पानी को बैठ कर धीरे-धीरे व घूंट-घूंट ही क्यों पीना चाहिए?
पानी को बैठ कर धीरे-धीरे व घूंट-घूंट ही क्यों पीना चाहिए?

अक्सर हमने अपने बड़ो से सुना है कि पानी को सदैव बैठ कर, धीरे धीरे घूँट घूँट कर के पीना चाहिए ।

लेकिन संभवतः हमे इनके पीछे का कारण कभी नही मिलाआखिर क्या है इसके पीछे का कारण?

आइये जानते है-

पानी जो कि हमारे जीवन मे अतिआवश्यक पदार्थ है।इसके बिना जीवन की कल्पना निराधार है ।

जब हम पानी पीते है तो इसकी अल्प मात्रा मुख से अवशोषित होती है, लेकिन अधिकांश मात्रा आंतो द्वारा अवशोषित की जाती है(मुख्यतः बड़ी आंत्र द्वारा)

हर कार्य को होने में कुछ समय लगता है उसी प्रकार जल को अवशोषित होने में भी कुछ समय लगता है।

इसके लिए जल का आंतो में रहना जरूरी है । क्योंकि यहीं जल का अवशोषण किया जाता है

यदि हम एक साथ ज्यादा पानी पीते है तो यह बिना आंतो में रुके सीधा ही आंतो से आगे निकल जाता है और कुछ मात्रा मूत्र के रूप में व अधिकांश मल के साथ निकल जाती है जिससे सिर्फ कुछ मात्रा का ही अवशोषण ही पाता है, शेष पानी बर्बाद हो जाता है।

यह बर्बाद होता पानी शरीर को भी हानि पंहुचा जाता है। जिन पोषक तत्वों को किडनी व आंतो द्वारा पुनः अवशोषित करना था वह भी इस पानी के साथ विलेय होकर शरीर से बाहर निकल जाते है, जिनकी पूर्ति पुनः बाहर से करनी पड़ती है ।

इसलिए कहा जाता है कि पानी को धीरे धीरे घूँट घूँट करके पीना चाहिए ताकि कम मात्रा व धीमी गति होते हुए यह आंतो द्वारा अवशोषित हो सके न कि अधिक मात्रा के कारण आंतो से प्रवाहित हो जाये ।

यहां कुछ चौंकाने वाले वैज्ञानिक कारण बताए गए हैं जो आपके शरीर में उस अंतर को बताते हैं

जब आप बैठने के विपरीत खड़े होकर पानी पीते है

होकर पानी पीने से गठिया हो सकता हैयह आपके लिए एक बड़ा झटका हो सकता है यदि आपको खड़े खड़े पानी पीने की आदत है, तो आप जीवन में बाद में गठिया से बहुत बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं। खड़े होकर पानी पीने से शरीर में तरल पदार्थों का संतुलन बाधित होता हैं, और इससे अक्सर जोड़ों में तरल पदार्थ का अधिक संचय होता है और उनके क्रिस्टल बननेलगते है जिससे गठिया होता है

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