झिझकती आँखों सेमैं ने तुम्हें परसा हैमधुमालती के फूल,कहीं यह परसतुम्हें खल न जाय Like this:Like Loading... See also जरूर जाऊँगा कलकत्ता | जीतेन्द्र श्रीवास्तव | हिंदी कविता