पेड़ों का शहर | नीलेश रघुवंशी
पेड़ों का शहर | नीलेश रघुवंशी
कल रात स्वप्न में
एक पेड़ से लिपटकर बहुत रोई
हिचकियाँ लेते रुँधे गले से बोली
मैं जीना चाहती हूँ और जीवन बहुत दूर है मुझसे
पेड़ ने कहा
मेरे साथ चलो तुम मेरे शहर
रोते हुए आँखें चमक गईं मेरी
पेड़ों का शहर…?
चमकती हुई रात में
अचानक हम ट्रेफिक में घिर गए
बीच चौराहे पर एक हरा भरा पेड़
सब ओर खुशी की बूँदें छा गईं
पेड़ के होने से
चौराहे की खूबसूरती में चार चाँद लग गए…!
स्वप्न ने करवट बदली
भयानक शोर भारी भरकम क्रेन
पेड़ शिफ्टिंग करने वालों का काफिला
सबसे ऊँची टहनी पर बैठी मैं
पेड़ के संग हवा में लहराने लगी
क्रेन हमारे पास बहुत पास आ रही थी
चौराहे पर लोगों का जबरदस्त हुजूम
भय और आश्चर्य से भरी आवाजें
इसी अफरा-तफरी और हो-हल्ले में
पेड़ अपने शहर का रास्ता भूल गया
पेड़ों का शहर…
एक लंबी सिसकारी भरी मैंने नींद में !