प्रयागराज एक्सप्रेस का दुख
प्रयागराज एक्सप्रेस का दुख

यहाँ यानि इलाहाबाद की यह राजा रेलगाड़ी कही जाती है
देश की राजधानी दिल्ली इसका गंतव्य है
इससे यात्रा गौरव की बात है यहाँ
इलाहाबाद वाले गर्व से बताते हैं
‘हाँ भई, टिकट कन्फर्म हो गया प्रयागराज से…
“बुद्धिजीवियों के शहर में इस सवाल का जवाब” किससे टिकट निकाले’
सबसे शानदार है
‘अमें परयागराज से जाय रहे हैं
रात को बइठो सुबेरे हाजिर’
इसकी बहुत सारी खासियतें हैं
मसलन यह दिल्ली के लिए सबसे अच्छी गाड़ी है
आप घर से खाना खाकर आएँ और आकर सो जाएँ
नींद खुलेगी गाजियाबाद में तो मोजों के ऊपर जूते चढ़ा लेंगे
सीट के नीचे से निकाल कर
कानपुर में सिर्फ 10-15 मिनट का स्टॉपेज
फतेहपुर और अलीगढ़ को तो निपटा देती है 3-3, 4-4 मिनट में
निस्संदेह और भी गाड़ियाँ हैं दिल्ली के लिए
जैसे ब्रह्मपुत्र, पुरुषोत्तम, महाबोधि या फिर वीआईपी राजधानी
लेकिन प्रयागराज का अर्थ इलाहाबाद और इलाहाबाद यानि प्रयागराज
कोई और ट्रेन क्यों पकड़े जब जाना है इलाहाबाद से दिल्ली
इसकी खासियतों के कारण इसे पुरस्कार भी मिले हैं
कम स्टॉपेज और बेहतरीन डिपार्चर टाइम के लिए मिले पुरस्कारों को लेकर इसे खुद पर गर्व होता है
प्लेटफॉर्म नं. 1 पर देर तक सबसे खूबसूरत और उत्साही चेहरे
दिखने का समय है रात के नौ से साढ़े नौ बजे के आसपास
यानि प्रयागराज का समय
दिल्ली जाने का रोमांच और उत्तेजना लपेटे
सुंदर चेहरे फुदकते हैं प्लेटफॉर्म पर
प्रयागराज के अंदर भाव होता है दिल्ली जीत लेने का
दुनिया जीत लेने का
यह जंक्शन की दुलारी गाड़ियों में से एक है
जिसका फायदा उठा लेती है कभी-कभी नटखट बच्चे की तरह
समय से आधा घंटा पहले खड़ी हो जाती है प्लेटफॉर्म नं. 1 पर
खूब बोलती और अपने महत्व पर इतराती हुई कहती है
‘उहूँ, हम तो यहीं खड़े होंगे
बाकी छोटी-मोटी गाड़ियों को किसी और प्लेटफॉर्म पर सेट करो’
कुछ साधारण गाड़ियों के प्लेटफॉर्म भी बदलवा देती है मूड खराब होने पर
जब यह छूटती है किलकारी भरती हुई
चमकती रंगत के साथ मन में ढेरों योजनाएँ और सपने पोसती
तो पूरा प्लेटफॉर्म हिलाता है हाथ
इसे विदा करने के लिए
विदा करने के बाद थोड़ी देर के लिए उदास हो जाता है जंक्शन
बेटी की विदाई जैसा सूनापन आ खड़ा होता है थोड़ी देर के लिए प्लेटफॉर्म पर
जंक्शन के मन में आशीर्वाद फूटता है
‘हमेशा ऐसे ही मुस्कराती रहना’
लेकिन उसके आशीर्वाद का असर नहीं रहता दिल्ली पहुँचने तक
राजधानी तक पहुँचते-पहुँचते सहमने लगती है वह
राजधानी के व्यवहार से
वहाँ उसे धकेल दिया जाता है अंदर के प्लेटफॉर्मों पर
प्रयागराज धीरे से सीटी बजाती हुई खड़ी होती है प्लेटफॉर्म 5-6 के आसपास
प्लेटफॉर्म उसे बिल्कुल घास नहीं डालता और व्यंग्य से मुस्कराता है
उसे प्रयागराज की विशेशताओं से नहीं मतलब
वह जानकर क्या करेगा कि इसे कितने पुरस्कार मिले हैं
वह नहीं सोचता कि यह भी किसी जंक्शन की दुलारी है
यह दिल्ली का प्लेटफॉर्म है
इसे सोचने की फुरसत नहीं
प्रयागराज से उतरने वाले चेहरे बदल चुके होते हैं
प्रयागराज की सहम उनके चेहरों पर भी दिखाई देती है
प्रयागराज उनके चेहरों को देखकर दुखी होती है
उसके पहिए भारी हो जाते हैं और सीटी की आवाज फँसी-फँसी सी निकलती है
वह चुपचाप खड़ी रहती है
वहाँ उस जैसी कई छोटे शहरों की स्टार गाड़ियाँ खड़ी मिलती हैं
जिनसे वह बहुत जल्दी अच्छी दोस्ती कर लेती है
बनारस से ऐसे ही इतराती चली शिवगंगा से उसकी अच्छी बनती है
जिसके जंक्शन पर आने की खबर सुनकर उसे कोफ्त होती थी
लेकिन अब वह बहुत अपनी सी लगती है

परदेस में दोस्तियों के कितने कारण होते हैं !

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