न मेरे पास | पंकज चतुर्वेदी
न मेरे पास | पंकज चतुर्वेदी

न मेरे पास | पंकज चतुर्वेदी

न मेरे पास मोरपंख का मुकुट था 
न धनुष तोड़ने का पराक्रम 
कंठ भी निरा कंठ ही था 
किसी के ज़हर से 
नीला न हो सका

क्षीरसागर में बिछी हुई 
सुखद शय्या नहीं थी 
नहीं थी संपत्ति से मैत्री

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देवताओं में ईर्ष्या जगानेवाली 
ऐसी तपस्या न थी 
जिसे भंग करने के लिए 
तुम्हारे प्रेम का 
अभिनय ज़रूरी होता

ययाति की तरह यौवन न था 
लौटकर आता हुआ उत्साह से 
और वह कौशल भी नहीं 
जो काँपते प्रतिबिंब के बल पर 
किसी की आँख को घायल करे

तुम्हें मंत्रमुग्ध कर देने को 
मेरे पास बाँसुरी न थी 
और न वह छल 
जो सिर्फ़ जल का आवरण है 
तुम्हारी देह पर 
तुम्हारे स्वप्न में 
भीगा हुआ कमल है

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