इच्छाओं का व्याकरण
सृजित होता है
संवेदनाओं के रण में
संवदेनाओं के इतिहास में
अक्सर नहीं होते नायक
वहाँ मन होता है राग-विराग से भरा हुआ
उसे कहीं से छेड़ना
विकल करना है खुद को
हारना नहीं होता
किसी इच्छा का पूरा न होना
बाबूजी कहते थे
कभी-कभी किसी इच्छा को मारना
जरूरी होता है
मन को उर्वर बनाने के लिए।