माँ, तुम नहीं हो | रविकांत माँ, तुम नहीं हो | रविकांत जब तुम थींकुछ विशेष नहीं लगता थाहाँ तुम्हारे जाने की बाततब भीबुरी लगती थी आज तुम नहीं हो –जैसेमुख्य रागनहीं बज रहा कोलाहलहै