पोर-रंध्रों ने | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता
पोर-रंध्रों ने | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

अपनी हथेलियों से
उसने अपनी हँसी को
ढाँप लिया

पोर-रंध्रों ने
छलक जाने दिया
उस उजास को।

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