नदी के खास वंशज | कृष्ण बिहारीलाल पांडेय
नदी के खास वंशज | कृष्ण बिहारीलाल पांडेय

नदी के खास वंशज | कृष्ण बिहारीलाल पांडेय

नदी के खास वंशज | कृष्ण बिहारीलाल पांडेय

घाट पर बैठे हुए हैं जो सुरक्षित
लिख रहे वे नदी की
अंतर्कथाएँ

आचमन तक के लिए उतरे नहीं जो
कह रहे वे खास वंशज हैं नदी के
बोलना भी अभी सीखा है जिन्होंने
बन गए वे प्रवक्ता पूरी सदी के
पर जिन्होंने शब्द साधे कर रहे वे
दो मिनट कुछ बोलने की
प्रार्थनाएँ

थी जरा सी चाह ऐसा भी नहीं था
आँख छोटी स्वप्न कुछ ज्यादा बड़े थे
बस यही चाहा कि सुख आए वहाँ भी
जिस जगह हम आप सब पीछे खड़े थे
दूर तक दिखते नहीं हैं आगमन पर
क्या करें मिटती नहीं ये
प्रतीक्षाएँ

पुरातत्व विवेचना में व्यस्त हैं वे
उँगलियों से हटा कर दो इंच माटी
हो रहे ऐसे पुरस्कृत गर्व से वे
खोज ली जैसे उन्होंने सिन्धु घाटी
बन्धु! ऐसे जड़ समय में किस तरह हम
बचा कर जीवित रखें
संवेदनाएँ

सब तरह आनन्द है राजी खुशी है
हम सभी आजाद हैं जकड़े नियम में
तैरती हैं झिलमिलाते रंग वाली
मछलियाँ ज्यों काँच के एक्वेरियम में
सिर्फ पानी बदलता रहता हमारा
नहीं बदली हैं अभी तक
विवशताएँ

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *