मछलियाँ | नरेश सक्सेना
मछलियाँ | नरेश सक्सेना

मछलियाँ | नरेश सक्सेना

एक बार हमारी मछलियों का पानी मैला हो गया था
उस रात घर में साफ पानी नहीं था
और सुबह तक सारी मछलियाँ मर गई थीं
हम यह बात भूल चुके थे

एक दिन राखी अपनी कॉपी और पेंसिल देकर
मुझसे बोली
पापा, इस पर मछली बना दो
मैंने उसे छेड़ने के लिए कागज पर लिख दिया – मछली
कुछ देर राखी उसे गौर से देखती रही
फिर परेशान होकर बोली – यह कैसी मछली!
पापा, इसकी पूँछ कहाँ और सिर कहाँ
मैंने उसे समझाया
यह मछली का म
यह छ, यह उसकी ली
इस तरह लिखा जाता है – म…छ…ली
उसने गंभीर होकर कहा – अच्छा! तो जहाँ लिखा है मछली
वहाँ पानी भी लिख दो

तभी उसकी माँ ने पुकारा तो वह दौड़कर जाने लगी
लेकिन अचानक मुड़ी और दूर से चिल्लाकर बोली –
साफ पानी लिखना, पापा!

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