ओ आषाढ़ के प्रथम मेघ | प्रभुनारायण पटेल
ओ आषाढ़ के प्रथम मेघ | प्रभुनारायण पटेल

ओ आषाढ़ के प्रथम मेघ | प्रभुनारायण पटेल

ओ आषाढ़ के प्रथम मेघ | प्रभुनारायण पटेल

ओ आषाढ़ के प्रथम मेघ!
हीरो होंडा से कम नहीं,
आपका बेग,
छैले!
तुम नहले पर दहले,
कहाँ से चले?
कहाँ की तैयारी?
आओ मिलेंगे गले,
करेंगे यारी,
ओ बंजारे!
तुम रुको रात,
आँगन में डेरा डारे,
कल निकल जाना सकाल,
आगे भोपाल।
हमारे ही एम एल ए
श्यामला हिल रेस्ट हाउस में
मिलेंगे आपको मेले,
हैं सूखा प्रभारी,
कल दूरदर्शन पर,
दिखी उनकी छबि प्यारी,
उस चितवन में हँसी थी,
मोहित उर्वशी थी,
साँसो में चंदन था,
अधरों पर अमृत,
नहीं कोसों तक
दिख रहा जन क्रंदन था,
हम सोचते रहे – वाह
प्रजातंत्र के शहंशाह!
कैसी आपकी माया
आपके उलूक मंत्रोच्चार से देश
इक्कीसवीं सदी के द्वार पर चला आया,
पर, कटोरा लेकर!
हे सेंचुरी-मेकर!
यहाँ ये आपके चेले,
बका, फरसा, बम से नित
खुले आम खेलें,
तो कहाँ तक बचेंगे शेष
गरीब, गरीबी-रेखा के क्लेश,
मेघ!
तुम देख लेना
जरा देकर ध्यान,
रास्ते में पड़ेगी
बस्तियाँ बीरान,
वे भूखे फटेहाल,
मुरझाए हुए मन,
पिचके हुए गाल,
रेतीली नदी की टूटी हुई चाल,
फूटे तबेले पर तहरी हुई ताल,
तुम बहा लेना दो आँसू दिल को साध,
देखना फिर आगे
वे ऊँची हवेलियाँ,
सौंदर्य की साक्षात प्रतिमाएँ
सखियाँ, सहेलियाँ,
वे गोपियाँ, ग्वाले,
रचाकर जो रास
पीटने ही वाले
इस देश के दिवाले।
मेघ! हमने सुना,
सत्ता-सुंदरी का झुनझुना,
कल कमल दल पर बजेगा,
बूढ़ी आजादी की कुँआरी साँसों को
हीरक हार सजेगा।
वे रामराज्य के सपने,
हम भी देखेंगे,
दिखाने वाले जब अपने,
मंत्री महोदय मंशाराम,
कल की शाम,
दिल्ली चले गए हैं,
वैसे यार,
हमारा यह इकलोता
अनुभव नहीं है,
हम बीसों बार छले गए हैं,
हे दोस्त! तुम ठहरे खानाबदोश
जरा मेवाड़ के अंदर से,
घूम जाना आहिस्ते,
पोरबंदर के रस्ते,
बोलना बापू को नमस्ते,
कहना अब आपके आदर्श
अब कौड़ियों से सस्ते,
मेघ!
तुम तो दूत
दिलों के मामले में नामी हो,
कवि कुल गुरु से दीक्षित हो,
अंतर्यामी हो,
तुम्हारा अंतिम पड़ाव,
माधुरी दीक्षित का गाँव,
मुंबई – रूप रस की नगरिया,
तुम जरा संजीदगी से
उनकी बड़ी दीदी से कहना –
चलो, वर्षाजी !
अब भरलो गगरिया।
तुम ठोकना सही
सागर को नमस्ते,
फिर लौटना यहीं
भूमिगत रस्ते। 

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *