प्रस्थान के बाद | कुँवर नारायण
प्रस्थान के बाद | कुँवर नारायण
दीवार पर टँगी घड़ी
कहती – “उठो अब वक्त आ गया।”
कोने में खड़ी छड़ी
कहती – “चलो अब, बहुत दूर जाना है।”
पैताने रखे जूते पाँव छूते
“पहन लो हमें, रास्ता ऊबड़-खाबड़ है।”
सन्नाटा कहता – “घबराओ मत
मैं तुम्हारे साथ हूँ।”
यादें कहतीं – “भूल जाओ हमें अब
हमारा कोई ठिकाना नहीं।”
सिरहाने खड़ा अँधेरे का लबादा
कहता – “ओढ़ लो मुझे
बाहर बर्फ पड़ रही
और हमें मुँह-अँधेरे ही निकल जाना है…”
एक बीमार
बिस्तर से उठे बिना ही
घर से बाहर चला जाता।
बाकी बची दुनिया
उसके बाद का आयोजन है।