फिर जला लोहबान यारो | देवेंद्र कुमार बंगाली
फिर जला लोहबान यारो | देवेंद्र कुमार बंगाली

फिर जला लोहबान यारो | देवेंद्र कुमार बंगाली

फिर जला लोहबान यारो | देवेंद्र कुमार बंगाली

फिर जला लोहबान यारो
महक उठा घर-बगीचा, गाँव, नगर
सिवान यारो।

रह गई छाया अधूरी
एक चम्‍मच, एक छूरी
एक मुट्ठी प्‍यार बचपन
खेल का मैदान यारो।

See also  झूठ - 6 | दिव्या माथुर

रक्‍त की प्‍यासी शिराएँ
बंद कमरे की हवाएँ
रात जाड़े की बुढ़ापा,
सोच के हैरान यारो

पहाड़ों की चोटियाँ हैं
दो-पहर की रोटियाँ हैं
भरी, घाटी-सी जवानी
मुश्किलों की खान यारो।

Leave a comment

Leave a Reply