पारदर्शी किला
पारदर्शी किला

यह एक पारदर्शी किला है
घंटी चीखती है
रपटता है बीड़ी बुझाकर
बंद कमरे की तरफ
स्टूल पर बैठा आदमी

घंटी इंतजार नहीं कर सकती
कर सकती है नींद हराम
बिगाड़ सकती है जीवन
देर होने पर

इस बंद कमरे में
आखिर किस पर बहस होती है
अक्सर एक सुंदरी होती है वहाँ
एक पेंसिल और छोटी कॉपी के साथ
वे चाय पीते हैं हँसते हैं लगातार
स्टूल पर बैठा आदमी सोचता है
क्या हँसना इतना आसान है

स्टूल पर बैठा आदमी
हँस रहा है
पर उसके हँसने की शक्ल
रोने से इस कदर मिलती क्यों है

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *