प्रवासी पक्षी | प्रतिभा गोटीवाले
प्रवासी पक्षी | प्रतिभा गोटीवाले

प्रवासी पक्षी | प्रतिभा गोटीवाले

प्रवासी पक्षी | प्रतिभा गोटीवाले

जब से निकली हूँ प्रवास पर 
नहीं देखा है मैंने 
अपना सूरज, अपनी सुबह 
अपनी रातें और अपना दिन 
सब तुम्हारे है, तुम्हारे दिए हुए 
चाहती तो मैं भी 
तिनका तिनका चुनकर 
बना सकती थी एक 
घरौंदा अपने लिए 
पर मैंने अपना लिया 
तुम्हारा घर, तुम्हारे सपने 
और तुम्हारा आकाश 
देखो अपने पंखों को भी 
समेट लिया है मैंने 
के टूटे ना तुम्हारा नीड़ 
बदल ली हैं मैंने अपनी 
आदतें और जीवन शैली 
सीमित कर ली हैं अपने 
सपनों की उड़ान बस 
तुम्हारे आसमान तक 
और तुम अब भी कहते हो 
प्रवासी मुझे 
तुम्हीं बताओ 
कैसे ये प्रवास खत्म करूँ 
और पाऊँ कहा मैं मंजिल को ?

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