नदीकथा | कुमार मंगलम
नदीकथा | कुमार मंगलम

नदीकथा | कुमार मंगलम

नदीकथा | कुमार मंगलम

दिन ढलते 
शाम 
तट पर पानी में पैर डाले 
नदी किनारे 
रेत पर 
औंधा पड़ा है

2.

नदी किनारे 
रेत के खूँटे में 
बजड़ा बँधा है

नदी के 
प्रवाह में प्रतिबिंबित 
एक बजड़ा और है

यूँ नदी ने 
बजड़े की चादर ओढ़ रखी है

3.

नदी के बीच धारा में 
लौटते सूर्य की छाया

नदी के भाल को 
सिंदूर तिलकित कर दिया है

यूँ नदी 
सुहागन हो गई है।

4.

नदी के तीर 
एक शव जल रहा है

अग्नि शिखा 
जल में 
शीतलता पा रही है।

5.

सूर्योदय के वक्त 
पश्चिम से 
पूर्व की ओर देखता हूँ

नदी के गर्भ से 
सूर्य बाहर आ रहा है।

6.

नदी किनारे 
एक लड़की 
जल में पैर डाले

बाल खोले 
उदास हो 
जल से अठखेलियाँ खेलती है

यूँ नदी से 
हालचाल पूछती है।

7.

बीच धारा में 
नाव 
नहीं ठहरती

नदी के बीच में 
भँवर है

8.

नदी 
को देखा आज नंगा

पानी उसका 
कोई पी गया है

नदी अपने रेत में 
अपने को खोजती

एक बुल्डोजर 
उस रेत को ट्रक में भर कर

नदी को शहर में 
पहुँचा रहा है।

9.

नदी की अनगिनत 
यादें हैं मन में

नदी अपने प्रवाह से 
उदासी हर लेती है

उसकी उदासी को 
हम नहीं हरते

10.

शाम ढले 
उल्लसित मन से 
गया नदी से मिलने नदी तट

नदी मिली नहीं 
शहर चुप था 
उसे अपने पड़ोसी की 
खबर नहीं थी

नदी में जल था 
प्रवाह नहीं था

नदी किनारे लोग थे 
शोर था 
चमकीला प्रकाश था

नदी नहीं थी

लौटता कि 
आखिरी साँस लेती 
नदी सिसकती मिल गई

उसने कहा 
यह आखिरी मुलाकात हमारी

दर्ज कर लो 
तुम्हारी प्यास से नहीं 
तुम्हारी भूख से मर रही हूँ

यूँ एक नदी मर गई

और मेरी नदी कथा 
समाप्त हुई

भारी मन से 
प्यासा ही 
घर लौट आया।

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