथ के घर पहूँचे। हम पहले कह चुके है कि दाननाथ उनके सच्चे दोस्तों में थे। वे दनको देखते ही बड़े आदर से उठ खड़े हुए और पूछा-क्यों भाई, क्या इरादे हैं?


अमृतराय ने बहुत गम्भीरत से जवाब दिया—मैं अपने इरादे आप पर प्रकट कर चका हूँ और आप जानते हैं कि मैं जो कुछ कहता हूँ वह कर दिखाता हूँ। बस आप के पास केवल इतना पूछना के लिए आया हूँ कि आप इस शुभ कार्य में मेरी कुछ मदद करेंगे या नहीं?

दाननाथ सामजिक सुधार को पंसद तो करता था मगर उसके लिए हानी या बदनामी लेना नहीं चाहता था। फिर इस वक्त तो, वह लाला बदरी प्रसाद का कृपापात्र भी बनना चाहता था, इसलिए उसने जवाब दिया—अमृतराय तुम जानते हो कि मैं हर काम में तुम्हारा साथ देने को तैयार हूँ। रुपया पैसा समय, सभी से सहायता करुगॉँ, मगर छिपे-छिपे। अभी मैं इस सभा में खुल्लम-खुल्ला सम्मिलित होकर नुकसान उठाना उचित नहीं समझता। विशेष इस कारण से कि मेरे सम्मिलत होने से सभा को कोई बल नहीं पहुँचेगा।

Further Reading:

  1. प्रेमा पहला अध्याय- सच्ची उदारता
  2. प्रेमा दूसरा अध्याय- जलन बुरी बला है
  3. प्रेमा तीसरा अध्याय- झूठे मददगार
  4. प्रेमा चौथा अध्याय- जवानी की मौत
  5. प्रेमा पाँचवां अध्याय – अँय ! यह गजरा क्या हो गया?
  6. प्रेमा छठा अध्याय – मुये पर सौ दुर्रे
  7. प्रेमा सातवां अध्याय – आज से कभी मन्दिर न जाऊँगी
  8. प्रेमा आठवां अध्याय- कुछ और बातचीत
  9. प्रेमा नौवां अध्याय – तुम सचमुच जादूगर हो
  10. प्रेमा दसवाँ अध्याय – विवाह हो गया
  11. प्रेमा ग्यारहवाँ अध्याय – विरोधियों का विरोध
  12. प्रेमा बारहवाँ अध्याय – एक स्त्री के दो पुरूष नहीं हो सकते
  13. प्रेमा तेरहवां अध्याय – शोकदायक घटना

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *