'मैं' की तलाश | धीरज श्रीवास्तव
'मैं' की तलाश | धीरज श्रीवास्तव

‘मैं’ की तलाश | धीरज श्रीवास्तव

‘मैं’ की तलाश | धीरज श्रीवास्तव

मन के झरोखों से
मैं, ‘मैं’ को खोजता हूँ
खुद को खोजता हूँ
अध्ययन / चिंतन / विचार
मनन/करता हूँ
पर हताश हो जाता हूँ
खुद को खोजता-खोजता
रो पड़ता हूँ।

चेहरा मकड़ी का जाला बन जाता है
तब न जाने क्यों
अँधेरा / वेदना / करुणा / दुख / सहानुभूति
अपने साथी लगने लगते हैं
और, राहत महसूस करता हूँ।

See also  रात की बात | रमानाथ अवस्थी

उजाला / प्रसन्नता / सुख
तड़पाने लगते हैं
मैं खुद को खोजता-खोजता
फिर गहराइयों में कहीं खो जाता हूँ
और उभर नही पाता हूँ
और खो जाता हूँ
न जाने किन गहराइयों में।

Leave a comment

Leave a Reply