पिंजड़ा | प्रयाग शुक्ला
पिंजड़ा | प्रयाग शुक्ला
इस पिंजड़े को देख कर
याद आता है एक पिंजड़ा!
अब कितना भी याद करूँ
नाम याद नहीं आएँगे,
बचपन में पाली हुई
चिड़ियों के।
चमकते पत्तों पर कुछ
लिखा नहीं है। अब।
अँगुली रख कर बता नहीं सकूँगा।
मैं कुछ कहना चाहता हूँ
बहुत दिनों से।
किस तरह भूली हुई थी
कहने की इच्छा !