नहीं बीतती साँझ | नामवर सिंह
नहीं बीतती साँझ | नामवर सिंह

नहीं बीतती साँझ | नामवर सिंह

नहीं बीतती साँझ | नामवर सिंह

दिन बीता,
पर नहीं बीतती,
नहीं बीतती साँझ!

नहीं बीतती,
नहीं बीतती,
नहीं बीतती साँझ!

ढलता-ढलता दिन
दृग की कोरों से ढुलक न पाया

मुक्त कुंतले!
व्योम मौन मुझ पर तुम-सा ही छाया

मन में निशि है
किंतु नयन से
नहीं बीतती साँझ!

सूनेपन का अति मन में वन कोलाहल मँडराया
सुने गीत की गूँज सदृश मन में अतीत लहराया
मन का रवि डूबा पर मन से नहीं बीतती साँझ!

बैठा सजल ओस-सा मैं दूर्वा में ज्यों भर आया
मन के मोती की लौ को इन किरनों ने उकसाया
ज्वलनशील इस करुणा कण से नहीं बीतती साँझ!

देख रहा हूँ दूर ‘यूकलिप्टस’ की खुली भुजाएँ
बाँहों में आकाश नयन में कुहरे की रेखाएँ
किंतु विहग-कूजित इस वन में नहीं बीतती साँझ!
 

व्योम-कुसुम! तुम दूर कहीं सौरभ-वाणी फैलाती
लहर-लहर मुझ तक पुरुरवा-सी याद तुम्हारी आती
अखिल आयु-प्लावित इस क्षण से नहीं बीतती साँझ!
 

खुले ताल में प्रतिबिंबित तिरते घन धीरे-धीरे
भरे नयन में हैं तिरती तब क्षण-क्षण की तस्वीरें
इस सिंदूरी चित्रांकन से नहीं बीतती साँझ!

वाष्पाकुल सर सरि तरु अंबर नगर डगर गिरि-श्रेणी
वाष्पशिखा विस्तृत शस्यों पर खोल रही है वेणी
गलितप्राय नयनों के घन से नहीं बीतती साँझ!

गीतों के दुख से जीवन का दुख मैं जीत न पाता
गीला शारदीय दिन यह फिर भी तो बीत न पाता
भस्मावृत जीवन-यौवन से नहीं बीतती साँझ!

नीड़-भ्रांत, पथश्रांत विहग-सा है उड़ता स्वर मेरा
शून्य पवन की डाली पर कब तक हो रैन-बसेरा
गीत लिखा फिर भी गायन से नहीं बीतती साँझ!

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