मैं कैसे बताऊँ | धनंजय सिंह
मैं कैसे बताऊँ | धनंजय सिंह

मैं कैसे बताऊँ | धनंजय सिंह

मैं कैसे बताऊँ | धनंजय सिंह

दोपहर में याद आया
क्यों सिरस का फूल
मैं कैसे बताऊँ।

तृषा व्याकुल
एक कस्तूरी हिरन
वन पलाशों के
नहीं देते शरण

यह हृदय का मरुस्थल
किसको दिखाऊँ।

हर तरफ हैं
बाँध से घिरते जलाशय
कूल ने
सोचा नहीं था यह फलाशय

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पर मताग्रह है
कि मैं उत्सव मनाऊँ।

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