एक अकेले कमरे में
नींद अकेली दिखती है अक्सर
पर
कितनी चीजें और वहाँ होती हैं
भीतर-बाहर
मन के तन के
देखो तो नींद
वस्त्र है झीना-सा
दीखता है
पार दृश्य भी उसके
देखो तो कैसे मन
नींद में धीरे-धीरे
अर्जित करता है ऊष्मा
धीरे-धीरे हटाती हैं सलवटें आत्मा की
धीरे धीरे नींद करती है मुक्त
प्रेम-सी।