मैदान में | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता
मैदान में | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

मैदान में खड़े हैं
कई तरह के पेड़
सब की हरियाली है
अलग-अलग
जबकि जमीन एक है
खड़े हैं : एक-दूसरे को सहते
अपनी-अपनी ऋतुओं में
फूलते-फलते
साथ-साथ रहते
वर्षों से।

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