पत्थरों के अवशेष | धीरज श्रीवास्तव
पत्थरों के अवशेष | धीरज श्रीवास्तव

पत्थरों के अवशेष | धीरज श्रीवास्तव

पत्थरों के अवशेष | धीरज श्रीवास्तव

खंडहरों का प्राचीन अवशेष
काँपते-टूटते, जीर्ण
पत्थरों के अस्तित्व !

याद दिलाते
आने वाली
नई सभ्याताओं को
अपनी अर्वाचीन सभ्यता का।

काँपती-हिलती दीवारें
टूटे-फूटे, आँगन-चौबारे
खड़े हैं सादियों से
महलों के ये अवशेष।

पत्थरों के अवशेष !
स्मृति कराते
परिचय देते
अपने सामाजिक
राजनीतिक
धार्मिक
रिवाजों के।
देख उनकी सभ्यता
विस्मित है आज का मानव।

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