नजरें पहचानना | मंजूषा मन
नजरें पहचानना | मंजूषा मन

नजरें पहचानना | मंजूषा मन

नजरें पहचानना | मंजूषा मन

पीठ पर,
बस्ता टाँगे
स्कूल जातीं छोटी लड़कियाँ
अब समझने लगीं हैं
उन
अंकलनुमा आदमियों की नजरें
जो उन्हें घूरा करते हैं
आते-जाते…
वही
शाम को
अपने घर में
बेटी को सिखाता है
नजरें पहचानना…।

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