मुँह पर उँगलियाँ | रेखा चमोली
मुँह पर उँगलियाँ | रेखा चमोली

मुँह पर उँगलियाँ | रेखा चमोली

मुँह पर उँगलियाँ | रेखा चमोली

ये वक्त है बेआवाजों का
हर वक्त की तरह ये भी
शक्ति और सत्ता की तरफ मुँह करके खड़ा है
कुछ मानक, कुछ आँकड़े, कुछ सीमाएँ
तय करके
ये वक्त बिखर जाएगा
समान रूप से यहाँ वहाँ
ठीक उसी तरह जैसे सर्दी या गर्मी
किसी की सुविधा-असुविधा देखकर नहीं आती
बरसातें टूटी छप्परों पर भी
उतनी ही तेजी से बरसती हैं।

ये घुसपैठिया वक्त
जबरन थमा देता है
अनचाही सौगातें
और तरसाता है
एक घूँट जिंदगी को
मनमानी और चुप्पी के इस वक्त में
सवाल पूछने की इजाजत नहीं।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *